जीना इसी का नाम हैं….जानें कौन हैं सरिता द्विवेदी जो रच रही इतिहास…
4 साल की उम्र में एक हादसे में अपने दोनों हाथ और एक पैर को खो दिये
प्रयागराज: मंजिल वही पाते हैं जिनके सपनों में जान होती है. आज के समय में सपने सभी देखते हैं लेकिन सपने उसके ही हकीकत में बदलते हैं जिसमें जज्बा होता है. एक और बात पंख से कुछ नहीं होता हौसलों से उड़ान होती है. जी हाँ ऐसा ही कुछ कर दिखाया है प्रयागराज की सरिता द्विवेदी ने, जिन्होंने महज 4 साल की उम्र में एक हादसे में अपने दोनों हाथ और एक पैर को खो दिये थे. लेकिन सरिता ने अपनी जिंदगी से हार नहीं मानी और उसके बाद पैर की अंगुलियों के सहारे कैनवास पर रंग भरना शुरू किया तो उनके हुनर को देख लोगों ने दांतों तले अंगुलियां दबा लीं.
बचपन से कला में थी रुचि..
Journalist Cafe से रूबरू सरिता द्विवेदी ने बताया कि उन्हें बचपन से ही कला में बहुत रुचि थी. हादसे के बाद मैंने हार नहीं मानी और अपनी जिंदगी के शौक को असल जिंदगी में उतार लिया. अब सरिता के इस हुनर के बाद सभी लोग अचंभित है क्योंकि वह पैर की अँगुलियों में ब्रश दबाकर कैनवास में रंग भरती हैं. उन्होंने बताया कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ललित कला में स्नातक किया है.
मां से मिली आत्मनिर्भरता की प्रेरणा …
Journalist Café से बातचीत में उन्होंने कहा कि हमें अपने जीवन की प्रेरणा अपनी मां से मिली है. क्योंकि मां से बड़ा कोई नहीं होता है. उन्होंने BFA करते हुए प्ररेणा स्रोत अपने गुरु अजय दीक्षित को माना और उन्हें ही अपने जीवन का आदर्श मानती हैं. मां ने मुझे एक सामान्य बच्चे की तरह ही पाला जबकि पिता सेना में थे और वह हमेशा वीरों की सच्ची कहानियां सुनाते थे.
हादसे में खोये दोनों हाथ और एक पैर
बता दें कि सरिता द्विवेदी जब महज 4 साल की थी तब हाईटेंशन तार की चपेट में आने से उनका आधा शरीर बुरी तरह झुलस गया था. इस हादसे ने उनके दोनों हाथ और एक पैर छीन लिये थे. लेकिन उन्होंने अपने जीवन में कभी हर नहीं मानी और उसका ही परिणाम है कि सरिता द्विवेदी को राष्ट्रपति सम्मानित कर चुके हैं.
2006 में ‘बालश्री’ पुरस्कार से हुई थी सम्मानित…
गौरतलब है कि जिंगदी में कुछ कर करने की क्षमता को देखते हुए वर्ष 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने पहले राष्ट्रीय ” बालश्री” पुरस्कार से सम्मानित किया था. वहीँ 2008 में उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भी उन्हें इम्पावरमेंट ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटीज अवार्ड से नवाजा. साल 2009 में मिनिस्ट्री आफ इजिप्ट ने इंटरनेशनल अवॉर्ड और जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला और देश की पहली महिला जस्टिस लीला सेठ ने सरिता को गॉडफ्रे फिलिप्स नेशनल ब्रेवरी अवार्ड से सम्मानित किया था.
भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (एलिम्को) में नौकरी
उन्होंने बताया कि वह वर्तमान में वह भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (एलिम्को) में नौकरी करती हैं और मैं ब्रांड एंबेसडर हूं और साथ में उनके बागवानी विभाग, हाउस-कीपिंग विभाग और कॉल सेंटर की देखरेख के साथ अतिथि स्वागत का प्रबंधन भी करती हूं. वहां मैं दिव्यांगजनों को सरकार की प्रमुख एडीआईपी और राष्ट्रीय वयोश्री योजनाओं के तहत लाभ प्राप्त करने में मदद करती हूँ.
चार राष्ट्रीय और एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता
सरिता द्विवेदी ने बताया कि वह एक कलाकार, फोटोग्राफर, मूर्तिकार, रचनात्मकता की खोज करने वाली, आभूषण निर्माता, बिजली के झटके से बचने वाली, अनुशासित भारतीय सेना की महिला, केवीयन, स्नातक, कामकाजी महिला, चार राष्ट्रीय और एक अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता हैं.
काहिरा विश्व बोकिया चैलेंजर में जीते दो कांस्य पदक
बता दें कि हाल ही में 16 जुलाई से 31 जुलाई तक खेले गए काहिरा विश्व बोकिया चैलेंजर में सरिता ने दो कांस्य पदक जीते हैं. सरिता भारत की पहली बीसी-3 महिला बोकिया एथलीट बनकर इतिहास रच दिया है. यह उपलब्धि उनके लिए इस लिए खास है कि उन्होंने जनवरी 2024 से ही खेलना शुरू किया हैं और केवल छह महीने और 19 दिनों की उल्लेखनीय अवधि में, उन्होंने राज्य, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रगति की है और बोस्किया के खेल में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है.
एलिम्को, कानपुर, उत्तर प्रदेश की बीसी-3 श्रेणी की एथलीट सरिता द्विवेदी को 8वीं बोकिया नेशनल सब-जूनियर, जूनियर और सीनियर पुरुष और महिला चैंपियनशिप 2023-2024 में उनके असाधारण प्रदर्शन के लिए आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई है. यह आयोजन 7 फरवरी से 12 फरवरी, 2024 तक मध्य प्रदेश के ग्वालियर में विकलांग खेलों के लिए अटल बिहारी वाजपेई प्रशिक्षण केंद्र के इनडोर स्टेडियम में आयोजित किया गया था. उत्कृष्ट प्रदर्शन के कारण उन्होंने रजत पदक हासिल किया और भारतीय मुक्केबाजी में स्थान हासिल किया.