राजेंद्र प्रसन्ना की बांसुरी और पं. संजू सहाय के तबले से गूंजा मां कूष्माण्डा का दरबार

मां कूष्माण्डा वार्षिक श्रृंगार एवं संगीत समारोह की दूसरी निशा

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वाराणसी के मां कूष्माण्डा (दुर्गा मंदिर) संगीत समारोह के दूसरे दिन रविवार को नादब्रह्म के उपासकों ने अपनी माता के दरबार में अपनी कला साधना की अलख जगाई. आदिशक्ति जगत जननी संगीत के जरिए उपासना की और उनके श्रीचरणों में शीश झुकाकर उज्जवल भविष्य की प्रार्थना की. इसके साथ ही दुर्गाकुण्ड स्थित मां कूष्माण्डा का दरबार उदयीमान कलाकारो के साथ ख्यातिलब्ध कलाकारों की प्रस्तुतियों से देर रात तक चहकता रहा. इस दौरान दिल्ली से आये राजेंद्र प्रसन्ना की बांसुरी और बनारस घराने के ख्यातिप्राप्त तबला वादक पंडित संजू सहाय की युगलबंदी ने संगीत रसिकों को आनंदित कर दिया.

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एक ओर काशी के कथक नर्तक विशाल कृष्ण के घुंघरूओं की झंकार से मंदिर प्रांगण झंकृत हुआ, वहीं राजेन्द्र प्रसन्ना और पंडित संजू सहाय शास्त्रीय संगीत के रसिकों को संगीत की गहराई में लेकर चले गये. कार्यक्रम के दौरान विशाल कृष्ण और संस्कृति शर्मा ने पहले देवी स्तुति ‘जय जय जगत जननी देवी से कथक का शुभारंभ किया. इसके बाद पारंपरिक कथक तीन ताल में तोड़े, टुकड़े, तिहाई, परन आदि की सधे अंदाज में प्रस्तुति दी. संस्कृति शर्मा ने पण्डित बिरजू महाराज की रचना ठुमरी ‘लपक झपक. प्रस्तुत किया. अंत में दोनों कलाकारों ने मीराबाई का प्रसिद्ध भजन ‘बदरिया सावन की‘ प्रस्तुत कर समापन किया.
पांचवीं प्रस्तुति देश के जानेमाने बांसुरी वादक पंडित राजेंद्र प्रसन्ना और तबला वादक पंडित संजू सहाय की रही. मां दुर्गा के सामने मंच पर राजेन्द्र प्रसन्ना ने जब अपनी तीन पीढ़ियों के साथ प्रस्तुति दी तो समूचा परिसर तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजने लगा. उन्होंने सबसे पहले राग सरस्वती में विलंबित ताल की धुन प्रस्तुत किया. अंत में कजरी की धुन ने सबको मंत्रमुग्ध कर दिया. उनके साथ बांसुरी पर उनके पुत्र राजेश प्रसन्ना एवं पौत्र विशाल प्रसन्ना रहे.

बंगलुरू की संगीता कुलकर्णी ने सुनाया-‘भाग्यदा लक्ष्मी बारम्बार‘

छठी प्रस्तुति बंगलुरू से आई शास्त्रीय गायिका संगीता कुलकर्णी की रही. उन्होंने सबसे पहले राग यमन में बड़ा ख्याल विलंबित तीन ताल में बन्दिश ‘मो मन लगन लागी‘ प्रस्तुत किया. इसके बाद द्रुत तीन ताल में ‘ए री आली पिया बिन‘ की प्रस्तुति दी और अंत में पं. भीमसेन जोशी द्वारा रचित भगवती पर आधारित कन्नड़ भजन ‘भाग्यदा लक्ष्मी बारम्बार‘ प्रस्तुत कर समापन किया. उनके साथ तबले पर पं. नंद किशोर मिश्रा और हारमोनियम पर हर्षित उपाध्याय रहे. नेपथ्य में डॉ. रामशंकर, डॉ. मीना मिश्रा का गायन रहा. डॉ. प्रेम किशोर एवं शिवांग की सितार पर जुगलबंदी हुई. प्रो. प्रवीण उद्धव का तबला वादन, काशी नाद सोल ऑफ म्यूजिक के समूह का वाद्य वृन्द और कार्यक्रम के में अभिजीत चक्रवर्ती के कथक की प्रस्तुति रही. इसके पूर्व समारोह की दूसरी निशा का शुभारंभ काशी की उभरती हुई कलाकार विदुषी वर्मा के भजन से हुआ. उनके साथ तबले पर रुद्रांश सिंह, हारमोनियम पर प्रवीण सिंह एवं बांसुरी पर ऋत्विक शुक्ला ने संगत किया. बाल कलाकार श्रेयसी मिश्र ने कथक प्रस्तुत किया. गणेश वंदना के बाद कूष्माण्डा स्तुति ऐ गिरी नंदिनी से मंँ की आराधना की. तीसरी प्रस्तुति काशी की ही चंदारानी का शास्त्रीय गायन रहा. उन्होंने सबसे पहले राग मधुवंती में छोटा ख्याल ‘उनसे मोरी लगन लागी‘ सुनाया. इसके बाद बड़ा ख्याल ‘तेरो गुण गाउं‘, दादरा ‘मोरा सैयां भए बेईमान‘ और अंत में ‘जय -जय भवानी दुर्गेरानी‘ भजन से समापन किया. संचालन प्रीतेश आचार्य एवं ललिता शर्मा ने किया.

सफेद मोतियों से सजीं मां कूष्माण्डा

महोत्सव के दूसरे दिन मां का सफेद मोतियों से दिव्य श्रृंगार किया गया. सोने में पिरोई सफेद मोतियों की माला से सुसज्जित मां की मनोहारी छवि देख भक्त निहाल होते रहे. मां दुर्गा की इस अलौकिक छवि के दर्शन करने भक्तों की अटूट कतार मंदिर के मुख्य द्वार से लगायत कुण्ड तक लगी रही. इस दौरान भक्तों में प्रसाद स्वरूप 5 कुंतल हलवा बांटा गया. इससे पहले सायं 4 बजे मंदिर का पट बंद कर मां का स्नान एवं श्रृंगार किया गया. पंचामृत स्नान के बाद स्वर्णमयी प्रतिमा को कोलकाता से मंगाए गए विशेष मंदाकिनी के फूलों से सजाया गया. उसके साथ जूही, गुलाब, रजनीगंधा, कमल पुष्पों से मां का श्रृंगार हुआ. शाम 6 बजे मंदिर का पट पुनः खोल दिया गया. श्रृंगार एवं आरती पण्डित संजय दुबे और चंचल दुबे ने किया. कार्यक्रम का संयोजन महंत राजनाथ दुबे, कलाकारों का स्वागत विकास दुबे, चंदन दुबे एवं किशन दुबे ने किया.

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