पड़ोस के बचे कुचे खाने से बीत रही थी जिंदगी…और फिर
भूख (hunger) से राजधानी में जिन तीन मासूम बच्चियों ने दम तोड़ दिया था, उनके घर पर गुरुवार को नेताओं की लाइन लगी रही। पिता का अभी भी पता नहीं है, मानसिक तौर पर कमजोर उनकी मां को इहबास में भर्ती करा दिया गया है। परिवार बेहद अंधेरी, बदबूदार गलियों में तीन महीने तक रहा था। वहां भी पड़ोसियों के बचे-खुचे खाने से किसी तरह जिंदगी खींच रहे थे, लेकिन नए घर की ‘कैद’ ने बच्चियों की जिंदगी छीन ली।
दोस्त नारायण के एक कमरे के घर में शिफ्ट हो गया
मकान मालिक ने बताया कि बच्चियों के पिता को शराब की लत थी और वह कई कई दिन लापता रहता था। उसकी कमाई का साधन रिक्शा भी जब खो गया तो वह शनिवार को अपने दोस्त नारायण के एक कमरे के घर में शिफ्ट हो गया। यहां बच्चों को अंदर छिपाकर रखा जाता था ताकि मकान मालिक को शक न हो।
जिस मकान में तीन बच्चियों की भूख से मौत हुई…
मंडावली इलाके के पंडित चौक के पास स्थित जिस मकान में तीन बच्चियों की भूख से मौत हुई, वहां से कुछ ही किलोमीटर दूर मंडावली फाजलपुर इलाके के साकेत ब्लॉक की गली नंबर 14 के आसपास भी पिछले दो दिनों से हलचल काफी बढ़ गई है। दरअसल, यही वो गली है, जिसमें बच्चियों के पिता मंगल सिंह शनिवार से पहले तक अपने पूरे परिवार के साथ रहते थे।
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बेहद संकरी, अंधेरी, बदबूदार और गंदगी से अटी पड़ी इस गली के एक कोने के पास ग्राउंड फ्लोर पर बने एक बेहद छोटे से कमरे में यह पूरा परिवार रहता था। कमरे में बस लोहे का एक दरवाजा है। एक खिड़की तक नहीं है। अंदर बस एक बल्ब लगा है। आसपास गंदगी का आलम ऐसा है कि कोई बाहरी आदमी चक्कर खाकर वहीं गिर पड़े। गली के दोनों तरफ रहने वाले तमाम लोग इस पूरे परिवार से और उनकी मुफलिसी से अच्छी तरह वाकिफ थे। यही वजह थी कि यहां हर किसी के पास बताने के लिए कुछ न कुछ था।
…तब भी लोग उन्हें खाना खिला दिया करते थे
भूख से दम तोड़ने वाली बच्चियों पारुल (2 साल), मानसी (4 साल) और शिखा (8 साल) के साथ दिनभर खेलने वाले पड़ोस के बच्चों सावित्री, सुगंधा और मनन ने बताया कि वे अकसर अपने घर से दाल-चावल लेकर उन लोगों के घर देकर आते थे, क्योंकि उनके यहां खाना नहीं बनता था। मकान मालिक की बेटी नेहा ने बताया कि मंगल सिंह और उनका परिवार जितने दिन यहां रहे, उन्होंने कभी उनके यहां खाना बनते नहीं देखा। उनके और पड़ोस के दूसरे लोगों के घर में जो खाना बच जाता था, उसे सब लोग मंगल सिंह के घर भिजवा दिया करते थे। उसी से बच्चियों और उनकी मां का पेट भरता था। इसके अलावा बच्चियां पड़ोस के जिन घरों में खेलने जाते थे, तब भी लोग उन्हें खाना खिला दिया करते थे।
यहां हर कोई उस परिवार की हालत से वाकिफ था
नेहा के मुताबिक, मंगल सिंह की आर्थिक हालत को देखते हुए ही उनके पिता ने 2200 रुपये महीने के बजाय 1000 रुपये महीने पर यहां का कमरा उन्हें किराए पर दिया था, मगर मंगल सिंह उतने पैसे भी नहीं दे पा रहे थे। इसके अलावा उनके पिता ने उसन्हें चलाने के लिए दो बार अपने रिक्शे किराए पर दिए, लेकिन दोनों रिक्शे वह कहीं खो आए। इसके बावजूद उन्होंने कभी मंगल सिंह को कुछ नहीं कहा। नेहा के भाई पंकज अरोड़ा ने भी किराया नहीं देने की वजह से मंगल सिंह के परिवार को घर से निकाल देने के आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि यहां हर कोई उस परिवार की हालत से वाकिफ था। उनके घर में इतनी गरीबी थी कि उल्टे हम लोग हर तरह से उनकी मदद करते रहते थे। जाने से पहले उन्होंने हमें बताया भी नहीं कि वे घर खाली कर जा रहे हैं।
इसी इलाके में रहने वाले मनिराम ने बताया कि वह 10 साल से इस परिवार को जानते हैं। ये लोग कई सालों से इसी इलाके में रह रहे हैं। पहले मंगल सिंह पास की ही एक दूसरी गली में रहते थे। फिर तीन महीने पहले यहां 14 नंबर गली के मकान में आकर रहने लगे। उन्होंने बताया कि मंगल सिंह की हालत पहले इतनी खराब नहीं थी। पहले वह यहीं पर होटल चलाते थे और परांठे बनाते थे। फिर उन्होंने चाय की दुकान खोली। मगर फिर पता नहीं क्या हुआ और उसकी माली हालत खराब होती चली गई। हालांकि वह काफी मिलनसार आदमी थे, लेकिन उन्हें शराब की बुरी लत थी। फिर अचानक पता नहीं क्या हुआ और शनिवार को वह खुद ही यहां से चले गए। किसी ने उनको भगाया नहीं था। मकान मालिक ने भी कभी उनको परेशान नहीं किया, क्योंकि सबको पता था कि गरीबी से उनके परिवार की हालत खराब थी।
तीसरी बच्ची के जन्म के बाद उनकी हालत बिगड़ी
इसी गली में दुकान चलाने वाले विनोद ने बताया कि मंगल सिंह की बच्चियां अकसर उनकी दुकान पर आकर कुछ न कुछ खाने को ले जाती थीं। यहां सब लोग उस परिवार की मदद करते थे, क्योंकि मंगल सिंह ज्यादा कुछ कमाते नहीं थे और जो भी कमाते थाृे, उसे भी दारू में उड़ा देते थे। वहीं मंगल सिंह के दोस्त नारायण ने बताया कि बच्चियों की मां की मानसिक हालत पहले ऐसी नहीं थी। तीसरी बच्ची के जन्म के बाद उनकी हालत बिगड़ी। मंगल सिंह का काम-धंधा भी चौपट हो गया, जिसके चलते उसके घर की आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई। फिर भी वह जितना हो सकता था, इस परिवार की मदद करते थे।साभार
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