ट्रूडो के पिता ने खालिस्तानियों को नहीं सौंपा, जिन्होंने बाद में 1985 में एयर इंडिया बमबारी में 329 लोगों गंवाई थी जान

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खालिस्तान समर्थकों के विरोध प्रदर्शनों और भारतीय राजनयिकों की हत्या की धमकियों के बाद कनाडा और भारत के बीच राजनयिक रिश्तों में तल्खी देखने को मिल रही है। इसके बाद ही कनाडा के पीएम जस्टिन ट्रुडो ने कहा कि, ‘भारत गलत है। हमारा देश काफी विविधता भरा है और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को हम काफी महत्व देते हैं। ट्रूडो के इस बयान पर भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने जवाब दिया कि यह मुद्दा अभिव्यक्ति की आजादी का नहीं बल्कि हिंसा की वकालत करने, अलगाववाद का प्रचार करने और आतंकवाद को कानूनी मान्यता देकर इसके दुरुपयोग का है।’

दरअसल, खालिस्तान समर्थकों ने एक पोस्टर जारी कर कनाडा में भारतीय राजनयिकों संजय कुमार वर्मा और अपूर्वा श्रीवास्तव पर हरदीप सिंह निज्जर को मरवाने का आरोप लगाया था। इसे लेकर अब खालिस्तान समर्थक 8 जुलाई को कनाडा में रैली कर रहे हैं। जबकि ट्रूडो सरकार ने इस पूरे मामले पर कोई कार्यवाही नहीं की है।

क्या खालिस्तानी समर्थक है प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ?

कनाडा में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो है। उन्होंने फ्रीडम ऑफ स्पीच और शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन के नाम पर शुरुआत से ही खालिस्तान और उनके समर्थकों को शह दी है। इसलिए ट्रूडो पर खालिस्तान की मांग का समर्थन करने का आरोप लगता रहा है। इसके कई और कारण भी हैं – जून 2017 में खालिस्तानी समर्थकों की खालसा डे परेड में प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने हिस्सा लिया था। इस परेड में ऑपरेशन ब्लूस्टार में मारे गये जरनैल सिंह भिंडरावाले को हीरो की तरह पेश किया गया था। जबकि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को गलत तरीके से दिखाया गया था।

जनवरी 2018 में कनाडा के 16 गुरुद्वारों ने भारतीय अधिकारियों के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी थी। तब भी ट्रूडो सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की। कनाडा में सरकारी अधिकारियों ने इसे अभिव्यक्ति की आजादी बताया था। इसके बाद साल 2021 में भारत में किसान आंदोलन हुए थे। तब भी जस्टिन ट्रूडो ने भारत के आतंरिक मामले में दखलअंदाजी करते हुए कहा था कि अगर वह भारत में चल रहे किसानों के प्रदर्शन को नोटिस नहीं करेंगे तो यह उनकी लापरवाही होगी। जबकि यह बात किसी से छुपी नहीं है कि इस आंदोलन में खालिस्तानी गतिविधियां तेजी से बढ़ी थी।

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जस्टिन ट्रूडो के पिता थे खालिस्तान समर्थक

जस्टिन ट्रूडो के पिता पियर ट्रूडो भी खालिस्तान समर्थक थे जब भारत में इंदिरा गांधी की सरकार (जनवरी 1966 से मार्च 1977 और 1980 से 1984 तक) थी, तब कनाडा में पियर ट्रूडो (जस्टिन ट्रूडो के पिता) 1968 से 1979 तक और फिर 1980 से 1984 (सीधे तौर पर देखें तो 16 साल) तक प्रधानमंत्री थे। कनाडाई पत्रकार टेरी मिल्वस्की ने अपनी किताब ‘ब्लड फॉर ब्लड: फिफ्टी इयर्स ऑफ ग्लोबल खालिस्तान प्रोजेक्ट’ में लिखा है कि इस दौरान यूरोप और कनाडा में पाकिस्तान के समर्थन से खालिस्तानी नेताओं का दबदबा तेजी से बढ़ रहा था। 1980 के दशक में अलग सिख राज्य की मांग को लेकर खालिस्तान आंदोलन भारत के बाहर कनाडा में भी हो रहा था। तभी कट्टरपंथियों का विरोध करने वाले भारतीय मूल के कनाडाई नेता उज्जल दोसांझ को खालिस्तानी समर्थकों ने बुरी तरह पीटा था।

कनाडाई पत्रकार टेरी मिल्वस्की ने अपनी किताब ‘ब्लड फॉर ब्लड: फिफ्टी इयर्स ऑफ ग्लोबल खालिस्तान प्रोजेक्ट’ में लिखा है कि इस दौरान यूरोप और कनाडा में पाकिस्तान के समर्थन से खालिस्तानी नेताओं का दबदबा तेजी से बढ़ रहा था। 1980 के दशक में अलग सिख राज्य की मांग को लेकर खालिस्तान आंदोलन भारत के बाहर कनाडा में भी हो रहा था। तभी कट्टरपंथियों का विरोध करने वाले भारतीय मूल के कनाडाई नेता उज्जल दोसांझ को खालिस्तानी समर्थकों ने बुरी तरह पीटा था।

इन सब कारणों को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने खालिस्तान समर्थकों पर लगाम लगाने और भारतीय लोगों को टारगेट किये जाने का विरोध जताते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री पियर ट्रूडो से इसकी शिकायत की। मगर पियर ट्रूडो ने इंदिरा गांधी की बात को और खालिस्तान मुद्दे पर बढ़ती गतिविधियों को कुछ खास तवज्जो नहीं दी। जिसका नतीजा यह हुआ कि 23 जून 1985 को कनाडा में रहने वाले खालिस्तानी आतंकियों ने एयर इंडिया के विमान में बम रखकर उसे उड़ा दिया, जिसमें 329 लोगों की मौत हो गयी थी।

पियर ट्रूडो के काल में बढा था खालिस्तान प्रदर्शन

पियर ट्रूडो के राज में बढ़ा खालिस्तान आंदोलन टेरी मिल्वस्की ने अपनी किताब में सीधे तौर पर तो तत्कालीन प्रधानमंत्री पियर ट्रूडो को खालिस्तान का समर्थक तो नहीं कहा है, लेकिन, उन्होंने अप्रत्यक्ष आरोप जरूर लगाया है। किताब के मुताबिक साल 1968 में पियर ट्रूडो प्रधानमंत्री बने थे। वहीं 1971 से पाकिस्तान की मदद से खालिस्तानी ब्रिटेन, यूएस और कनाडा में शरण लेने लगे थे। इसमें सबसे ज्यादा भागीदारी कनाडा की रही। तब कनाडा की जनगणना आंकड़ों के अनुसार 1971 में अप्रवासी लोगों की कुल जनसंख्या 312,765 थी, जिसमें 35,730 सिख थे। जबकि 1981 में 491,460 अप्रवासी जनसंख्या में 67,710 सिख हो गये। यानि कुल मिलाकर पियर ट्रूडो के काल में सिखों की आबादी में कनाडा में तेजी से बढ़ोत्तरी दर्ज की गयी। इसी में बहुत से लोग खालिस्तान समर्थकों के बहकावे आ गये।

कनाडा पुलिस को विमान विस्फोट की पहले से थी आशंका

टेरी मिल्वस्की द्वारा लिखी गयी किताब में लिखा गया है कि, साल 1984 जून में पियरे ट्रूडो की सरकार जाने से पहले ही एयर इंडिया के विमान को उड़ाने की साजिश रच दी गयी थी। इसके सबूत ऐसे मिलते हैं कि अगस्त 1984 में एक फ्रेंच मूल के कनाडाई अपराधी गैरी बूडराओ ने रॉयल कनाडियन माउंटेड पुलिस को बताया था कि वैंकुवर के कुछ सिखों ने उन्हें मॉन्ट्रियल से लंदन जाने वाली एयर इंडिया फ्लाइट नंबर 182 में बम रखने के लिए 2 लाख डॉलर नकद देने की पेशकश की थी।’ उसने कहा कि “मैंने अपने जीवन में बहुत जघन्य अपराध किए है लेकिन एक विमान में बम रखना मेरे मिजाज में शामिल नहीं था।

इसलिए मैंने पुलिस को इसकी सूचना दे दी। लेकिन, कनाडा की पुलिस ने इस पर ध्यान नहीं दिया।” इसके बाद 23 जून 1985 को कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया के वैंकुवर से उड़ने वाले दो विमानों में खालिस्तानियों ने डायनामाइट और टाइम बम से भरे दो सूटकेस रख दिये। दोनों ही कनेक्टिंग फ्लाइट थी। जिसमें से एक विमान ने पश्चिम में टोक्यो के लिए उड़ान भरी ताकि वह एयर इंडिया की बैंकॉक और मुंबई जाने वाली फ्लाइट से कनेक्ट कर सके। दूसरा विमान पूरब की ओर उड़ा ताकि वह टोरंटो और मॉन्ट्रियल से लंदन और नई दिल्ली जाने वाली फ्लाइट से कनेक्ट कर सके।

 

 

 

 

 

 

 

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