माघ मेले में किन्नर जमाएंगे अपना डेरा, खुद को बताया पैदाइशी सन्यासी
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद व माघ मेला प्रशासन से अखाड़ा के रूप में मान्यता नहीं मिलने से बेफिक्र किन्नर संन्यासी इस बार भी माघ मेला में डेरा जमाने की तैयारी कर रहे हैं। खुद को पैदाइशी संन्यासी बताते हुए उनका कहना है कि हमें किसी से मान्यता की जरूरत नहीं है।हम सबसे ज्यादा त्याग भरा जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हमें प्रयाग में लगने वाले माघ मेले में भजन-पूजन से कोई नहीं रोक सकता। यह बात दीगर है कि अभी तक मेला प्रशासन से उन्हें जमीन व सुविधा नहीं मिली है। प्रशासन का कहना है कि किन्नर अखाड़ा के नाम पर किसी को जमीन व सुविधा नहीं मिलेगी, हां संस्था के नाम पर सब कुछ उपलब्ध होगा।
2 जनवरी से शुरु हो रहा है माघ मेला
संगमनगरी इलाहाबाद के संगम तट पर इस बार दो जनवरी से माघ मेला आरंभ हो रहा है। तंबुओं की नगरी में मोक्ष की आस में संत-महात्माओं के साथ लाखों श्रद्धालु रेती में धूनी रमाएंगे। इस बार किन्नर संन्यासी भी डेरा जमाने की तैयारी कर रहे हैं। पहली बार वह यहां अपना शिविर लगाएंगे। किन्नर अखाड़े ने मेला प्रशासन से जमीन व सुविधाएं मांगी हैं। किन्नर अखाड़ा की मांग है कि माघ मेला क्षेत्र में त्रिवेणी मार्ग पर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती के शिविर के पास उसे जमीन व सुविधाएं दी जाएं।
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अखाड़े की तरफ से 1500 बाई 1500 वर्ग गज जमीन, सौ तम्बू डबल प्लाई, तीन दर्जन स्विस कॉटेज, 50 नल, 50 शौचालय, 50 सोफा, 200 कुर्सियां एवं सुरक्षा को पुलिस-पीएसी के जवान मांगे हैं। इधर मेला प्रशासन का कहना है कि किन्नर अखाड़ा के नाम पर किसी को सुविधा नहीं दी जाएगी। यह निर्णय अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के विरोध के चलते लेना पड़ा है।
पैदाइशी सन्यांसी हैं किन्नर
दरअसल अखाड़ा परिषद ने सिर्फ 13 अखाड़ों को अखाड़े के नाम पर भूमि व सुविधाएं देने की मांग मुख्यमंत्री से की है, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है। विवाद से बचने के लिए मेला प्रशासन ने किन्नरों को अभी तक जमीन व सुविधाएं नहीं दी है। इससे बेपरवाह किन्नर अखाड़ा की आचार्य पीठाधीश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी कहते हैं कि हमें न अखाड़ा परिषद से मान्यता की जरूरत है, न उनके सहयोग की। अपने अधिकार व सम्मान की लड़ाई स्वयं लड़ लेंगे, क्योंकि जनता हमारे साथ है। वैसे भी हम पैदाइशी संन्यासी हैं हमें तो सूतक भी नहीं लगता।
चर्चित एक्टिविस्ट के तौर पर भी ख्यात लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी यह भी कहते हैं कि 13 अखाड़े और उनके संन्यासी हमारे लिए सम्मानीय हैं, हम सबका हृदय से सम्मान करते हैं और आगे भी करेंगे। अखाड़े कुंभ और अद्र्धकुंभ में पेशवाई निकालते हैं जबकि हम देवत्व यात्रा निकालते हैं। उन्होंने कहा कि हम अपनी तुलना किसी अखाड़ा से करते ही नहीं। हम तो जन्मजात उपेक्षित हैं। पहले जन्म देने वालों ने उपेक्षित किया, बाद में समाज ने।
सिर्फ 13 अखाड़े
इसके बावजूद हमने सबको आशीर्वाद के सिवाय कुछ नहीं दिया, हमेशा सबका भला चाहा, आगे भी ऐसा ही होगा। उनका कहना है कि किन्नर अखाड़े का लक्ष्य किन्नरों को धार्मिक अधिकार व सम्मान दिलाने के साथ समाज के हर वर्ग के लोगों को धर्म के सही स्वरूप से जोड़ना है। 2016 के माघ मेले में भी किन्नर संन्यासियों के शिविर लगने की चर्चा थी। उचित सुविधा न मिलने पर किन्नर यहां नहीं आए। इस बार किन्नर अखाड़े की पहल पर मेलाधिकारी राजीव राय का कहना है कि किसी नए संगठन को अखाड़े के नाम पर सुविधा नहीं दे सकते। अखाड़ा सिर्फ 13 हैं, हम किसी 14 वें अखाड़े को जमीन व सुविधा नहीं देंगे। हां, संस्था के नाम पर सारी सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी।
साभार- दैनिक जागरण