Saphala Ekadashi: साल की पहली एकादशी आज, जानें पूजन विधि और शुभ मुर्हूत

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Saphala Ekadashi:  सफला एकादशी का व्रत पौष कृष्ण एकादशी को रखा जाता है. इस उपवास को रखने से आयु और स्वास्थ्य की रक्षा होती है. इसके साथ ही व्यक्ति को अपने कार्यों में सफलता मिलती है. इस व्रत में श्री हरि की कृपा से व्यक्ति को भौतिक संपन्नता भी मिलती है. इस बार सफला एकादशी का व्रत 7 जनवरी को यानी आज किया जा रहा है.

क्या है सफला एकादशी का शुभ मुर्हूत ?

सफला एकादशी पौष महीने के कृष्ण पक्ष में मनाई जाएगी. हिंदू पंचांग के अनुसार, सफला एकादशी 7 जनवरी को रात 12 बजकर 41 मिनट पर शुरू होगी और 8 जनवरी को रात 12 बजकर 46 मिनट पर समाप्त होगी. 8 जनवरी को पारण सुबह 7 बजे से 9 बजे तक रहेगा। साथ ही आज सफला एकादशी स्वाति नक्षत्र है.

एकादशी तिथि के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प करें. पूजा करते समय भगवान को पंचामृत, धूप, दीप, फल और फूल अर्पित करें. इसके साथ ही इस दिन भगवान को नारियल, सुपारी, आमला और लॉन्ग चढ़ाएं. एकादशी तिथि पर रात्रि में सोना वर्जित है. इस दिन उठकर भगवान श्री हरि का नाम जाप करें. यह बताया गया है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है. पूरे दिन व्रत रखें, इस दिन व्रत है और नमक नहीं खाना चाहिए. द्वादशी तिथि पर, व्रत के अगले दिन, किसी गरीब या योग्य ब्राह्मण को भोजन और दक्षिणा देकर अपने व्रत का पारण करें.

सफला एकादशी का नियम

1. जो लोग एकादशी का व्रत नहीं रखते हैं उन्हें भी इस दिन चावल का सेवन नहीं करना चाहिए.
2. एकादशी तिथि को पूरे दिन व्रत रखकर रात्रि जागरण करते हुए श्री हरि का स्मरण करना चाहिए.
3. एकादशी तिथि को समाप्त होने से पहले व्रत का पारण नहीं करना चाहिए.
4. एकादशी के दिन बिस्तर पर नहीं जमीन पर सोना चाहिए.
5. मांस, नशीली वस्तु, लहसुन और प्याज का सेवन का सेवन न करें.
6. इस दिन किसी पेड़ या पौधे की की फूल-पत्ती तोड़ना भी अशुभ माना जाता है.

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सफला एकादशी की कथा

चंपावती का प्राचीन राजा महिष्मत था. राजा के चार पुत्रों में से लुम्पक सबसे बुरा और पापी था, वह पिता का धन चोरी करता रहता था। राजा ने उसे एक दिन दुखी होकर देश से बाहर निकाला, लेकिन फिर भी उसकी चोरी की आदत नहीं छूटी. उसे एक बार तीन दिन तक भोजन नहीं मिला. उस समय वह एक साधु की कुटिया पर भटक गया. उस दिन सौभाग्य से सफला एकादशी थी. महात्माजी ने उसे भोजन दिया और उसका सम्मान किया, महात्माओं के इस व्यवहार से उसके विचार बदल गए.

वह परमेश्वर के चरणों में गिर पड़ा. ल्युक का चरित्र धीरे-धीरे निर्मल हो गया जब साधु ने उसे अपना शिष्य बना लिया था, महात्मा के आदेश से वह एकादशी का व्रत रखने लगा. जब वह पूरी तरह से बदल गया, महात्मा ने उसे अपना असली रूप दिखाया. उसके पिता महात्माओं की तरह खड़े थे. इसके बाद में लुम्पक ने राज-काज छोड़ दिया और जीवन भर सफला एकादशी का व्रत रखने लगा.

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