ब्रिटेन से लाया जाएगा शिवाजी की जगदम्बा तलवार और बघनखा, खत्म होगा 100 वर्षों से भी अधिक का इंतजार

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वाराणसी: भारतीय इतिहास में ऐसे ढेरों राजाओं के किस्से मिलते हैं जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा के लिए प्राण न्योछावर कर दिए. इन्हीं में एक थे छत्रपति शिवाजी महाराज, जिन्होंने कई वर्षों तक मुगल बादशाह औरंगजेब से संघर्ष किया. मुगल सेना को धूल चटाते हुए सन् 1674 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी.
छह जून 2024 को छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक के साढ़े तीन सौ वर्ष पूरे होंगे. महाराष्ट्र के साथ ही पूरे देश में इसे एक पर्व के रूप में मनाने की तैयारी है. इस महोत्सव का खास आकर्षण छत्रपति शिवाजी का बघनखा और उनकी जगदम्बा तलवार होगा. यह बघनखा व तलवार वर्तमान समय में इंग्लैड में है. लेकिन ब्रिटेन ने इन्हें सालभर के लिए भारत को सौंपने की हामी भरी है. इसी कड़ी में ऐसा माना जा रहा है कि कुछ दिनों के लिये जगदम्बा तलवार का काशी प्रवास भी हो सकता है. मराठा सम्राज्य के छत्रपति शिवाजी महाराज का देशभर में एक विशेष स्थान है. वहीं शिवाजी महराज का काशी से भी गहरा नाता रहा है.

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काशी के पं. गंग भट्ट ने कराया था शिवाजी महाराज का राज्याभिषेक


शिवाजी के कुल को लेकर संशय होने पर राजगढ़ व अन्य राज्यों के ब्राह्मणों ने उनका राज्याभिषेक करने से मना कर दिया तो काशी के पंडित गंग भट्ट आगे आए थे. मुगलों की परवाह न करते हुए उन्होंने न केवल राज्याभिषेक किया, बल्कि देश-दुनिया को काशी की पांडित्य परम्परा का दर्शन भी कराया. छात्रपति शिवाजी महाराज ने कई वर्षों तक मुगल बादशाह औरंगजेब से संघर्ष किया. मुगल सेना को धूल चटाते हुए सन 1674 में पश्चिम भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी. ऐतिहासिक तथ्यों के अनुसार जाति से कुर्मी होने के नाते उनका राज्याभिषेक करने को कोई ब्राह्मण तैयार नही हुआ. इसके बाद शिवाजी ने अपना संदेश काशी भेजवाया था. उस दौर में भी काशी के विद्वानों का बड़ा मान था. भारतीय समाज वर्ण व्यवस्था आधारित थी. काशी के ब्राह्मणों ने समय-समय पर वर्जनाएं तोड़ी. इसी क्रम में शिवाजी के आमंत्रण पर पंडित गंग भट्ट रायगढ़ पहुंचे और छह जून 1674 को उनका राज्याभिषेक कर उदाहरण प्रस्तुत किया.

 

शिवाजी को काशी में मिली थी शरण


मुगलों से लोहा लेने के दौरान छत्रपति शिवाजी ने एक बार बनारस में भी शरण ली थी. शिवाजी 15 से 20 दिनों तक जासूसों को छकाते हुए काशी में पहुंचे थे. उन्होंने अस्सी घाट निवासी एक ब्राह्मण के घर शरण ली. रुखा-सूखा भोजन ग्रहण कर किसी तरह रात गुजारी. सुबह गंगा स्नान व पंचगंगा तीर्थ पर चेहरा छिपाकर पुरखों का श्राद्ध तर्पण व पिंडदान किया. शिवाजी ने श्राद्ध कराने वाले किशोर तीर्थ पुरोहित की अंजली रत्नों से भर दी थी.
उस दौरान उन्होंने न सिर्फ पंचक्रोशी परिक्रमा की, बल्कि इसी मार्ग पर भोजूबीर में अपनी कुलदेवी मां दक्षिणेश्वर काली की मूर्ति स्थापित की. सड़क किनारे सामान्य भवन की तरह दिखने वाला काली मंदिर गुंबदविहीन है. इसकी दीवारें दो फीट तक मोटी हैं. इतने वर्षों बाद भी इसका क्षरण नहीं हुआ है. जो उस दौर की विशिष्ट निर्माण तकनीक का भान कराता है. देवालय के गर्भगृह में मां काली के साथ ही भगवती दुर्गा, भगवान गणेश, भगवान नरसिंह व भैरव बाबा के विग्रह स्थापित हैं.

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