SC-ST ऐक्ट में बदलाव नहीं, गिरफ्तारी को बहुत आसान नहीं बना सकते: सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति-जनजाति कानून ( एससी-एसटी ऐक्ट ) संबंधी अपने फैसले पर रोक लगाने का केंद्र सरकार का अनुरोध खारिज कर दिया। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इन समुदायों के अधिकारों के संरक्षण और उनके ऊपर अत्याचार करने के दोषी व्यक्तियों को दंडित करने का सौ फीसदी हिमायती है। बेंच ने कहा कि ऐसे मामलों में गिरफ्तारी को बहुत आसान नहीं बनाया जा सकता।

बचाव के प्रावधान वाले गाइडलाइंस जारी किए गए हैं

सुप्रीम कोर्ट  ने केंद्र की यह दलील मानने से भी इनकार कर दिया कि उसके 20 मार्च के आदेश के चलते कई राज्यों में हिंसा भड़की और कई लोगों की जान चली गई।केंद्र ने अदालत से कहा कि 20 मार्च को जारी वह आदेश विधायिका के पारित कानून के विपरीत है जिसमें अनुसूचित जाति-जनजाति के लोगों के खिलाफ अत्याचार होने के मामले में आरोपी की तुरंत गिरफ्तारी से बचाव के प्रावधान वाले गाइडलाइंस जारी किए गए हैं।

मामला दर्ज ही नहीं किया जाएगा

इसलिए आदेश पर रोक लगाया जाना चाहिए और सुनवाई के लिए मामला वृहद पीठ को सौंपा जाना चाहिए। हालांकि, जस्टिस आदर्श कुमार गोयल और जस्टिस उदय यू ललित की बेंच ने आदेश पर रोक लगाने से इनकार किया और कहा कि निर्णय करते समय अदालत ने किसी निष्कर्ष पर पहुंचने से पहले सभी पहलुओं और फैसलों पर विचार किया था। बेंच ने कहा, ‘ऐसा नहीं है कि आदेश में ऐसा कहा गया है कि मामला दर्ज ही नहीं किया जाएगा।

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ऐसा भी नहीं है कि आरोपियों को गिरफ्तार नहीं किया जाएगा। सुरक्षात्मक व्यवस्था करने का मकसद यह है कि किसी को तुरंत गिरफ्तार नहीं किया जाए या किसी निर्दोष को सजा नहीं दी जाए क्योंकि एससी/एसटी ऐक्ट में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है।’ अदालत ने कहा कि अनुसूचित जाति-जनजाति (अत्याचारों की रोकथाम) कानून, 1989 के तहत सिद्धांत रूप से किसी को जमानत नहीं मिल सकती, लेकिन उन मामलों में गिरफ्तारी के तुरंत बाद नियमित जमानत की अर्जी लगाई सकती है जिसमें सिर्फ छह महीने की कैद की सजा है।

आदेश गिरफ्तारी की राह में नहीं आएगा

अदालत ने कहा, ‘अग्रिम जमानत का प्रावधान टाडा और मकोका जैसे कानूनों में भी नहीं है, जहां अपराध की प्रकृति ज्यादा गंभीर मानी जाती है। अपराध गंभीर होने पर अदालत का यह आदेश गिरफ्तारी की राह में नहीं आएगा।’ अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि उसने एससी/एसटी ऐक्ट के तहत अपराध के मामलों में एफआईआर दर्ज होने पर रोक नहीं लगाई है, उसने तो बस एफआईआर दर्ज होने से पहले घटना की पुष्टि कराने के बारे में व्यवस्था दी है, ताकि निर्दोषों को सजा नहीं मिले।

मामले में केंद्र सरकार का पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि 20 मार्च को आए आदेश के बाद देश के कई हिस्सों में कई लोगों की जान चली गई थी। उन्होंने यह भी कहा कि यह एससी/एसटी एक्ट के मौजूदा प्रावधानों के विपरीत है।

NBT

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