‘स्पैडेक्स’ मिशन: भारत ने अंतरिक्ष में पहली बार अंकुरित किया जीवन
माइक्रोग्रैविटी वातावरण में संचालित हो रही पूरी प्रक्रिया
नई दिल्ली: भारत ने अंतरिक्ष में जीवन की संभावना तलाशने के प्रयास में एक ऐतिहासिक सफलता हासिल की है. इसरो (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन) ने ‘स्पैडेक्स’ मिशन के तहत लोबिया के बीज अंतरिक्ष में भेजे थे. यह पीएसएलवी (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) रॉकेट के चौथे चरण का उपयोग करके बनाई गई प्रयोगशाला में सिर्फ चार दिनों में अंकुरित हो गए. इन पर जल्द ही पत्तियां आने की उम्मीद है.
इसरो ने साझा की तस्वीर
इसरो ने अंतरिक्ष डाकिंग प्रयोग के तहत भेजे गए ‘चेज़र’ उपग्रह का एक ‘सेल्फी वीडियो’ साझा किया है, जो 470 किमी की ऊंचाई पर पृथ्वी की परिक्रमा कर रहा है.
शनिवार को इसरो ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा, “अंतरिक्ष में जीवन अंकुरित! इसरो के वीएसएससी के CROPS (कॉम्पैक्ट रिसर्च मॉड्यूल फॉर ऑर्बिटल प्लांट स्टडीज) प्रयोग ने PSLV-C60 POEM-4 (पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल) के तहत अंतरिक्ष में भेजे गए लोबिया के बीज 4 दिनों के भीतर अंकुरित हो गए हैं. जल्द ही पत्तियां उगने की उम्मीद है.’ इसरो ने इस उपलब्धि की तस्वीरें साझा की हैं.
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क्राप्स का उद्देश्य
‘स्पैडेक्स’ मिशन के ‘क्राप्स’ प्रयोग का उद्देश्य अंतरिक्ष में पौधों के विकास को माइक्रोग्रैविटी (न के बराबर गुरुत्वाकर्षण) वाली स्थितियों में समझना है. इस प्रयोग के माध्यम से वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश करेंगे कि अंतरिक्ष की विशिष्ट परिस्थितियों में पौधे कैसे बढ़ते और विकसित होते हैं.
भविष्य के लंबे अंतरिक्ष अभियानों के लिए यह प्रयोग अहम भूमिका निभाएगा. लोबिया के बीजों के अंकुरण से लेकर दो पत्तियां निकलने तक की प्रक्रिया पूरी तरह स्वचालित माइक्रोग्रैविटी वातावरण में संचालित की जा रही है.
क्यों चुने गए लोबिया के बीज?
लोबिया के बीज को इस प्रयोग के लिए इसलिए चुना गया क्योंकि ये तेजी से अंकुरित होते हैं और नियंत्रित वातावरण में इनके विकास को आसानी से मापा जा सकता है. इस प्रयोग में लोबिया के आठ बीजों को स्वचालित माइक्रोग्रैविटी वातावरण में उगाना शामिल है. बीजों के अंकुरण से लेकर पत्तियों के निकलने तक, यह प्रक्रिया पांच से सात दिनों तक चलेगी और पौधों के विकास और पोषण के चरणों का बारीकी से अध्ययन किया जाएगा.
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डाकिंग और अनडाकिंग तकनीक की ओर बढ़ते कदम
इसरो ने ‘स्पैडेक्स’ मिशन के साथ अंतरिक्ष डाकिंग और अनडाकिंग तकनीक का भी प्रदर्शन किया. डाकिंग का मतलब है- दो अंतरिक्ष यानों का आपस में जुड़ना, जबकि अनडाकिंग में वे अलग हो जाते हैं. यह तकनीक अमेरिका, रूस और चीन के बाद अब भारत को इस क्षेत्र में चौथा सक्षम देश बना देगी. डाकिंग प्रक्रिया 7 जनवरी तक पूरी होने की उम्मीद है.
पीओईएम-4 मिशन के तहत होंगे वैज्ञानिक प्रयोग
पीओईएम-4 (पीएसएलवी ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल) मिशन के तहत रॉकेट के चौथे चरण का उपयोग वैज्ञानिक प्रयोगों के लिए किया जा रहा है. 30 दिसंबर को लॉन्च किए गए पीएसएलवी-सी60 ने 24 पेलोड के साथ दो अंतरिक्ष यानों को कक्षा में स्थापित किया. पीओईएम इसरो का एक प्रायोगिक मिशन है, जिसका उद्देश्य अंतरिक्ष में वैज्ञानिक प्रयोगों को बढ़ावा देना है. यह मिशन अंतरिक्ष कचरे की समस्या से निपटने में भी मदद करेगा.