कभी पैसे की वजह से छोड़नी पड़ी थी पढ़ाई, आज सैकड़ों बच्चों को दिला रहा शिक्षा

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इंसान के अगर हौसले बुलंद हो और मेहनत करने का जुनून हो तो कोई भी मंजिल पा सकता है। जरुरी नहीं होता है कि मंजिल पाने के लिए सिर्फ पैसे और किस्मत की जरुरत होती है। क्योंकि अगर मंजिल पैसे और किस्मत से मिलती तो शायद आज बहुत से ऐसे लोग है जिन्हें उनकी मंजिल नसीब न होती। जो इंसान अपनी जिंदगी में कड़ी चुनौती को कुबूल कर लेता है वही आगे जाकर इतिहास लिखता है।

कुछ ऐसी ही कहानी है पश्चिम बंगाल के गाजी जलाउद्दीन की। गाजी का परिवार इतना गरीब था कि गाजी को कक्षा दो में पहुंचते पहुंचते ही स्कूल को अलविदा कहना पड़ा। गाजी पढ़ाई में तेज होने के बाद भी घर की मजबूरियों को देखते हुए काम करने का फैसला किया। गाजी ने महज 13 साल की उम्र से रिक्शा चलाना शुरू कर दिया।

18 साल की उम्र में गाजी ने ड्राइविंग सीख ली और टैक्सी ड्राइवर बन गए लेकिन उनके दिमाग में यही बात चल रही थी कि गांव के दूसरे बच्चे भी उनकी तरह ही किस्मत के हारे न बन जाएं।  आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों की बात को ध्यान में रखते हुए गाजी ने ‘सुंदरवन ड्राइविंग समिति’ बनाई जो सुंदरवन के गांव के युवकों को ड्राइविंग सिखाती है ताकि वो अपनी जिंदगी बड़ी आसानी से काट सकें।

गाजी ने बताया कि उन्होंने पहले अपनी क्लास में 10 युवकों को मुफ्त में ड्राइविंग सिखाई और उन्हें कहा कि जब वो ड्राइविंग से कमाना शुरू कर दें तो अपनी कमाई से 5 रुपये इस समिति को दान में दे दें। सिर्फ इतना ही नहीं उन्होंने अपने छात्रों से कहा कि वो गांव के दूसरे युवकों को भी ड्राइविंग सिखाएं।

इस तरह से ड्राइविंग स्कूल की चेन चलने लगी। अब उस स्कूल में 300 युवक हैं जो टैक्सी चलाकर पैसे कमा रहे हैं। गाजी यहीं नहीं रुके उन्होंने अपने 2 कमरे के छोटे से घर के एक कमरे में स्कूल खोल लिया। इस स्कूल में उन बच्चों को पढ़ाया जाने लगा जिनके माता पिता उन्हें पैसे की कमी के चलते शिक्षा नहीं दे सकते थे।

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साल 1998 में गाजी ने इस्माइल इस्राफिल (गाजी के दोनों बेटों के नाम से) फ्री प्राइमरी स्कूल की स्थापना की। 2 शिक्षक और 22 छात्रों से इस स्कूल की शुरुआत हुई। इसके बाद ड्राइविंग से आने वाली डोनेशन के बल पर गाजी ने साल 2012 तक स्कूल के लिए एक पूरी बिल्डिंग खरीद ली। उस इमारत में 12 कक्षाएं, 2 शौचालय और एक मिड डे मील रूम मौजूद हैं। अब स्कूल में 21 शिक्षक और करीब 450 बच्चे पढ़ते हैं।

 

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