इंसेफेलाइटिस से बचाव के लिए डॉक्टर लेंगे नक्षत्रों का सहारा

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इंसेफेलाइटिस से बच्चों को बचाने के लिए डॉक्टर भी नक्षत्रों की शरण में चले गए हैं। डॉक्टर गोरखपुर के कई गांवों में पुष्य नक्षत्र में बच्चों को ‘स्वर्णप्राशन’ की दवा दे रहे हैं। उनका दावा है कि ऐसा करने से पिछले आठ महीने में गांवों में किसी बच्चे को इंसेफेलाइटिस नहीं हुआ है। जबकि पहले यह आम बात थी।

इस कामयाबी को देखते हुए शासन ने केंद्र से इंसेफेलाइटिस प्रभावित क्षेत्रों में पुष्य नक्षत्र में इस दवा का सेवन कराने की सिफारिश की है। किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों और आरोग्य भारती ने जनवरी 2018 से संयुक्त रूप से इंसेफेलाइटिस प्रभावित सहजनवा के भड़सार, तेलियाडीह, गोपलापुर, चिरईयागांव और परसाडाढ़ में बच्चों को स्वर्णप्राशन दवा पिलाने का काम शुरू किया था।

कोई बच्चा इंसेफेलाइटिस से बीमार नहीं हुआ है

डॉक्टरों का दावा है कि बच्चों को पुष्य नक्षत्र में इस दवा को पिलाने के बाद उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता में काफी इजाफा हुआ है। यही वजह है कि पिछले आठ महीनों में 10 हजार की आबादी वाले इन गांवों में कोई बच्चा इंसेफेलाइटिस से बीमार नहीं हुआ है। वर्ष 2017 में भड़सार में इंसेफेलाइटिस से पांच बच्चे बीमार हुए और एक की मौत हो गई थी। बीते एक दशक में हर साल चार से छह मासूम इंसेफेलाइटिस के शिकार हो रहे हैं।

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स्वर्णप्राशन के सेवन के साथ ही गांव में हर महीने केजीएमयू की टीम कैंप भी लगाती है। कैंप में बच्चों के साथ गांव वालों की सेहत की जांच की जाती है। दवा के सेवन से बीमार बच्चों की सेहत भी सुधर गई। आरोग्य भारती की रिपोर्ट के बाद आयुष विभाग के तत्कालीन सचिव मुकेश मेश्राम ने केंद्र से प्रभावित गांवों में यह अभियान चलाने की सिफारिश की है।

बेहद खास है स्वर्णप्राशन

यह दवा शुद्ध स्वर्ण, गाय का घी, शहद, अश्वगंधा, ब्राह्मी, वचा, गिलोय, शंखपुष्पी जैसी औषधियों से बनाया जाती है। इस दवा की चंद बूदें ही बच्चों को पिलाई जाती हैं। छह महीने से लेकर 16 साल तक के बच्चों को यह दवा पुष्य नक्षत्र में पिलाई जाती है।

केजीएमयू के आउटरीच प्रोग्राम प्रभारी डॉ. संदीप तिवारी के अनुसार, इस स्वर्णप्राशन से भड़सार गांव में एक भी इंसेफेलाइटिस का केस सामने नहीं आया। इस केस स्टडी को केंद्र सरकार के साथ राज्य आयुष विभाग को भेजा गया है।साभार

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