प्रियंका गांधी की ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ राहें भाजपा और बसपा को दे सकती हैं झटका!

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प्रियंका गांधी वाड्रा की राजनीतिक एंट्री से जहाँ एक ओर कांग्रेस और पार्टी कार्यकर्ताओं में एक नया उत्साह जगा है, वहीं यूपी की राजनीति का सियासी गणित भी कुछ उलझ सा गया है। अभी तक उत्तर प्रदेश में चुनाव में सीधा मुकाबला सपा बसपा गठबंधन और भाजपा के बीच था, लेकीन प्रदेश में अपनी चुनावी जमीन खो चुकी कांग्रेस ने प्रियंका गांधी के जरिये समीकरण बदल दिए। 

प्रियंका की एंट्री ने यूपी में गठबंधन और भाजपा के बीच के मुकाबले को किया त्रिकोणीय:

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की सक्रीय राजनीति में आने के बाद कांग्रेस की दावेदारी मजबूत हुई है लेकिन उसी के साथ अटकलें लगाई जा रही हैं कि भाजपा की दावेदारी को और मजबूती मिली है। कारण सपा-बसपा के वोट कांग्रेस काट सकती है, गठबंधन का नुक्सान भाजपा के फायदें में तब्दील हो सकता है।

कांग्रेस का फोकस दलित और ओबीसी वोटर्स:

उत्तर प्रदेश लोकसभा चुनावों में कांग्रेस का टार्गेट दलित और ओबीसी वोट बैंक है, इसके लिए एक तरफ उनके पास हार्दिक पटेल हैं, जिन्हें वे स्टार प्रचारक के तौर पर उतार कर यूपी में दलित और ओबीसी को अपने पक्ष में करने की तैयारी में हैं, तो वहीं भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आजाद उर्फ़ रावण से उनकी नजदीकी सभी को महसूस हो रही है। गौरतलब है कि ये कम्युनटी अब तक बसपा का वोट बैंक है और लगातार बिखर रहा है।

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प्रियंका का दौरा हिंदू वोट पर डाल सकता है असर:

वहीं अगर 18 मार्च से शुरू हो रहे प्रियंका के यूपी दौरे पर नजर डाले तो वो ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ की राह में कदम बढ़ाती नजर आ रही हैं, प्रयागराज से गंगा के रास्ते आस्था की डुबकी लगाते हुए वे काशी के घाटों तक पहुँचने वाली हैं। वो कमजोर कांग्रेस जो पहले भाजपा का वोट बैंक काटने का काम करती थी, प्रियंका के आने के बाद सपा बसपा के लिए भी बड़ी चुनौती बन गयी है।

यूपी में अपनी सियासी जमीन तलाश रही कांग्रेस के लिए प्रियंका ‘ट्रंप कार्ड’:

पिछले चुनावों में सिर्फ दो सीटें बचा पाने वाली कांग्रेस इस बार यूपी में अपनी सियासी जमीन मजबूत करने के लिए भाजपा के सवर्ण वोटो पर तो सेंधमारी करने में लगी ही है, साथ ही दलित और ओबीसी वोटो के जरिये अपनी स्थित यूपी में मजबूत करने के प्रयास में हैं।

-लेकिन बड़ा सवाल ये हैं कि क्या प्रियंका गांधी कांग्रेस और राहुल गाँधी का ‘ट्रंप कार्ड’ साबित हो पाएंगी?

-क्या कांग्रेस का हार्दिक पटेल और चंद्रशेखर रावण को अपना साथी बनाने से मायावती को नुकसान होगा?

-क्या प्रियंका की ‘सॉफ्ट हिंदुत्व’ राहें सवर्ण और दलित वोट पर सेंधमारी कर पाएंगी?

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