उत्तर प्रदेश के इस गांव में नहीं मनाया जाता रक्षाबंधन का पावन त्योहार, कारण जानकर हो जाएंगे हैरान
श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला राखी का त्यौहार भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बना देता है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगा कर राखी बांधती है।
श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाने वाला राखी का त्यौहार भाई-बहन के रिश्ते को और भी मजबूत बना देता है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर तिलक लगा कर राखी बांधती है। मिठाई खिलाती है और भाई अपनी बहन की रक्षा के वचन के साथ उसके सुख-दुख में साथ रहने का वादा करता है। लेकिन उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के संभल (Sambhal) के बैनीपुर चक गांव में भाइयों की कलाई सूनी रहती है। यहां के लोगों का मानना है कि राखी बांधने के बदले देने वाले उपहार में उनकी जायदाद न मांग ली जाए। यहां के लोग बड़ी संख्या में ये बात मानते हैं। यहीं वजह है कि यहां पिछले 300 सालों से ज्यादा समय से रक्षाबंधन का पर्व नहीं मनाया जाता।
इस वजह से सुनी रहती है भाइयों की कलाई
संभल से आदमपुर मार्ग पर पांच किलोमीटर दूर बैनीपुर चक गांव श्रीवंशगोपाल तीर्थ की वजह से प्रसिद्ध है। लेकिन गांव में राखी नहीं मनाने की मान्यता के कारण भी ये गांव जाना जाता है। इस मान्यता के बारे में गांव के निवासी भारत सिंह यादव ने बताया की उनके पूर्वज अलीगढ़ में अतरौली के सेमरई गांव के जमींदार थे। उनके परिवार में कोई बेटी न होने के वजह से परिवार के बेटे गांव के ही दूसरी जाति के परिवार की बेटियों से राखी बंधवाने लगे। लेकिन एक बार राखी पर एक बेटी ने राखी बांधने के बाद उपहार में परिवार की जायदाद मांग ली। परिवार ने भी जमींदारी दूसरी जाति को सुपुर्द कर राखी का मान रखा। बाद में गांव छोड़कर संभल के बैनीपुर चक में आकर रहने लगे। तभी से यादवों के बकिया व मेहर गोत्र के भाइयों की रक्षाबंधन के पर्व पर कलाइयां सुनी रहती हैं।
उदास रहती हैं बहनें
आठवीं क्लास की छात्रा मनीषा यादव ने बताया कि हम सभी भी चाहते हैं कि रक्षाबंधन का त्योहार हमारे यहां भी मनाया जाए। हम लोग भी अपने भाइयों के कलाई पर राखी बांधना चाहते हैं। लेकिन जो पुरानी परंपरा चली आ रही है उसकी वजह से रक्षाबंधन का त्योहार हम नहीं मना पाते।