लेखपालों को मिलने वाले भत्ते-तनख्वाह से कैसे होगा इनका गुजारा?

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मैं लेखपाल के बारे में नहीं जानता था। लेखपालों को पता था कि आज का मीडिया पटवारी, अमीन और लेखपाल के बारे में नहीं जानता है। इसलिए एक लेखपाल ने जन्मपत्री की तरह एक लंबे से क़ाग़ज़ पर अपने 41 कार्यों की सूची लिखकर टांग दी ताकि सब समझ सकें।

लोग मीडिया से भी ज़्यादा रचनात्मक हैं। कई लोगों ने काम करते हुए की तस्वीरें भेजीं जिनके ज़रिए मैं देख सका कि लेखपाल बाढ़, सुखाड़, अगजनी ओला वृष्टि के वक्त ज़मीन से लेकर गांव तक की पैमाइश करते हैं, आंकड़ों को सबसे पहले वही बीन कर सरकारी रिकार्ड में दर्ज करते हैं।

कितने रकबे में फसल बोई गई है और कितनी हुई है, ये रिकार्ड भी लेखपालों के ज़रिए कृषि मंत्रालय तक जाता है। गांव के ज़मीनों की पैमाइश करना और रिकार्ड रखना इनका ही काम है।अंग्रेज़ों की बनाई यह पटवारी व्यवस्था कई खामियों से ग्रस्त है मगर इनका उपयोग है, वो इनके कार्यों की सूची से साबित तो होता ही है। अगर ये काम नहीं करते हैं तो फिर क्या यह मान लिया जाए कि ज़मीन पर सरकार नहीं है।

नीचे लिया गया पैसा ऊपर तक भी पहुंचता होगा

कोई काम ही नहीं करता है। अगर कोई काम करता है तो उस काम का उचित मेहनताना मिलना चाहिए कि नहीं। सरकार दिन भर दावे करती रहती है कि भ्रष्टाचार ख़त्म कर दिया है फिर उसके कर्मचारियों की मांग के समय क्यों कहा जाता है कि ये ऊपर से कमा लेते हैं। तो फिर नीचे लिया गया पैसा ऊपर तक भी पहुंचता होगा।

सरकारी कर्मचारियों को समझना होगा कि वे इस छवि से कैसे लड़ेंगे और वे नहीं लड़ेंगे तो धरना देते रह जाएंगे होगा कुछ नहीं लेकिन सरकारी कर्मचारी चोर है यह बात जनता और सरकार तब क्यों करती है जब वे अपनी जायज़ मांगों को लेकर आवाज़ उठाते हैं। उन्हें चोर कहने वाले भी कम चोर नहीं है।

मैंने कई तहसीलों के वीडियो देखे जो लेखपाल बंधुओं ने भी मेरे लिए भेजे ताकि मैं देख सकूं कि वे कैसी जगहों पर काम करते हैं। जर्जर इमारतों के नीचे ज़मीन पर बिछी दरी पर काम कर रहे हैं। भारत 21 वीं सदी में सुपर पावर और विश्व गुरु बनने जा रहा है!

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आपने किस सुपर पावर के यहां देखा है कि 30,000 कर्मचारी बरामदे और पेड़ के नीचे बैठकर काम करते हैं। भारत भर में करोड़ों रुपये फूंक कर स्वच्छता का ढिंढोरी पीटा गया मगर सरकारी कार्यालयों में ही शौचालय नहीं है। उनकी साफ सफाई की कोई व्यवस्था नहीं है। हम सब ये दशकों से देखते आ रहे हैं। लेखपाल भी अपनी इस हालत को जीते आए हैं लेकिन बदलाव की बात बेमानी है।

लेखपालों को 2000 का पे ग्रेड मिलता है जो बहुत कम है। उन्हें जो यात्रा मिलता है उसे जानकर हंसी नहीं रोना आएगा। 3 रुपये 33 पैसे प्रति दिन यात्रा भत्ता मिलता है और इतना ही स्टेशनरी का पैसा दिया जाता है। क्या ये लोग अपनी जेब से या जनता की जेब से लेकर सरकार का काम नहीं कर रहे हैं? क्या इसमें बदलाव नहीं होना चाहिए। क्या हमारी नीचली सीढ़ी के सबसे ज़रुरी कर्मचारियों के बैठने, पानी और शौचालय की व्यवस्था नहीं होनी चाहिए, क्या उनके कमरे में पंखे भी नहीं होने चाहिए?

जनता को ही लगातार कह रही है कि तुम चोर हो

दरअसल इस लोकतंत्र में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की फौज घुस गई है जो जनता को ही बर्बाद कर रही है। जनता को ही लगातार कह रही है कि तुम चोर हो। खुद को जनता समझने वाले लेखपाल, शिक्षा मित्र और बीटीसी शिक्षक और बीटीसी उर्दू शिक्षक इन बातों को सिर्फ अपनी मांगों के संदर्भ में देखते हैं मगर दूसरे के संदर्भ में देखेंगे तो साफ साफ दिख जाएगा।

जनता को यह देखना चाहिए कि सरकार उसी के साथ नहीं दूसरे के साथ कैसा व्यवहार कर रही है। जनता ही जनता से अलग हो जाएगी तो फिर वह सरकार के सामने जनता नहीं रहेगी। बस कुछ लोगों की भीड़ रहेगी जिसे कोई सिपाही कलक्टर के आदेश पर हांक आएगा।

 ( लेख पत्रकार रविश कुमार के फेसबुक पेज से लिया गया है। )

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