18 मई 1974, राजस्थान के पोखरण के रेगिस्तान में एक धमाका हुआ लेकिन न कोई युद्ध छिड़ा था, न ही कोई साजिश रची गई थी. यह भारत के इतिहास का सबसे बड़ा वैज्ञानिक चमत्कार था- पहला परमाणु परीक्षण, “Smiling Buddha”.
लेकिन क्या आप जानते हैं?
अमेरिका की खुफिया एजेंसी CIA को इसकी जरा भी भनक नहीं लगी.
भारत के अपने ही मंत्रियों को आखिरी समय तक इस मिशन की खबर नहीं थी.
यह सिर्फ एक परीक्षण नहीं था, बल्कि यह भारत के आत्मनिर्भर होने का ऐलान था. यह दिखाने का पल था कि अब भारत अपनी सुरक्षा के लिए किसी और पर निर्भर नहीं रहेगा.
लेकिन इस मिशन को सफल बनाने के लिए क्या-क्या त्याग किए गए? किस तरह इसे इतना गोपनीय रखा गया कि दुनिया की सबसे बड़ी खुफिया एजेंसियां भी धोखा खा गईं? आइए जानते हैं इस रोमांचक मिशन की पूरी कहानी.
कैसे शुरू हुआ भारत का परमाणु सफर?
आजादी के बाद भारत ने खुद को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करना शुरू किया. लेकिन असली मोड़ तब आया जब 1962 में भारत-चीन युद्ध और 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ. इन युद्धों ने दिखा दिया कि एक मजबूत सेना होने के बावजूद भारत को परमाणु शक्ति की जरूरत थी.
लेकिन भारत को परमाणु शक्ति संपन्न बनाने का सपना किसी नेता का नहीं, बल्कि डॉ. होमी भाभा का था. उन्होंने 1948 में “भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC)” की नींव रखी और कहा –
“अगर हमें कोई रोक सकता है, तो सिर्फ विज्ञान!”
लेकिन यह सपना पूरा होने से पहले ही 1966 में एक संदिग्ध हवाई दुर्घटना में डॉ. भाभा की मृत्यु हो गई.उनकी मृत्यु के बावजूद, प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस मिशन को हरी झंडी दी. और फिर शुरू हुआ एक ऐसा मिशन, जो पूरी दुनिया से छिपाकर तैयार किया गया.
गुप्त मिशन, जब CIA भी धोखा खा गई
1974 में वैज्ञानिकों को पोखरण में परीक्षण की तैयारी करने का आदेश दिया गया. इस ऑपरेशन को इतनी गोपनीयता से अंजाम दिया गया कि –
इस पूरे प्रोजेक्ट के दौरान वैज्ञानिकों को एक-दूसरे से कोड भाषा में बात करनी पड़ती थी. सुरक्षा इतनी कड़ी थी कि हर वैज्ञानिक को छद्म नाम (कोडनेम) दिए गए, ताकि असली पहचान किसी को न पता चले. दिलचस्प बात यह थी कि इन नामों की संख्या इतनी ज्यादा हो गई थी कि कई बार वैज्ञानिक खुद एक-दूसरे के नाम भूल जाते थे.
सभी वैज्ञानिकों को आर्मी की वर्दी में परीक्षण स्थल पर ले जाया गया, ताकि बाहर से देखने पर ऐसा लगे कि यह एक सैन्य अभ्यास है.
CIA को लगा कि यह भारतीय सेना का एक सामान्य ऑपरेशन है, जबकि असल में देश के सबसे तेज दिमाग चुपचाप इतिहास रचने की तैयारी कर रहे थे.
अमेरिका को इस मिशन की भनक तब लगी, जब परीक्षण हो चुका था.
18 मई 1974: जब रेगिस्तान में सुनाई दी गूंज
राजस्थान के पोखरण में ज़मीन के नीचे 12 से 15 किलोटन का विस्फोट हुआ. परमाणु धमाके की ताकत इतनी थी कि ज़मीन कांप उठी, लेकिन सतह पर कोई बड़ा नुकसान नहीं हुआ.
भारत ने अब खुद को एक परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र घोषित कर दिया था.
और इस मिशन का नाम रखा गया – “स्माइलिंग बुद्धा”. लेकिन सवाल यह था कि बुद्ध शांति के प्रतीक थे, तो इस विस्फोट का नाम उनके नाम पर क्यों रखा गया?सरकार ने इसे “शांतिपूर्ण परमाणु परीक्षण” बताया, ताकि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विरोध से बचा जा सके. लेकिन हकीकत यह थी कि भारत ने दुनिया को दिखा दिया कि वह अपनी सुरक्षा खुद कर सकता है.
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया- दुनिया हिल गई
अमेरिका ने भारत पर कई तकनीकी प्रतिबंध लगा दिए.
चीन और पाकिस्तान ने इस परीक्षण की निंदा की.
लेकिन भारत के लिए यह एक ऐतिहासिक जीत थी.
हालांकि, इसके बाद भारत को NSG (Nuclear Suppliers Group) से बाहर कर दिया गया, जिससे परमाणु तकनीक प्राप्त करना मुश्किल हो गया. लेकिन भारत रुका नहीं.
1998 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार ने पोखरण में “पोखरण-2” नाम से दूसरा परमाणु परीक्षण किया, और इसके बाद भारत को आधिकारिक रूप से परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र माना गया.
Smiling Buddha: भारत की परमाणु यात्रा की पहली सीढ़ी
1974 का यह परीक्षण सिर्फ एक प्रयोग नहीं था, यह भारत की सुरक्षा नीति का पहला और सबसे बड़ा कदम था.
अगर यह परीक्षण नहीं होता, तो क्या भारत आज दुनिया के सबसे मजबूत राष्ट्रों में शामिल होता? शायद नहीं.
आज भी “Smiling Buddha” को भारत की वैज्ञानिक क्षमता और रणनीतिक सफलता का सबसे बड़ा उदाहरण माना जाता है. यह उस दौर की कहानी है जब भारत ने दुनिया को दिखाया कि वह केवल अहिंसा का पुजारी नहीं, बल्कि अपनी रक्षा करने में भी सक्षम है.
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