हिंदी के साथ भेदभाव हुआ, किश्तों में जारी हुई विकास की नीति-डा. नीरजा माधव

बीएचयू में ’’अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषा के रुप में हिन्दी की प्रतिष्ठा’’ विषय पर विशिष्ट व्याख्यान

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बीएचयू में हिन्दी दिवस के मौके पर शनिवार को ’’अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भाषा के रुप में हिन्दी की प्रतिष्ठा’’ विषय पर विशिष्ट व्याख्यान हुआ. कार्यक्रम की मुख्य अतिथि नारी शक्ति पुरस्कार प्राप्त डा. नीरजा माधव ने हिन्दी की महत्ता पर कहा कि हिन्दी भविष्य की भाषा है और विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है. अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हिन्दी को स्थापित करने से पहले हिन्दी को अपने राष्ट्र में स्थापित करना होगा. उन्होंने हिन्दी के उद्भव और हिन्दी के विकास में स्त्री के महत्व को बताया.

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हिंदी में लड़ी गई स्वाधीनता की लड़ाई

उन्होंने कहा कि दुर्भाग्य से संविधान में वर्णित ’इण्डिया दैट इज भारत’ से ही हिन्दी भाषा के साथ भेदभाव हुआ, हिन्दी विकास की नीति किश्तों में लागू की गई. जबकि स्वाधीनता की लड़ाई तो हिन्दी में ही लड़ी गयी, उस समय के सभी लोगों ने अपने उद्गार हिन्दी में प्रदर्शित किये, क्योंकि हिन्दी सबके कण्ठ का हार थी. लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद हिन्दी की दुर्दशा शुरू हो गयी. आज हमें सोचना होगा कि हिन्दी की पुनर्स्थापना कैसे हो. इस राजभाषा को राष्ट्रभाषा कैसे बनाया जाय. हम सभी को इस पर मंथन करना होगा कि हिन्दी आज राष्ट्रभाषा क्यों नहीं बन पा रही है. उन्होंने कहाकि हमें यह भी सोचना होगा कि संयुक्त राष्ट्र संघ में यह राजभाषा के रूप में क्यों नहीं शामिल हो पा रही है. जबकि यह देश में राष्ट्रभाषा के रुप में स्थापित है. चीन, जापान, फ्रांस, जर्मनी, रूस सभी अपनी भाषाओं के माध्यम से अपने राष्ट्र की उन्नति कर रहे हैं. इसलिए हमें भी इस दिशा में कार्य करने की आवश्यकता है.

ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी स्थापित हो सकती है हिंदी

विशिष्ट अतिथि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो. श्रीनिवास पाण्डेय ने कहा कि हिन्दी में हमने बहुत उन्नति कर ली है. हिन्दी आज अत्यंत विपुल है और इसका साहित्य विपुल है. यद्यपि दुनिया के 150 से ज्यादा विश्वविद्यालयों में हिन्दी में पठन-पाठन हो रहा है. हिन्दी को रोजगारपरक व चिंतन अर्थात ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में स्थापित करने की जरूरत है. आज प्रयोजनमूलक हिन्दी को ठीक से विकसित करने से यह रोजगारपरक होने के साथ ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में भी स्थापित हो सकती है.

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हमें अपनी भाषायी परम्परा, मेधा व क्षमता को पहचानना होगा

अध्यक्षीय उद्बोधन में संस्था के निदेशक प्रो. प्रेम नारायण सिंह ने कहा कि राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने के लिए हिन्दी की जरूरत है. उन्होंने हिन्दी को स्थापित करने के लिए दो संकल्पों को अपनाने पर बल दिया. सबसे पहले लोगों को अपना दृष्टिकोण बदलना होगा और अपने सोच की दिशा बदलनी पड़ेगी, साथ ही इसकी शुरूआत स्वयं से करनी होगी. दूसरा, हमें जड़ों से जुड़ने के लिए अपनी ही जड़ों को तलाशना होगा, यह असम्भव नहीं है. हमें अपनी भाषायी परम्परा, मेधा व क्षमता को पहचानना होगा. कार्यक्रम का संयोजन डॉ. सुनील कुमार त्रिपाठी ने किया. मंगलाचरण डॉ. राजा पाठक एवं विषय परिचय प्रो. आशीष श्रीवास्तव (संकाय प्रमुख, शैक्षणिक एवं शोध) ने दिया. अतिथि परिचय डॉ. अनिल कुमार व धन्यवाद ज्ञापन डॉ. राजा पाठक ने किया. कार्यक्रम में केन्द्र के शैक्षणिक व गैर-शैक्षणिक कर्मियों की उपस्थिति रही. समारोह का प्रारंभ मंगलाचरण से हुआ. इसके बाद मां सरस्वती और महामना पं. मदन मोहन मालवीय की प्रतिमा पर माल्यार्पण और दीप प्रज्ज्वलन के साथ कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ.

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