Savarkar Death Anniversary: जानें सावरकर का क्यों रहा विवादों से नाता ?  

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Savarkar Death Anniversary:  विनायक दामोदर सावरकर इतिहास के उन लोगों में से एक है जिनपर सबसे ज्यादा विवाद खड़ा किया जाता है, वे लेखक थे, क्रांतिकारी थे, कवि थे, चिंतक थे इससे सब से ऊपर वे एक सच्चे देशभक्ति थे. इसके बाद भी आज कुछ लोग ऐसे है जो उन्हे गलत साबित करने के लिए उनके माफीनामों को अपना हथियार बनाकर उन्हें कायर और अंग्रेजो का दलाल बताने का प्रयास करते है. ऐसे आज वीर सावरकर की पुण्यतिथि के अवसर पर आज हम वीर सावकर के उस छिपे हुए सच से पर्दा उठाने जा रहे है, जिन्हें 70 साल की राजनीति ने सत्ता के लालच में दबा दिया था. आज हम पढ़ेगे वीर सावरकर के जज्बे और त्याग के कुछ किस्से जो साबित करेंगे की असल में वे क्या थे…

विपक्ष क्यों कहता है नहीं होना चाहिए सावरकर का सम्मान

सावरकर के विरोध में बोलने वाले लोग उनको लेकर तीन मुख्य बाते करते है, जिनमें उनकी पहली शिकायत है कि, सावरकर सच्चे क्रांतिकारी नहीं थे. क्योंकि उन्होने अपनी रिहाई के लिए अंग्रेजी सरकार को एक या दो नहीं बल्कि छः -छः बार पत्र लिखे. दूसरा शिकायत यह है कि सावरकर के गांधी जी की हत्या में भी उनके शामिल होने की बात कही जाती है और तीसरी व अंतिम शिकायत यह है कि, देश में हिन्दुत्व की राजनीति के जनक सावरकर ही थे. यही वजह है कि, कुछ लोग सावरकर को सांप्रदायिक भी कहते है.

यह सच है कि, गांधी जी ने देश को आजाद कराने के लिए देश में अहिंसा की लौ जलाई थी, लेकिन आप इस बात से भी इनकार नहीं कर सकते है कि, देश की आजादी के लिए राजगुरू, भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद और वीर सावरकर ने भी देश की आजादी के लिए बराबर की हिस्सेदारी निभायी है. वो बात अलग है कि, उन्होने ने यह जंग हिंसा के आधार पर लड़ी थी, शायद उन्हें मालूम था कि, ”अंग्रेज लातो के भूत है जो बातों से नहीं मानने वाले है” इसी वजह से उन्होने हिंसा का मार्ग चुना और इसी मार्ग पर चलते हुए वीर सावरकर ने भी देश की आजादी की लड़ाई लड़ी थी.

क्यों लिखा था सावरकर ने माफीनामा?

साल 1909 में 1 जुलाई को क्रांतिकारी मदन लाल डिंगरा ने लंदन में सर विलियम हट की दिनदहाड़े हत्या कर दी थी. इस हत्या के पीछे की वजह थी कि, अंग्रेज अंग्रेजी हुकूमत के चलते भारतीयों पर जुलूम कर रहे है. पहली बार इस हत्या में सावरकर का नाम भी सामने आया था, लेकिन उनके खिलाफ कोई सबूत न मिलने की वजह से उनकी गिरफ्तारी नहीं हो पायी थी.

लेकिन उसी साल 1909 में ही अंग्रेजी सरकार के खिलाफ खबर छापने के आरोप में वीर सावरकर के भाई गणेश सावरकर को उम्रकैद की सजा सुनाई गयी. इस बात से खफा उनके उनके समर्थक भड़क उठे और इसका बदला लेने के लिए अनंत लक्ष्मण कनेरे ने नासिक के डिस्टीक मजिस्ट्रेट को मौत के घाट उतार दिया. इस मामले की छानबीन में यह बात साबित हुई की इस हत्या के हथियार सावरकर द्वारा मुहैय्या कराए गए है. इसके बाद सावरकर को गिरफ्तार करके भारत लाया गया और अण्डमान जेल में रखा गया.

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जेल की हालत देख आहत थे सावरकर

इस आरोप के चलते उन्हे नौ साल की जेल हुई, वहां उन्हे 52 नं कोठरी में रखा गया. बताया जाता है कि, जहां सावरकर को रखा गया वहां उन्हें मल – मूत्र त्याग ने को कहा जाता था, हत्थकड़ी बांधकर कई कई घंटे खड़ा रखा जाता था इतना ही नहीं उन्हें कुनैन की गोली तक दी जाती थी और ये सिर्फ सावरकर के साथ नहीं बल्कि बाकी कैदियों के साथ भी हो रहा था. जेल के हालात को देखते हुए ये पहली बार था जब सावरकर ने अंग्रेजी हुकूमत को माफीनामा लिखा था और कार्रवाई न होने पर ऐसे छः माफी नामे लिखे थे. ताकि वे बाहर निकलकर जेल में होते इस अत्याचार को रोकने के लिए कुछ कर सके और इन्ही पत्र को लेकर ही सावरकर के विरोधी उनको कायर कहते है.

 

 

 

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