सनातन परंपरा में शंख को बहुत कल्याणकारी बताया गया है। समुद्र से निकले 14 रत्नों में से एक शंख भी है जिसका पूजा में बहुत महत्त्व है। धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक जिस घर में शंख रहता है, उस घर में माता लक्ष्मी का वास हमेशा बना रहता है। शंख बजाने से घर की नकारात्मक उर्जा और बाधाएं दूर होती हैं।
शंख की उत्पत्ति:
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शंख भी लक्ष्मी जी की तरह सागर से ही उत्पन्न हुआ है इसी वजह से शंख को लक्ष्मी का भाई बताया गया है। समुद्र मंथन से जिन 14 रत्नों का प्रादुर्भाव हुआ उनमें छठवां रत्न शंख है। माता लक्ष्मी और भगवन विष्णु, दोनों ही अपने हाथों में शंख धारण करते हैं इसलिए भी इसको शुभ माना जाता है।
शंख बजाने के पौराणिक फायदे:
- भगवान विष्णु का शंख से पूजन करने से वह प्रसन्न होते हैं।
- शंख के प्रभाव से आरोग्य प्राप्ति, संतान प्राप्ति, व्यापार वृद्धि होती है।
- शंख का पूजन करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
- शंख का पूजन करने से पितृदोष का निराकरण होता है।
शंख बजाने के वैज्ञानिक लाभ:
- श्वास संबंधी रोगों मैं लाभ प्राप्त होता है।
- शंखनाद से स्मरण शक्ति बढ़ती है।
- शंख बजाने से फेफड़ों का व्यायाम होता है।
- शंख का जल हमारे स्वास्थ्य और हड्डियों एवं दांतो के लिए लाभदायक होता है।
शंख के प्रकार:
आकृति के आधार पर सामान्यतया शंख तीन प्रकार के माने जाते हैं। दक्षिणावृत्ति शंख, मध्यावृत्ति शंख तथा वामावृत्ति शंख।
दक्षिणावर्ती शंख वह कहलाता है जिसका मुख दक्षिण दिशा की ओर अर्थात दाहिनी ओर खुलता है। भगवान् विष्णु का शंख दक्षिणावर्ती है।
वामावर्त शंख वह कहलाता है जिसका मुंह बाएं ओर खुलता है। माता लक्ष्मी का शंख वामावर्ती है।
मध्यवर्ती शंख वह कहलाता है जिसका मुख मध्य में अर्थात बीच में खुलता है। इसके अलावा महालक्ष्मी शंख, मोती शंख और गणेश शंख भी पाया जाता है।
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