कृषि को लेकर नीति आयोग ने राज्यों को सौंपी ये जिम्मेदारी…

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नीति आयोग के सदस्य बिबेक देबोराय कृषि आय पर कर लगाने की अपनी टिप्पणी की आलोचना के बावजूद अपनी बात पर कायम हैं और उनका कहना है कि इसकी जिम्मेदारी राज्यों पर होनी चाहिए।  देबोराय ने कहा, “मैंने कहा था कि दायरे से बाहर निकलकर कृषि आय को कर दायरे में लाना चाहिए।

मैंने यह भी कहा था कि यह राज्यों का विषय है और इसे लागू करने की जिम्मेदारी राज्यों पर है। तब मैंने यह विचार व्यक्त किए थे और अब भी मेरा यही विचार है।” देबोरॉय ने साथ ही यह भी कहा कि उनके और केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली के विचारों में कोई विरोधाभास नहीं है।

देबोराय द्वारा 25 अप्रैल को दिए गए बयान पर राजनीतिक दलों ने हो-हल्ला मचाया था। केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसदों ने भी देबोराय के बयान की आलोचना की थी और कहा था कि इस तरह के अर्थशाियों का जमीनी हकीकत से कोई वास्ता नहीं होता, उन्हें किसानों की समस्या के बारे में कुछ नहीं पता।

देबोराय के बयान देने के अगले ही दिन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्पष्टीकरण दिया कि केंद्र सरकार की कृषि आय पर कर लगाने की कोई योजना नहीं है, क्योंकि उनके पास ऐसा करने का संवैधानिक अधिकार ही नहीं है। देबोरॉय ने हैरानी जताते हुए कहा, “वित्त मंत्री ने यह भी कहा था कि यह राज्यों का विषय है और केंद्र सरकार की कृषि आय पर कर लगाने की कोई योजना नहीं है। मैंने जो कहा उससे यह विरोधाभासी कैसे हुआ।”

उन्होंने कहा कि यहां तक कि मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यम का बयान उनके बयान से मिलता जुलता रहा। सुब्रमण्यम ने 28 अप्रैल को यह कहकर इस विवाद को फिर से हवा दे दी थी कि राज्य सरकारों को कृषि आय पर कर लगाने से कोई रोक नहीं है, क्योंकि संवैधानिक प्रतिबंध सिर्फ केंद्र सरकार पर है।

देबोरॉय ने यह भी कहा कि पहले से ही सात-आठ राज्यों में कृषि आय को कर के दायरे में लाया जा चुका है, जिनमें असम, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल शामिल हैं। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ऐसा हो सकता है कि कुछ खास मामलों में कृषि आय पर कर लगाया गया हो, लेकिन यह मौजूद है।

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देबोरॉय ने कहा, “इस पर विवाद खड़ा करने वाले आधे लोगों को तो इतना भी नहीं पता कि भारत में 1953-54 से ही कृषि आय पर कर लगाने को लेकर चर्चा चल रही है। उन्हें यह भी नहीं पता होगा कि 1972-73 में एक के. एन. राज समिति की रिपोर्ट ‘कृषि संपत्ति एवं आय पर कर निर्धारण’ आई थी, जिसमें क्रियान्वयन की बात कही गई थी।”

उन्होंने आगे कहा, “उन्हें यह भी नहीं पता होगा कि 2002 में केलकर कार्य बल की एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि अगर मौजूदा दायरे का इस्तेमाल करें तो 95 फीसदी किसान इसके अंतर्गत आ जाएंगे।” उन्होंने कहा कि मीडिया अनावश्यक तरीके से इस विवाद को खड़ा करने की कोशिश कर रही है।

देबोरॉय ने कहा कि वित्त वर्ष 2014-15 में देश भर में 307 व्यक्तियों ने एक करोड़ रुपये से अधिक कृषि आय घोषित की, प्रसंगवश मैंने इसका उल्लेख किया, लेकिन यहां कुछ तो गड़बड़ है। देबोरॉय ने कहा कि एक कंपनी ऐसी भी है, जिसका लाभ 215 करोड़ रुपये रहा, लेकिन कंपनी ने कृषि से होने वाली आय दिखाकर सैकड़ों करोड़ रुपये कर से छूट का दावा किया।

पिछले सप्ताह आई देबोरॉय की टिप्पणी के बाद नीति आयोग ने एक वक्तव्य जारी कर कहा था कि कृषि आय पर कर लगाने का देबोरॉय का सुझाव आयोग के विचार नहीं हैं और न ही यह नीति आयोग के प्रस्तावित एजेंडा का हिस्सा है।

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