200 रुपए से खड़ी कर दी 130 करोड़ टर्न ओवर की कंपनी

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कहते हैं दुनिया में कोई भी कां छोटा या बड़ा नहीं होता है। किसी भी काम को करने के लिए बस जुनून होना चाहिए, क्योंकि जब आप किसी काम को पूरी लगन और ईमानदारी के साथ करते हैं तो उसमें सफलता अवश्य ही मिलती है। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है महाराष्ट्र में पले बढ़े अरुण ने।

अरुण के पिता कैंटोंमेंट बोर्ड में हेल्थ सुपरवाइजर की नौकरी करते थे। अरुण ने दसवीं पास करने के बाद अपने चाचा की फुटवेयर की दुकान पर बैठते थे। अरुण को शुरू से ही बिजनेस में लगाव होने के कारण अपने चाचा की दुकान पर बैठने में मजा आता था। अरुण जितनी चाव से दुकान पर बैठना पसंद करते थे उतना पढ़ाई में उनका मन नहीं लगता था।

अरुण को बिजनेस के साथ ही दुनिया घूमने का सपना था। अरुण के बड़े भाई मेडिकल की तैयारी करते थे। लेकिन अरुण को उनके पिता इंजीनियर बनाना चाहते थे। लेकिन अरुण को शायद पढ़ाई में कम ही मन लगता था। इसलिए वो स्कूल से निकलने के बाद सीधे अपने अंकल की शॉप पर जाते थे। लेकिन परिवार वालों के दबाव बनाने के कारण उन्होंने पॉलिटेक्निक में मकैनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन ले लिया।

उस वक्त ऑनलाइन टिकट की व्यवस्था नहीं थी और वह कमीशन पर रेलवे के टिकट भी काटते थे। इस वक्त वह सुदर्शन केमिकल में काम भी कर रहे थे और ये सब काम भी देख रहे थे। 1994 में उन्होंने कार रेंटल के बिजनेस में कदम रखा। उनकी कंपनी के अधिकारी ही उनके पहले क्लाइंट्स थे। धीरे-धीरे उन्होंने कुछ और कारें खरीदीं और रेंटल का बिजनेस आगे बढ़ाया।

1996 में उन्होंने अपनी पहली कार खरीदी जो कि एक सेकेंड हैंड फिएट थी। इसके बाद उन्होंने एक सेकेंड हैंड ऐम्बैस्डर खरीदी जो अधिकतर सरकारी ऑफिसों में काम में लाई जाती थी। तीन साल की पॉलिटेक्निक खत्म करने के बाद 1991-92 में उन्हें पुणे में ट्रेनी इंजिनियर की एक जॉब मिली। उसके बाद उन्होंने टाटा की कंपनी टेल्को में काम किया।

यहां काम करते वक्त उन्हें अहसास हुआ कि ऐसी नौकरी से वे अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच सकते। उन्होंने ये नौकरी भी छोड़ दी और सुदर्शन केमिकल में काम करना शुरू कर दिया। उस वक्त उनकी सैलरी सिर्फ 1,800 रुपये महीने थी। केमिकल कंपनी में काम करते वक्त अरुण को विदेश घूमने का मन करने लगा।

क्योंकि उनके सीनियर अधिकारी अक्सर विदेश घूमा करते थे। इसके साथ ही वह एक साइड बिजनेस भी करना चाहते थे। उन्होंने अपने पिता से 200 रुपये उधार लिए और एक किराए की दुकान में STD बूथ शुरू कर दिया। इसके बाद उन्होंने लंबी दूरी के बस ऑपरेट करने वाली प्राइवेट कंपनी के टिकट एजेंट के तौर पर भी काम किया।

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लेकिन अरुण को तो कुछ और ही करना था इसलिए उनका मन नौकरी में नहीं लग रहा था। जिसकी वजह से उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। जिसके बाद उन्होंने सोचा कि अगर किसी भी बिजनेस को आगे बढ़ाना है तो सबसे पहले उसकी बारीकियों को सीखना होगा। इसी के चलते उन्होंने एक इंस्टीट्यूट से बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन कोर्स में पीजी डिप्लोमा कर लिया।

इसी दौरान उनकी मुलाकात एक और स्टूडेंट भारती से हुई। दोनों में प्यार हुआ और उन्होंने 1995 में शादी कर ली। 2006 में अरुण ने रेडियो कैब सर्विस शुरू की थी। उस वक्त ओला और ऊबर जैसी कंपनियों का पता भी नहीं था। 2008 में उनका टर्नओवर डबल हो गया और लगभग 2500 कारें 70 कंपनियों में चलने लगीं। 2014-15 में उनकी कंपनी का टर्नओवर 130 करोड़ पहुंच गया था।

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