कल्पनाओं की दुनिया है सिजोफ्रेनिया, अगर सपनों में जीते हैं तो सावधान! हो सकती है ये गंभीर बीमारी
आमतौर पर लोग सोते समय स्वप्न देखते हैं। इन सपनों में ही लोग उन कल्पनाओं को भी जी लेते हैं, जिनका हकीकत बन पाना मुश्किल होता है। मगर आपको जानकर हैरानी होगी कि कल्पनाओं में जीना एक गंभीर बीमारी के लक्षण होते हैं। जी हां, हम सिजोफ्रेनिया की बात कर रहें हैं। वास्तव में सिजोफ्रेनिया एक कल्पना की ही दुनिया है। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति सोते-जागते केवल कल्पनाओं में ही जीता है। सिजोफ्रेनिया के रोगी सोते नही है, बल्कि दिन-रात जागते हुए अपनी अलग दुनिया (भ्रम) में खोये रहते हैं। ये आपके सामने अपनी मौजूदगी तो दर्ज कराते हैं, लेकिन उपस्थित नही होते हैं। कई बार इसके रोगी परिचितों को पहचानते तक नहीं है। मेडिकल साइंस में सिजोफ्रेनिया गंभीर मांसिक बीमारी है। कई बार इसके रोगी आत्मघाती भी हो जाते हैं।
क्या है सिजोफ्रेनिया
सिजोफ्रेनिया एक ग्रीक शब्द है, जिसका अर्थ है ‘विभाजित मन’। मेडिकल भाषा में स्किज़ोफ्रेनिया एक मेंटल डिसऑर्डर है जो किसी व्यक्ति में मानसिक विकार का लाती है। सिजोफ्रेनिया के कुछ मरीज़ एक तरह की काल्पनिक दुनिया या भ्रम की स्थिति में रहते हैं। उनका नज़रिया वास्तविक दुनिया से अलग होता है। वो ऐसी बाते करते हैं, जो या तो भूतकाल में हो चुका है या फिर जो अभी तक नही हुआ है। इसके रोगी आपके सामने होने पर भी ऐसे बर्ताव करते हैं, जैसे वह आपके सामने नही बल्कि कहीं और हैं। ये आपके सामने किसी काल्पनिक कार्य को भी करते दिखाई दे सकते हैं। जैसे ये आपको हाथों से कुछ देने का प्रयास भी करते हैं पर इनके हाथ में कुछ नही होता है। फिर भी वो कहेंगे कि हाथ में कुछ है।
वृद्धों में दिख रही सिजोफ्रेनिया
भ्रम की दुनिया में जीने वाली मांसिक बीमारी सिजोफ्रेनिया होने की संभावना पूरे जीवनकाल में केवल 1% ही होती है। कह सकते हैं कि सौ में से केवल 1 व्यक्ति सिजोफ्रेनिया का रोगी होता है। लेकिन साल 2019 में सिजोफ्रेनिया के कई मामले सामने आए थे। इनमें अधिकांश रोगी 50 उम्र से ऊपर के थे। इनमें महिलाएं और पुरुष समान रूप से शामिल हैं। जबकि इससे पहले मेडिकल साइंस में सिजोफ्रेनिया के लिए कहा गया था कि पुरुषों में ये रोग आमतौर पर 10 से 25 वर्ष की आयु के बीच पाया जाता है। वहीं, महिलाओं में यह स्थिति 25 से 35 वर्ष की आयु के बीच अधिक आमतौर पर देखने को मिलती है। लेकिन नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एप्लाइड साइंसेज संस्थान और लखनऊ के मेडिकल कॉलेज के वृद्ध मांसिक विभाग के रिकॉर्ड में बुजुर्गों में ज्यादा इसके रोगी मिले हैं।
सिजोफ्रेनिया के यंग रोगी कर लेते हैं सुसाइड
मानसिक बीमारियों में सिजोफ्रेनिया सबसे गंभीर बताई गई है। सिजोफ्रेनिया का इलाज नहीं होने पर करीब 25 प्रतिशत मरीजों के खुदकुशी कर लेने का खतरा होता है। भारत में विभिन्न डिग्री के सिजोफ्रेनिया से लगभग 40 लाख लोग पीड़ित हैं। मनोचिकित्सकों ने इस बात की जानकारी दी। मनोचिकित्सों ने बताया कि सिजोफ्रेनिया के इलाज से वंचित करीब 90 प्रतिशत रोगी भारत जैसे विकासशील देशों में हैं। करीब एक अरब की आबादी वाले हमारे देश भारत में विभिन्न डिग्री के सिजोफ्रेनिया से लगभग 40 लाख लोग पीड़ित हैं, जिसके कारण कुल मिलाकर ढाई करोड़ लोग प्रभावित हो रहे हैं। यह बीमारी प्रति एक हजार वयस्कों में से करीब 10 लोगों को चपेट में ले चुकी है।
सिजोफ्रेनिया के लक्षण
सिज़ोफ्रेनिया के लक्षणों में मतिभ्रम, भ्रम और विचार विकार (सोचने के असामान्य तरीके) जैसे मानसिक लक्षण शामिल हैं, साथ ही भावनाओं की कम अभिव्यक्ति, लक्ष्यों को पूरा करने के लिए कम प्रेरणा, सामाजिक संबंधों में कठिनाई, मोटर हानि और संज्ञानात्मक हानि शामिल हैं।
- पीड़ित व्यक्ति को देखने, सुनने, महसूस करने या कुछ चीजों की गंध आएगी लेकिन वो वास्तविक नहीं होती हैं।
- भ्रम की स्थिति रहती है, जहां अजीब चीजें महसूस होती हैं, जो बिल्कुल झूठी होती हैं।
- पीड़ित व्यक्ति के मन में ख्याल अचानक एक से दूसरी जगह पर चला जाता है।
- मौजूदा हालात के साथ उचित भावनाओं, विचारों और मनोदशा का महसूस न होना।
सिजोफ्रेनिया का कारण
सिजोफ्रेनिया का कोई एक कारण नहीं है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थिति के पीछे पर्यावरण और आनुवंशिक जैसे कुछ कारक योगदान देते हैं। सिजोफ्रेनिया के पीछे मुख्य कारण आनुवांशिक होता है और इस स्थिति के लिए मानसिक बीमारी से पीड़ित रोगी के रिश्तेदार भी इसी बीमारी से पीड़ित देखे जाते हैं। हालांकि, अन्य न्यूरोलॉजिक्ल कारक भी हैं, जो इस स्थिति में योगदान देते हैं। सिजोफ्रेनिया की शुरुआत और रिकवरी में मनोवैज्ञानिक और परिवार का माहौल भी भूमिका निभा सकता है।
- मादक पदार्थों का सेवन भी सिजोफ्रेनिया का एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है। वे लोग जो नशा करते हैं उनमें नशा नहीं करने वालों की तुलना में सिजोफ्रेनिया का जोखिम छह गुना अधिक होने की संभावना रहती है।
- तनाव के दौरान लगातार अकेले रहना भी सिजोफ्रेनिया का कारण हो सकता है। मेडिकल स्टडी में पाया गया है कि कई बार व्यक्ति को अकेला छोड़ दिया जाता है। इस बीच वह व्यक्ति खुद से ही बातें करने लगता है और भ्रम में चला जाता है। जिससे वह सिजोफ्रेनिया की चपेट में आ जाता है।
- अधिक समय तक दुख का अनुभव करना भी सिजोफ्रेनिया का कारण है। यह स्थित व्यक्ति को आसानी से मांसिक रोग की ओर ढकेल देती है। इसमें व्यक्त खामोश और गमसुम रहने लगता है। जिसकी वजह से वह सिजोफ्रेनिया का शिकार हो जाता है।
- आपसी रिश्तों में खिटफिट भी एक कारण माना जाता है। आजकल परिवारों में ये सामान्य रूप से देखा गया है कि लोग आपस में खुश नही रह पा रहे हैं। किसी न किसी बात को लेकर उनके बीच उल्झनें बनी रहती है। ये संपत्ति संबंधी या प्रेम संबंधी भी उल्झनें हो सकती हैं।
सिजोफ्रेनिया के रोगी की पहचान
सिजोफ्रेनिया का पता लगाने के लिए रोगी में कम से कम 30 दिनों तक निम्न लक्षणों में से दो या उससे अधिक लक्षण मौजूद होने चाहिए।
- बुरे-बुरे सपने आना
- भ्रम की स्थिति रहना
- बोलने में दिक्कत होना
- कैटाटैनिक व्यवहार
- नकरात्मक या फिर उदासीन शब्दों का प्रयोग
- सिजोफ्रेनिया के घातत परिणाम
अगर इस स्थिति को बिना उपचार के छोड़ दिया जाए या फिर सही मदद न मिले तो रोग के निम्नलिखित परिणाम हो सकते हैंः
- सोच, तर्क और याददाश्त में कमी
- आत्मघाती विचार
- डिप्रेशन
- काम करने में असमर्थता के कारण वित्तीय समस्याएं
- रिश्ते-नाते खत्म हो जाना कनेक्शन खोना
- एकांत में रहना
- आक्रामक व्यवहार
सिजोफ्रेनिया की रोकथाम
सिजोफ्रेनिया जैसी स्थिति को रोका नहीं जा सकता है हालांकि इसके जोखिम को कम करने के लिए कुछ उपाय जरूर किए जा सकते हैं। नशे का प्रयोग और तनाव जैसे जोखिम कारक भी सिजोफ्रेनिया में योगदान कर सकते हैं, इसलिए इनसे बचना भी सिजोफ्रेनिया जैसी स्थिति के जोखिम को कम करता है। रोग का शुरुआत में ही पता लगाने और उचित देखभाल से इसे बढ़ने से रोका जा सकता है।
इहबास के निदेशक ने सिजोफ्रेनिया को बताया गंभीर
नई दिल्ली के इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन बिहेवियर एंड एप्लाइड साइंसेज संस्थान (इहबास) के निदेशक डॉ. निमेश जी. देसाई ने कहा, “सिजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है, लेकिन अनुसंधानों की मदद से इसके उपचार में काफी प्रगति हो रही है। उन्होंने सिजोफ्रेनिया जैसी मानसिक बीमारियों के बारे में जागरूकता पैदा करने और वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि डॉक्टरों और देखभाल करने वालों को रोग के कानूनी पहलुओं से भी अवगत कराया जाना चाहिए।”
मनोचिकितस्क अवनी तिवारी कहती हैं….
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ. अवनी तिवारी ने कहा कि “आत्महत्या के जोखिम का आकलन करने में सुरक्षा संबंधी कारक भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं और इनका सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए। किसी व्यक्ति में एक बार इनके लक्षण ध्यान में आने पर, इसकी पहचान के लिए व्यक्ति को मनोचिकित्सक को अवश्य दिखाना चाहिए। इस बीमारी का इलाज जितना जल्दी होगा, उपचार की प्रतिक्रिया भी बेहतर होगी।”
उन्होंने कहा, “सिजोफ्रेनिया का इलाज संभव है, इसलिए इसके इलाज में देर नहीं करनी चाहिए। इस बीमारी से पीड़ित व्यक्ति को उसके सामाजिक जीवन में वापस लाने के लिए मनोचिकित्सकों और मनोवैज्ञानिकों की टीम परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर कड़ी मेहनत करती है।”
Also Read : दंपत्ति की लाशों के बीच जिंदा मिला 5 दिन का बच्चा, तीन दिन पहले हुई थी मौत