‘टीम इंडिया’ ने तैयार किया ‘न्यू इंडिया’ का रोडमैप
भारत कैसे न्यू इंडिया बने इसके लेकर पीएम मोदी ने राष्ट्रपति भवन में टीम इंडिया के साथ कई घंटों की मैराथन बैठक की। देश में तेजी से बदलाव लाने के लिए नीति आयोग की गवर्निंग काउंसिल की बैठक में चर्चा हुई।
नीति आयोग की बैठक में 15 साल का रोडमैप पेश !
नीति आयोग की बैठक में भारत में बदलाव लाने का अगले 15 साल का रोडमैप पेश हुआ। इससे पहले पंचवर्षीय योजनाएं बनी करती थीं। 12वीं पंचवर्षीय योजना 31 मार्च 2017 को खत्म होने वाली थी, लेकिन मंत्रालयों को अपने कामकाज निपटाने के लिए आखिरी पंचवर्षीय योजना को छह महीने का विस्तार दे दिया गया है।
3 साल का ऐक्शन प्लान बनेगा
नेहरू के समाजवाद के इस प्रमुख घटक का खात्मा हो जाएगा। नई व्यवस्था में तीन साल का ऐक्शन प्लान बनेगा जो सात वर्षीय स्ट्रैटिजी पेपर और 15 वर्षीय विजन डॉक्युमेंट का हिस्सा होगा। योजना आयोग की जगह लेने वाले नीति आयोग 1 अप्रैल को तीन वर्षीय ऐक्शन प्लान लॉन्च चुका है।
साल 1920 में हुई थी पंचवर्षीय योजना की शुरुआत
पंचवर्षीय योजना में केंद्र सरकार का आर्थिक और सामाजिक विकास कार्यक्रम शामिल होता था। तत्कालीन यूएसएसआर के प्रेजिडेंट जोसफ स्टालिन ने पहली पंचवर्षीय योजना की शुरुआत साल 1920 में की थी। 1947 में मिलने के बाद भारत ने भी समाजवाद का रास्ता अख्तियार किया, लेकिन देश में सार्वजनिक और निजी क्षेत्र, दोनों की मौजूदगी की वजह से यहां यूएसएसआर की तरह व्यापक योजना लागू करना मुश्किल था। इसलिए, यहां सिर्फ पब्लिक सेक्टर के लिए योजनाएं बनाई जाने लगीं। साल 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना अस्तित्व में आई। इसके पीछे का मकसद सरकारी धन को समानुपाती विकास पर खर्च करने का था।
पंचवर्षीय योजना से सामाजिक स्तर और उद्योग निर्माण का स्तर उठा
पंचवर्षीय योजनाओं ने भारत के सामाजिक क्षेत्र का स्तर उठाने और भारी उद्योग के निर्माण में अहम भूमिका निभाई। एक सेंट्रलाइज्ड प्लानिंग सिस्टम में यह सुनिश्चित होता था कि पैसे सबसे जरूरी जगह पर खर्च हों।
योजना आयोग राज्यों से करता था दादागिरी
लंबे समय से यह महसूस किया जा रहा था कि भारत जैसे विविधापूर्ण और बड़े देश में सेंट्रलाइज्ड प्लानिंग एक खास सीमा से आगे कारगर नहीं हो सकती। चूंकि, योजना आयोग केंद्र सरकार के तहत आ रहा था, इसलिए धन आवंटित करते वक्त इसका इस्तेमाल कई बार विरोधी राज्यों को दंडित करने में भी होता रहा। इसमें टॉप-टु-बॉटम अप्रोच की वजह से महसूस किया जाने लगा कि राज्यों को अपने खर्च की प्लानिंग करने में ज्यादा अहमियत मिलनी चाहिए। योजना आयोग ने कई बार राज्यों पर दादागिरी दिखाई जबकि राज्यों को अपने खर्चों की ज्यादा अच्छी समझ होती है।
नीति आयोग और योजना आयोग में क्या है अंतर ?
योजना आयोग की जगह अब नीति आयोग नीतिगत दिशा निर्देश तय करेगा। इसका मूल सिद्धांत ‘सहकारी संघवाद’ है। सबसे अहम अंतर यह है कि नीति आयोग के पास फंड ग्रांट करने की शक्ति नहीं है। वह राज्यों की ओर से कोई फैसला नहीं ले सकता। यह सिर्फ सलाहकार संस्था के रूप में काम करता है।
नीति आयोग के पास नहीं है वित्तीय अधिकार
सरकार को विकास का व्यापक नक्शा प्रदान करता है। त्रिवर्षीय कार्य योजना में किसी स्कीम या अलोकेशन का जिक्र नहीं होता है क्योंकि नीति आयोग के पास कोई वित्तीय अधिकार है ही नहीं। चूंकि इसे केंद्रीय कैबिनेट से स्वीकृति नहीं मिल सकती, इसलिए इसके सुझाव सरकार के लिए बाध्यकारी नहीं हैं। सरकार ने योजनागत और गैर-योजनागत व्यय के रूप में खर्चों के श्रेणीकरण खत्म कर दी, इसलिए नीति आयोग के दस्तावेजों की वित्तीय भूमिका नहीं होती है। वो सरकारों के लिए सिर्फ नीति निर्धारण को लेकर निर्देश देने तक सीमित हैं।