हरश्रृंगार का फूलना ही शरद के अस्तित्व का ऐलान है – हेमंत शर्मा

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ठंड की शुरुआत के साथ ही बाग-बगीचो में एक खास तरह के फूलों की चादर सी बिछ जाती है. सफ़ेद और केसरिया रंग के इस फूल को हरश्रृंगार कहते हैं. इसी श्वेत-सिंदूरी फूल की सुंदरता, उसकी खुशबू को वरिष्ठ पत्रकार, tv9 भारतवर्ष के डायरेक्टर और लेखक हेमंत शर्मा ने अपने फेसबुक वॉल पर सहेजने का जतन किया है. सचमुच इसकी सुगंध आपको मदहोश कर देगी…

हरश्रृंगार की टहनियां मन की गांठ की तरह खुलती हैं और उसके फूल टहनियों के बंधन से मुक्त हो पेड़ से झरने लगते हैं. धरती श्वेत सिंदुरी फूल की चादर ओढ़ लेती है.

हरश्रृंगार फूलने लगे हैं. इसे देख मन मगन, चित्त पुलकित है और बॉंछें खिली हुई है. (श्रीलाल जी के शब्दों में शरीर में जहां भी होती हैं ) यह मदमाता,शर्मिला और नशीला फूल आधी रात चुपके से फूलता है और फूलते ही झरने लगता है. जब भैरवी अपने आरोह पर होती है. आसावरी पूरे उठान पर होती है. तो इसका सौंदर्य चरम पर होता है. चिरैया बोलती है. इस दौरान धरती जल्दी जग जाती है. तभी हरश्रृंगार की टहनियाँ मन की गांठ की तरह खुलती हैं और उसके फूल टहनियों के बंधन से मुक्त हो पेड़ से झरने लगते हैं. धरती श्वेत सिंदुरी फूल की चादर ओढ़ लेती है.केसरिया रंग रति का और सफेद यौवन का प्रतीक है. सवेरा होते-होते हरश्रृंगार शांत और स्थिर हो जाता है.वातावरण उसकी भीनी गंध से उच्छ्वासित होता है.

जैसे जहाज का पंछी जहाज पर लौटता है.पखेरू शाम ढलते घोंसलों की तरफ लौटते हैं. चींटियाँ लौटती हैं अपने बिलों में. वैसे ही मेरा मन इस मौसम में बार-बार हरश्रृंगार की तरफ लौटता है. मुझे जिन फूलों से (अंग्रेजी के नहीं) बहुत प्यार है उसमें एक ‘पारिजात’ भी है. हरश्रृंगार को ही ‘पारिजात’, ‘शेफाली’, या ‘शेवली’ भी कहते हैं.किसी नाम से पुकारिए रूप और गंध नहीं बदलते हैं. हरश्रृंगार का फूलना ही शरद के अस्तित्व का ऐलान है.

पं विद्यानिवास कहते हैं. ” हरश्रृगॉंर का झरना उसके धैर्य की अंतिम सीमा है. मन का पहला उकसान है. प्रणय वेदना की सबसे भीतरी परत है” सड़क पर सुबह टहलने के मेरे आनंद को हरश्रृंगार के केसरिया डंठलवाले झड़े फूलों की चादर दुगना करती है.
इसका रंग और गंध दोनो बहकाती है. हरश्रृंगार के शर्मीले फूल मुनादी करते हैं कि पितृपक्ष के बाद त्योहारों का सिलसिला शुरू हो गया है. हरश्रृंगार फ़ूल है और शरद ऋतु है, दोनों एक दूसरे के आगमन की सूचना देते हैं. बसंत से जो रिश्ता बेला का है, हरश्रृंगार से वही रिश्ता शरद का है.शरद मानसून की उत्तर कथा है और हरश्रृंगार बरसात के उत्तरार्ध का फूल. इस मौसम में प्रकृति और निखर जाती है. कुदरत के कैनवास पर खिलती रात,मचलती प्रकृति और बहकता मन शरद की मूल प्रकृति है.

हरश्रृंगार शरद को अगोरता है. बादलों की धमा चौकड़ी के रुकने का इंतजार करता है. गुलाबी ठंड में इसके सौंदर्य का पर्दा चुपके से उठता है. सूरज की किरणों का हल्का ताप भी इसके फूल बर्दाश्त नहीं कर पाते. शरद की सुबह इसकी ताजगी से लबालब होती है. शरद उत्सव प्रिय है. इस एक ऋतु में जितने उत्सव होते हैं. पूरे साल में नहीं होते. उत्सव किसी समाज की जीवित परंपरा होते हैं. उत्सवों के जरिए हम अतीत से ताकत लेते हैं।जीवन में नए रस का संचार होता है. देवी का यह पसंदीदा फूल है. शारदीय नवरात्र की श्रृंगार श्रृंखला है ‘पारिजात’. इसे हरश्रृंगार बोलें शेफाली या शिवली. इसकी भीनी-भीनी खुशबू और भीनी-भीनी यादें बचपन को कुरेदती हैं. नवरात्रों में दादी की पूजा के लिए फूल लाने का जिम्मा मेरा था.

पारिजात के फूल को तोड़ने का विधान नहीं है. वजह यह ईश्वरीय पेड़ है. समुद्र मंथन में निकला है और गिरे हुए फूल देवी को चढ़ाते नहीं. जमीन पर गिरे फूल देवता कैसे स्वीकार करेंगे? दुविधा थी. इन्हें जमीन पर गिरे बिना चुनना एक चुनौती थी. मैं पड़ोसी की दीवार की मुंडेर पर पारिजात के गिरे फूलों को चुनकर लता था. शास्त्रों में पूजा में फूल आकाश तत्व माने गए है. आकाश की तरह मुक्त, निर्विकार, फैले हुए और प्रसन्न. फिर यह तो समुद्र मंथन से निकला फूल है. फूल से पहले गंध पार्थिव तत्व है. चंदन के साथ केसर घिसते हैं. गंध के बाद फूल अर्पित करते हैं. इस अर्पण में रंग है, आकार है, गंध है. शरद की रात धरती की धानी चादर पर ओस की बूँदें, भोर की रोशनी में प्रकृति के सातो रंगों को खोलती है. हर बूंद में इंद्र धनुष बैठा रहता है.

हरश्रृंगार पेड़ से अपने आप गिरता है. चुपके से. उसकी डालों को झहराना नहीं पड़ता. झहराना हरश्रृंगार के लिए गंवारपन है. गाहा सत्तसई कहती है.“उच्चिणसु पडिअ कुसुमं मा धुण सेहालिअं हलिअसुह्णे। अह दे विसमविरावो समुरेण सुओ वलासद्दो।।”गंवार हलवाहिनी गिरे हुए फूलों को ही चुनो. हरश्रृंगार की डाल मत झहराओ. झहराने से वह फूल नहीं देगा. उल्टे झहराते वक्त तुम्हारी चूडियां खनकेगीं. उसकी खनक तुम्हारे ससुर के कान में पड़ेगी.

हरश्रृंगार दक्षिण एशिया में ही पाया जाता है. खास तौर पर उत्तरी भारत, नेपाल, पाकिस्‍तान और थाईलैंड में. कहते हैं कि पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई थी. जिसे इंद्र ने अपनी वाटिका में रोप दिया था. हरिवंशपुराण में इस वृक्ष और फूल वर्णन है.
पौराणिक मान्यता अनुसार पारिजात के वृक्ष को स्वर्ग से लाकर धरती पर लगाया गया.नरकासुर वध के बाद श्रीकृष्ण को इन्द्र ने पारिजात का पुष्प भेंट किया. वह फूल श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को दे दिया. सत्यभामा को देवलोक से देवमाता अदिति ने चिरयौवन का आशीर्वाद दिया. नारदजी ने सत्यभामा को पारिजात पुष्प के बारे में बताया कि इसी पुष्प के प्रभाव से रुक्मिणी भी चिरयौवन हो गई हैं. यह जान सत्यभामा क्रोधित हो गईं और श्रीकृष्ण से पारिजात वृक्ष लेने की जिद्द करने लगी. बड़ी मशक्कत से कृष्ण इस मुश्किल से निकले.

समुद्र मंथन में पाए जाने वाले इस अप्रतिम वृक्ष पारिजात का बोटेनिकल नाम ‘निक्‍टेन्थिस आर्बोर्ट्रिस्टिस’ है। संस्‍कृत में इसे ‘शेफाली’, ‘शेफालिका’ , शिउली भी कहते है. लोक में सामान्य तौर पर इसे ‘हरश्रृंगार’, ‘पारिजात’, अंग्रेज़ी में ‘नाइट जैसमीन’, ‘कोरल जैसमीन’, के तौर पर जाना जाता है. मराठी में ‘पारिजातक’, गुजराती में ‘हरशणगार’, बंगला में ‘शेफालिका’, ‘शिउली’,
तेलुगू में ‘पारिजातमु’, ‘पगडमल्लै’ तमिल में ‘पवलमल्लिकै’, ‘मज्जपु, मलयालम में ‘पारिजातकोय’, ‘पविझमल्लि’, कन्नड़ में ‘पारिजात’ और उर्दू में ‘गुलजाफरी’ कहते हैं.उत्तर प्रदेश में दुर्लभ प्रजाति के इस पारिजात के हजारों साल पुराने दो वृक्ष वन विभाग इटावा के परिसर में हैं. जो ‘देवताओं और राक्षसों के बीच हुए समुद्र मंथन’ के गवाह हैं.

हरश्रृंगार पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्‍प है. मां दुर्गा और भगवान विष्‍णु को हरश्रृंगार के फूल अर्पित किए जाते हैं. खासतौर पर लक्ष्मी पूजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन केवल उन्हीं फूलों को इस्तेमाल किया जाता है, जो अपने आप पेड़ से टूटकर नीचे गिर जाते हैं।

माना जाता है कि पारिजात के वृक्ष को छूने मात्र से ही व्यक्ति की थकान मिटाती है. मस्तिष्क शांत होता है. आयुर्वेद दिल की बीमारी में हरश्रृंगार का प्रयोग बेहद लाभकारी बताता है. इसके फूल, पत्ते और छाल का इस्तेमाल दवा के रूप में होता रहा है.
हरश्रृंगार कई रोगों की दवाई है. हरश्रृंगार के पेड़ के एंटीऑक्सीडेंट, सूजन-रोधी और जीवाणुरोधी गुण है. हरश्रृंगार में रक्त को साफ करने की भी क्षमता होती है. हरश्रृंगार के फूलों की सुगंध से मन प्रफुल्लित होता है, तनाव दूर होता है. इसकी जादुई खुशबू नकारात्मक सोच को भी दूर रखती है. हरश्रृंगार की पत्तियों का इस्तेमाल मलेरिया के इलाज के लिए किया जाता है.

खासतौर पर यह प्लाज्मोडियम फाल्सीपेरम के खिलाफ अधिक उपयोगी होता है. हरश्रृंगार शक्तिशाली एंटी-बैक्टीरियल और एंटीवायरल है. यह विभिन्न प्रकार के त्वचा संक्रमण, एलर्जी और चकत्ते का इलाज भी करता है. वह न केवल बैक्टीरिया के खिलाफ लड़ता है, बल्कि सेम्लिकी फारेस्ट वायरस, और कार्डियोवायरस के खिलाफ लड़ने में भी मदद करता है जो एन्सेफलोमाकार्डिटिस का कारण है. चाहे बुखार कितना ही पुराना क्यों न हो, हरश्रृंगार के पत्तों का रस पीने से वह जड़ से ख़त्म होता है। ऐसा चरक कहते हैं.

हरश्रृंगार के फूल को ज्योतिष में बेहद चमत्कारी मानते है। शास्त्रों में जिन पेड़ पौधों में दैवीय ऊर्जा बताई गई है, उनमें हरश्रृंगार एक है। धार्मिक मान्यता है कि जिस घर में हरश्रृंगार का पौधा होता है, उस घर में लक्ष्मी का वास होता है. इस पौधे को अगर घर में सही दिशा में लगाया जाए तो समस्याएं दूर होती हैं।आरोग्य तो मिलता ही है और सौन्दर्य का वर्णन कालिदास से भवभूति और तुलसीदास से Yash Malviya तक कर गए हैं.

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अगर आपको स्वर्ग के इस पेड़ के बारे में जानना है तो उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में चले जाइए. यहाँ आपको रात में फूल खिलाने वाला अनोखा स्वर्ग का पेड़ मिलेगा. बाराबंकी जिले का किन्तुर गाँव महाभारत कालीन है . अपने अज्ञातवास के दौरान पाण्डव यहाँ रूके थे. कहते हैं यहाँ हरश्रृंगार के फूल रोज रात को खिलते हैं और सुबह होते ही झड़ जाते हैं. इस दिव्य पेड़ को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.

हरश्रृंगार बिना शोर शराबे के पुष्पदान करता है. किसी जातक के पुकार की प्रतीक्षा नहीं करता. किसी झींगुर के झंकार की याचना नहीं करता. किसी चपला के आलिंगन का इंतजार नहीं करता. वह देता चला जाता है जब तक उसकी टहनियों में एक भी फूल बचा रहता है. वह सर्वस्व दान करता है। हम सब में हरश्रृंगार की दानशीलता, उदात्तता, रागात्मकता और निरपेक्षता आ सके इसी कामना के साथ…

जय जय.

 

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