BUDGET 2018: महिलाओं को जेटली से है उम्मीदें

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जब भी आम बजट आता है तो सबसे पहली दिलचस्‍पी इनकम टैक्‍स स्‍लैब में बदलाव को लेकर होती है। इसके बाद नंबर आता है रसोई का। दिनभर इसी बात पर चर्चा होती है कि आने वाले साल में सिलेंडर से लेकर दाल, अनाज और रसोई के सामानों के दाम कहां पहुंचेंगे और गृहणियों को कितनी परेशानी होगी? लेकिन यहां जानना बेहद जरूरी है कि चूल्‍हे-चौके से अलग ऐसी कौन सी समस्‍याएं या जरूरतें हैं, जिनका समाधान महिलाएं हर साल के बजट में चाहती हैं।

केन्द्र सरकार के कई मंत्रियों से मिल चुकी है

आम बजट 2018 से भी महिलाओं को उम्‍मीदें हैं, लेकिन इस बार उनकी उम्‍मीदें कुछ और हैं। महिलाओं के अधिकारों के लिए लड़ने वाली महिलाओं ने का कहना है कि पिछली बार महिलाओं के बजट में जो कटौती की गई थी, इस बजट में उसकी भरपाई होनी चाहिए। महिलाओं के लिए बजट बढ़ाया जाए। महिलाओं के स्‍वास्‍थ्‍य और शिक्षा पर मुख्‍य रूप से खर्च होना चाहिए। सेंटर फॉर सोशल रिसर्च की रंजना कुमारी सेनिटरी नेपकिन पर लगे जीएसटी को हटाने के लिए केंद्र सरकार के कई मंत्रियों से मिल चुकी हैं।

गर्भवती महिलाओं या लड़कियों को लेने से बचेंगी

रंजना कहती हैं कि बजट जारी करते वक्‍त केंद्र सरकार को महिला स्‍वास्‍थ्‍य और मेन्‍स्‍ट्रुअल हाईजीन पर विशेष ध्‍यान देना चाहिए। भारत में महिला स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएं पाने में सबसे पीछे हैं। सेनिटरी नैपकिन पर जीएसटी लगाना उचित कदम नहीं नहीं है। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह बजट में उन महिलाओं के लिए निशुल्‍क सेनिटरी नेपकिन देने की व्‍यवस्‍था करे, जो इससे वंचित हैं। महिला कार्यकर्ता और सांसद सुष्मिता देव का कहना है कि महिलाओं के लिए 26 हफ्तों की सवैतनिक मैटरनिटी लीव का प्रावधान तो सरकार ले आई, लेकिन इससे प्राइवेट कंपनियां गर्भवती महिलाओं या लड़कियों को लेने से बचेंगी।

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इससे अच्‍छा हो कि इस भार को केंद्र सरकार वहन करे और इसके लिए अलग से बजट जारी करे। बजट में तीन तलाक पीड़‍ित उन महिलाओं को केंद्र सरकार तब तक आर्थिक मदद देने की व्‍यवस्‍था करे, जब तक कि उसके पति के साथ उसका केस चले और गुजारा भत्‍ता न मिलने लगे। स्‍कूलों में सेनिटरी नेपकिन बांटने वाली सरकार निम्‍न तबके की महिलाओं को देशभर में सेनिटरी नेपकिन प्रदान करे। Change.Org की दुर्गानंदिनी कहती हैं कि सेनिटरी नैपकिन को लेकर देशभर में इतना बड़ा आंदोलन चला है, 3 लाख से भी ज्‍यादा लोगों ने इस पर हस्‍ताक्षर किए हैं। लगभग तीन मंत्रियों के पास वे लोग गए, फिर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। इस बजट में कम से कम मेन्‍स्‍ट्रुयल हाईजीन पर खर्च का मसौदा सरकार तैयार करे। यह महिला विकास, महिला स्‍वास्‍थ्‍य से जुड़ा मामला है।

महिला एवं बाल विकास के लिए बजट बढ़ाया जाए

सेनिटरी नेपकिन अभी भी पहुंच के बाहर है। ऐसे में बजट में इन्‍हें फ्री करने या टैक्‍स फ्री करने का प्रावधान हो। महिला एवं बाल विकास के लिए बजट बढ़ाया जाए। महिला सुरक्षा और साहस निर्माण पर खर्च के लिए बजट बढ़े। रिहेबिलिटेशन, काउंसिलिंग प्रोग्राम, मेटरनल हेल्‍थ, प्राइमरी हेल्‍थ सेंटर, सेफ बर्थ के लिए सरकार बजट बढ़ाए। बच्‍चों पर हमला करने वालों को लेकर सरकार फैमिली लेवल इंटरवेंशन कार्यक्रम आयोजित करे, इसकी रूपरेखा बजट में होनी चाहिए। सत्‍यवती कॉलेज में काउंसिलर और महिला कार्यकर्ता अंजलि सिन्‍हा का कहना है कि महिला सुरक्षा को लेकर प्रभावी कदम उठाए जाएं। इसके अलावा हमारे देश में जागरुकता की काफी कमी है।

कृषि में भी महिलाएं सबसे ज्यादा लगी है

हमारे यहां स्‍वास्‍थ्‍य को लेकर काफी अज्ञानता है। गरीबी है। ठीक सुविधाएं नहीं हैं। ऐसे में सेनिटरी नेपकिन से जीएसटी हटाए और मुफ्त वितरण को बढ़ाए।सार्वजनिक स्‍थलों में शौचालयों का इंतजाम हो। आधारभूत ढांचे की मरम्‍मत की जाए। बजट में हर साल सिलेंडर, किचन की बात होती है, या सौंदर्य प्रसाधनों को लेकर बात की जाती है। ये मैसेज भी बदला जाए। इस तरह का प्रचार न हो। बजट में ये टिप्‍पणी न आए कि दाल के दाम बढ़े तो महिलाएं प्रभावित होंगी।अनहद की शबनम हाशमी कहती है कि पिछली बार जो बजट काटा है, वह बढ़ाया जाना चाहिए। शिक्षा और स्‍वास्‍थ्‍य में बजट में बढ़ोत्‍तरी हो। ताकि महिलाओं को इससे फायदा मिले। कृषि में भी महिलाएं सबसे ज्‍यादा लगी हैं, ऐसे में उसमें भी बजट बढ़े।

news18

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