SC: छह हफ्ते में इंटरनेट से हटाई जाए सेक्स निर्धारण संबंधी सामग्री

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लिंग निर्धारण परीक्षण और उससे जुड़ी सामग्री के इंटरनेट सहित अन्य माध्यमों पर प्रकाशन पर सुप्रीम कोर्ट  ने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस केंद्र सरकार की नोडल एजेंसी को आदेश दिया है कि इंटरनेट कंपनियों गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट के साथ ही तमाम हित धारकों की बैठक बुलाकर छह हफ्ते के अंदर सेक्स निर्धारण संबंधी सामग्री का प्रकाशन वहां हटा दिया जाए।

लिंग परीक्षण पर बने भारतीय कानूनों का उल्लंघन न हो

बता दें कि इससे पहले देश की शीर्ष अदालत ने फरवरी माह में भी गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को आदेश दिया था कि वह विशेषज्ञों की समिति गठित करके यह तय करें कि प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण से संबंधित तमाम सामग्री को अपने माध्यम से हटा लें। जिससे प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण पर बने भारतीय कानूनों का उल्लंघन न हो।

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इससे पूर्व 19 सितंबर 2006 को भी सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट को अपनी साइट्स से ऐसी कंटेट हटाने का आदेश दिया था, जिससे पीसीपीएनडीटी अधिनियम 1994 के प्रावधान-22 का उल्लंघन होता हो। कोर्ट ने उस समय इंटरनेट पर दिखने वाले ऐसे शब्दों या की वर्ड को भी हटाने का आदेश दिया था जिससे प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण संबंधी कंटेट का पता चलता हो। इस मामले में गूगल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड, याहू इंडिया और माइक्रोसॉफ्ट कॉरपोरेशन इंडिया को वादी बनाया गया है।

ये था मामला 

असल में गूगल, याहू और माइक्रोसॉफ्ट जैसे सर्च इंजनों पर प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण से संबंधित विज्ञापन दिखाए जाने से जुड़ा है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन सर्च इंजनों पर इस तरह के तमाम विज्ञापन मौजूद हैं, जिससे लिंग परीक्षण को बढ़ावा मिलता है। जबकि भारत में प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण अपराध है और इसके लिए पीसीपीएनडीटी अधिनियम लागू किया गया था।

पीसीपीएनडीटी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन कर रही हैं

साल 2008 में  डॉ. साबू जॉर्ज ने इस संबंध में याचिका दायर कर आरोप लगाया था कि गूगल और याहू जैसे सर्च इंजन प्रसव पूर्व लिंग परीक्षण सं संबं‌धित सामग्री प्रकाशित कर पीसीपीएनडीटी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन कर रही हैं।

(साभार- अमर उजाला)

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