भारत सिर्फ हिंदुओं का देश नहीं है…

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अपनी आजादी की 71वीं वर्षगांठ मना रहे भारत को स्वतंत्रता संग्राम में बलिदान देने वाले सेनानियों को निश्चित तौर पर याद रखना चाहिए। यह उन्हीं की दूरदृष्टि, आदर्शवाद, लोकतंत्र के प्रति प्रतिबद्धता, धर्मनिरपेक्षता एवं बहुलवाद है, जिसने दुनिया में भारत को एक विशिष्ट देश बनाया है।

सांप्रदायिक शांति एवं सौहार्द के प्रति प्रतिबद्धता के खिलाफ है

धर्मनिरपेक्षता एवं संविधान के प्रति भारत की प्रतिबद्धता अद्वितीय और अतुलनीय है। लेकिन, यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि बीते कुछ महीनों के दौरान खुद को गोरक्षक बताने वाले दक्षिणपंथी समूह के कुछ लोगों ने हिंसा के कई वारदातों को अंजाम दिया, जिसमें 20 से अधिक निर्दोषों की मौत हो गई। किसी भी तरह की हिंसा जिसका आधार नफरत, धर्माधता, प्रताड़ना, गलतफहमी और अज्ञानता होती है, वह दुनिया में लोकतंत्र, विविधता एवं धर्मनिरपेक्षता का प्रतीक बन चुके एक देश के चरित्र एवं आत्मा का प्रतिनिधित्व नहीं करती। हिंसा और ध्रुवीकरण भारत के मूल्यों के खिलाफ हैं।किन्ही व्यक्तियों द्वारा इस तरह का असहिष्णुता वाला बर्ताव करना भारत की परंपरा और सांप्रदायिक शांति एवं सौहार्द के प्रति प्रतिबद्धता के खिलाफ है।

आस्था की ताकत के बल पर क्या किया जा सकता…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद मुस्लिमों के खिलाफ हिंसक घटनाओं के विरोध में बोला है। उन्होंने देश को अपने लक्ष्य ‘सबका साथ, सबका विकास’ की फिर से याद दिलाई। कुछ लोग सोच सकते हैं कि उनके इस आह्वान का कोई असर नहीं पड़ेगा। लेकिन, मेरा मानना है कि इसका असर पड़ेगा, क्योंकि इतिहास में भारत के कई महान नेताओं ने सहयोग और समन्वय के जरिए सामुदायिकता स्थापित की है।उदाहरण के लिए बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के संस्थापक एवं स्वंत्रतता सेनानी पंडित मदन मोहन मालवीय की शिक्षा को याद करें। वह एक दूरद्रष्टा थे, जिन्होंने दुनिया को धर्म के चश्मे से नहीं बल्कि वृहद दृष्टि से देखा था कि एक मजबूत समावेशी आस्था की ताकत के बल पर क्या किया जा सकता है।

अध्यात्म धार्मिक, जातीय एवं क्षेत्रीय सीमाओं से परे

मालवीय ने कहा था, “भारत सिर्फ हिंदुओं का देश नहीं है। यह मुस्लिमों का देश है, ईसाइयों का और पारसियों का देश भी है। देश सिर्फ तभी ताकतवर बन सकता है और खुद को विकसित कर सकता है, जब समस्त देशवासी आपसी सद्भाव और सौहार्द के साथ रहें।”देश में सांप्रदायिक शांति एवं सौहार्द का वातावरण तैयार करने के लिए यदि मालवीय जी की शिक्षा पर चलें तो हमें अपने ‘समान आध्यात्मिक स्वरूप’ की तलाश करनी होगी।ऐसा इसलिए है, क्योंकि अध्यात्म धार्मिक, जातीय एवं क्षेत्रीय सीमाओं से परे होता है।

सौहार्दपूर्ण ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देता है

धर्मगुरुओं की समाज में जो प्रतिष्ठा है, उससे वे विभिन्न आस्थाओं के बीच सीमाएं तोड़ने, आपसी समझदारी भरी बातचीत शुरू करने और आपसी संबंधों को मजबूत करने के लिए उनके बीच पुल बनाने में सबसे अहम भूमिका निभा सकते हैं। विभिन्न वर्गो एवं आस्था समूहों से आने वाले अपने-अपने श्रद्धालुओं को विवादित विषयों एवं अहम मुद्दों पर खुली चर्चा के लिए बुलाकर इसे हासिल किया जा सकता है। इन बहसों में इस बात को मूल में रखा जाना चाहिए कि किसी एक धर्म पर होने वाला हमला सभी धर्मो पर हमले के समान है। जब हम एकदूसरे पर हमला करते हैं, तो यह भारत के सौहार्दपूर्ण ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर देता है।

शिष्टता को बढ़ावा देने के लिए आवाज बुलंद

राजनेताओं की यह जिम्मेदारी है कि वे सभी कानूनों को निष्पक्ष बनाएं और उन्हें समान रूप से लागू करना सुनिश्चित करें। सबसे अहम यह है कि वे सांप्रदायिक शांति एवं सौहार्द का वातावरण बनाने की दिशा में सकारात्मक कदम उठाएं।उन्हें एक ऐसी योजना विकसित करने की जरूरत है, जिसमें यह पता किया जाए कि सभी भारतवासियों को एक परिवार के रूप में संगठित करने के लिए आपसी संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए क्या किया जा सकता है। उन्हें विभिन्न आस्थाओं के बीच आपसी समझदारी, समन्वय एवं शिष्टता को बढ़ावा देने के लिए आवाज बुलंद करनी चाहिए।

भारत के भविष्य को बेहतर आकार देने में मदद कर सकते

व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा इस तरह के हर क्षेत्र से जननायकों को आगे आना चाहिए। वे अपने कामों से उदाहरण पेश कर सकते हैं, ऐसे कार्यक्रमों का आयोजन एवं उसमें निवेश कर सकते हैं, जो जातीय, धार्मिक एवं सामाजिक-आर्थिक भेदभाव को खत्म करें। वे तनाव को कम करने में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं और हमारे युवाओं को सहयोग एवं संचार की जरूरत को समझने में मदद कर सकते हैं। वे ‘एकता में ताकत’ के विचार को बढ़ावा देकर एकता के अभूतपूर्व लाभ को हासिल करने में अहम भूमिका अदा कर सकते हैं। और एक साथ आकर वे भारत के भविष्य को बेहतर आकार देने में मदद कर सकते हैं।

भावना को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करें

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का नागरिक होने के नाते भारत में रहने वाले विभिन्न आस्थाओं को मानने वाले लोगों के लिए यही सही होगा कि वे एकसाथ आएं और हिंसा के हर स्वरूप को खारिज करने तथा नागरिक सभ्यता को बढ़ावा देने की कोशिशों को दोगुनी गति दें। भारतवासियों को चाहिए कि वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास’ के आह्वान पर आगे बढ़ते हुए समझदारी पूर्ण आपसी बातचीत एवं सामुदायिकता का साझा भावना को बढ़ावा देने के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करें।

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