भारतीय संस्कृति के सनातन धर्म में भगवान शिवजी की विशेष महिमा है। तैंतीस कोटि देवी-देवताओं में भगवान शिव ही देवाधिदेव महादेव की उपमा से अलंकृत हैं। भगवान शिव की विशेष कृपा प्राप्ति के लिए शिवपुराण में विविध व्रतों का उल्लेख हैव शिवजी की प्रसन्नता के लिए किए जाने वाला प्रदोष व्रत अत्यन्त चमत्कारी माना गया है। प्रदोष व्रत से दु:ख-दारिद्र्य का नाश होता है।
जीवन में सुख-समृद्धि खुशहाली आती है, जीवन के समस्त दोषों के शमन के साथ ही सुख-समृद्धि का सुयोग बनता है। सूर्यास्त के बाद तीन मुहूर्तपर्यन्त जो त्रयोदशी तिथि हो, उसी दिन यह व्रत रखा जाता है। ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक मास के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि प्रदोष बेला होने पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। इस बार यह व्रत 18 जुलाई शनिवार को रखा जाएगा।
श्रावण कृष्णपक्ष की त्रयोदशी तिथि 17 जुलाई, शुक्रवार की अर्द्धरात्रि के पश्चात् 12 बजकर 34 मिनट पर लगेगी जो कि 18 जुलाई, शनिवार की अर्द्धरात्रि के पश्चात् 12 बजकर 42 मिनट तक रहेगी। प्रदोष बेला में त्रयोदशी तिथि का मान 18 जुलाई, शनिवार को होने के फलस्वरूप प्रदोष व्रत इसी दिन रखा जाएगा। प्रदोष बेला की अवधि दो या तीन घटी मानी गई है, एक घटी 24 मिनट की होती है।
इसी अवधि में भगवान शिवजी की पूजा प्रारम्भ करनी चाहिए। व्रत वाले दिन व्रतकर्ता को सम्पूर्ण दिन निराहार व निराजल रहना चाहिए। सायंकाल सूर्यास्त के पूर्व पुनः स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर प्रदोष बेला में भगवान शिवजी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
कैसे रखें प्रदोष व्रत-
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि व्रतकर्ता को प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर समस्त दैनिक कृत्यों से निवृत्त होकर स्नान-ध्यान व पूजा-अर्चना के पश्चात् अपने दाहिने हाथ में जल, पुष्प, फल, गन्ध व कुश लेकर प्रदोष व्रत का संकल्प लेना चाहिए। सम्पूर्ण दिन निराहार रहते हुए सायंकाल पुनः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करके प्रदोषकाल में भगवान शिवजी की विधि-विधान पूर्वक पंचोपचार, दशोपचार अथवा षोडशोपचार पूजा-अर्चना करनी चाहिए।
भगवान शिवजी का अभिषेक कर शृंगार करने के पश्चात् उन्हें वस्त्र, यज्ञोपवीत, आभूषण, सुगन्धित द्रव्य के साथ बेलपत्र, कनेर, धतूरा, मदार, ऋतुपुष्प, नैवेद्य आदि अर्पित करके धूप-दीप के साथ पूजा-अर्चना करनी चाहिए। परम्परा के अनुसार कहीं-कहीं पर जगतजननी पार्वतीजी की भी पूजा-अर्चना की जाती है। यथासम्भव स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूर्व दिशा या उत्तर दिशा की ओर मुख करके ही पूजा करनी चाहिए। शिवभक्त अपने मस्तक पर भस्म व तिलक लगाकर शिवजी की पूजा करें तो पूजा शीघ्र फलदायी होती है।
भगवान् शिवजी की महिमा में उनकी प्रसन्नता के लिए प्रदोष स्तोत्र का पाठ एवं स्कन्दपुराण में वर्णित प्रदोषव्रत कथा का पठन या श्रवण अवश्य करना चाहिए। व्रत से सम्बन्धित कथाएं सननी चाहिए जिससे मनोरथ की पर्ति का सयोग बनता है। यह प्रदोष व्रत समस्त जनों के लिए मान्य है। व्रतकर्ता को दिन के समय शयन नहीं करना चाहिए। व्रत के दिन अपने परिवार के अतिरिक्त कहीं कुछ भी ग्रहण नहीं करना चाहिए।
अपनी दिनचर्या को संयमित रखते हुए व्रत करके लाभान्वित होना चाहिए। जिन्हें शनिग्रह अद्वैया या साढ़ेसाती का प्रभाव हो या जिनकी जन्मकुण्डली में शनिग्रह प्रतिकूल हों, उन्हें देवाधिदेव महादेव शिवजी की कृपा प्राप्ति के लिए शनि प्रदोष व्रत अवश्य करना चाहिए, जिससे शनिजनित दोषों का शमन हो सके। अपनी सामर्थ्य के अनुसार ब्राह्मण एवं असहायों की सेवा व सहायता करते रहना चाहिए। प्रदोष व्रत से जीवन के समस्त दोषों का शमन होता है, साथ ही सुखसमृद्धि खुशहाली की प्राप्ति होती है।
वार के अनुसार प्रदोष व्रत का फल-
ज्योतिषविद् विमल जैन ने बताया कि प्रत्येक दिन के प्रदोष व्रत का अलग-अलग प्रभाव है। वारों (दिनों) के अनुसार सात प्रदोष व्रत माने गए हैं, जैसे-
रवि प्रदोष- आयु, आरोग्य, सुख-समृद्धि,
सोम प्रदोष- शान्ति एवं रक्षा तथा आरोग्य व सौभाग्य में वृद्धि,
भौम प्रदोष- कर्ज से मुक्ति,
बुध प्रदोष- मनोकामना की पूर्ति,
गुरु प्रदोष- विजय व लक्ष्य की प्राप्ति,
शुक्र प्रदोष- आरोग्य, सौभाग्य एवं मनोकामना की पूर्ति,
शनि प्रदोष- पुत्र सुख की प्राप्ति।
अभीष्ट-मनोकामना की पूर्ति के लिए 11 प्रदोष व्रत या वर्ष के समस्त त्रयोदशी तिथियों का व्रत अथवा मनोकामना पूर्ति होने तक प्रदोष व्रत रखने का विधान है।
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