स्टार्टअप: एक फैशन डिजाइनर ने ग्रामीण महिलाओं को बनाया आत्मनिर्भर
वाराणसी के नरोत्तमपुर गांव में कल तक घूंघट में सिमटी रहने वाली ग्रामीण महिलाएं आज कामयाबी की नई कहानी लिख रही है। इन महिलाओं की मेहनत और कुछ अलग करने की जिद्द ने इन्हें उस मुकाम पर ला खड़ा कर दिया है। जहां पहुंचना हर किसी का सपना होता है। ये महिलाएं पीएम मोदी के स्टार्टअप इंडिया के सपनों को साकार करने में जुटी हैं। महिलाओं की इस सफलता का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वह हैं फैशन डिजाइनर शिप्रा शांडिल्य। शिप्रा ने काशी के दर्जनों गांवों की महिलाओं के हुनर को पहचाना और अब उन्हें तरासने का काम कर रही हैं। शिप्रा की बदौलत आज इन महिलाओं की जिंदगी पटरी पर लौट आई है।
फरिश्ता बनकर आईं शिप्रा
काशी से सटे गाजीपुर जिले की मूल निवासी शिप्रा बनारस के ग्रामीण महिलाओं के लिए फरिश्ता बनकर आईं। फैशन डिजाइनर शिप्रा शांडिल्य फैशन की दुनिया में एक जाना पहचाना चेहरा है। उन्होंने कई साल तक दिल्ली और नोएडा जैसे शहरों में अपनी धाक जमाने के बाद अब काशी की महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जागरुक कर रही हैं।
महिलाओं के मेहनत से करोड़ों में पहुंचा कारोबार
शिप्रा ने छोटी सी पूंजी के साथ जप माला बनाने का काम शुरू किया और आज देखते ही देखते नोएडा, दिल्ली, सहित लखनऊ जैसे शहरों में उनका ये कारोबार फैल गया है। शिप्रा और उनके साथ काम करने वाली महिलाओं के लगन का ही नतीजा है कि हजारों से शुरू हुआ उनका ये कारोबार आज करोड़ों रुपए में पहुंच गया है। इन शहरों में शिप्रा ने बकायदा शो रूम खोला है। जहां बनारस में बनी हुई जप मालाएं हाथों हाथ बिकती है।
देश-विदेश तक पहुंच रही काशी की पहचान
विदेशों में जप मालाओं की बढ़ती मांग को देखते हुए शिप्रा ने malaindia.com के नाम से एक वेबसाइट बनाई है। विदेशों में डिजाइनर जप माला के लोग मुरीद होते जा रहे हैं। साथ ही कई ऑनलाइन मार्केटिंग कंपनी से शिप्रा की कंपनी का करार है। इंटरनेट के माध्यम से शिप्रा काशी की इस पहचान को देश-विदेश तक पहुंचा रही हैं। शिप्रा की कंपनी में हर प्रकार की जप मालाएं हैं। जिनमें काला रुद्राक्ष, चंदन की माला, तुलसी की माला, मुखदार रुद्राक्ष और रत्नों की माला खास है।
गांव को बनाया कर्मभूमि
बड़े शहरों में काम करने के बावजूद कुछ सालों बाद शिप्रा को गांव की माटी अपनी ओर खिंच लाई। और शिप्रा ने काशी के नरोत्तमपुर गांव को अपनी कर्मभूमि बना लिया। आमतौर पर इस गांव की महिलाएं फूलों की खेती करती थी और खाली समय में मोतियों की माली पिरोती थीं। लेकिन इन महिलाओं को काम के हिसाब से उन्हें मेहनताना नहीं मिलता था।
शिप्रा ने गांव की महिलाओं के हुनर को पहचाना और उन्हें अच्छी ट्रेनिंग देकर उनका उत्साह बढ़ाया। शिप्रा का सहारा पाकर महिलाओं ने अपना कौशल दिखाना शुरू किया और नतीजा सबके सामने हैं। फिलहाल शिप्रा इन महिलाओं के साथ मिलकर हर महीने लगभग आठ से दस लाख रुपए तक का व्यापार करती हैं।
विलुप्त होती संस्कृति को जिंदा रखने की कोशिश
आधुनिकता की आपाधापी में ग्रामीण परंपराएं विलुप्त होती जा रही हैं। धीरे-धीरे ग्रामीण अंचल अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। इसी को देखते हुए शिप्रा ने काशी में दशकों से बनने वाले जप मालाओं को अब फैशन से जोड़कर बड़ा कारोबार खड़ा कर लिया है। शिप्रा पिछले तीन सालों से जप मालाओं को बेहतर और आकर्षक रूप देने में लगी हैं, ताकि विलुप्त होती इन मालाओं को भारतीय कला और संस्कृति के तौर पर बचाया जा सके।
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना मकसद
शिप्रा का मकसद जप मालाओं के व्यापार के साथ-साथ महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना है। शिप्रा इस मुहिम में वाराणसी के नरोत्तमपुर गांव की महिलाओं को अपने साथ जोड़ा है। शिप्रा आज गांव की महिलाओं के साथ अपने रोजगार को भी आगे बढ़ा रही हैं। वर्तमान में शिप्रा के साथ इस रोजगार में 100 से अधिक ग्रामीण महिलाएं जुड़कर काम कर रही हैं। शिप्रा फैशन डिजाइनिंग का कोर्स करने के बाद से ही उन महिलाओं के लिए काम करना चाहती थीं जो आज समाज में हाशिए पर हैं।
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