पर्यावरण के लिए खतरनाक है बालू का खनन
रेत का उपयोग हर तरफ है – घर से लेकर मोबाइल फोन तक के लिए इसकी जरुरत पड़ती है. घरों की कंक्रीट में रेत लगती है, सड़कों के डामर में, खिड़कियों के कांच में और फोन की सिलिकॉन चिपों में भी रेत का इस्तेमाल होता है. लेकिन आधुनिक जीवन के निर्माण की जरूरत ये रेत यानी की बालू, विनाशकारी और साथ ही कई दफा गैरकानूनी उद्योग की धुरी भी बन जाती है. रेत दुनिया में सबसे अधिक इस्तेमाल होने वाली सामग्री तो है ही साथ ही सबसे खराब रखरखाव की शिकार भी. बालू के बेतहासा अवैध खनन ने पूरे दुनिया के सामने बड़ी समस्या पैदा कर दी है. अवैध खनन की वजह से पर्यावरण का संतुलन तो ख़राब हो ही रहा है साथ ही आने वाले समय में ऐसे कई फ्रंट है जिसपर दुनिया को काफी नुकसान झेलना पड़ सकता है.
आकड़ें इस नुक्सान की बदहाल तस्वीर पेश करते है. दुनिया भर में हर साल 5000 करोड़ टन बालू इस्तेमाल किया जाता है. एक तरह से देखा जाए तो दुनिया भर में बालू का ही सबसे ज्यादा खनन किया जाता है. लेकिन कड़वी सच्चाई ये है कि जितना इसका खनन किया जाता है उतना इसका जमाव भी नहीं है. नतीजन इससे अनेकों तरह की पर्यावरण समस्याएँ दुनिया के सामने खडी हो रही है.
हाल ही में इसपर McGill और Copenhagen University द्वारा किए एक शोध से पता चला है कि रेत और बजरी का खनन भारत जैसे मध्यम और निम्न आय वाले देशों में बड़े पैमाने पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है, लेकिन इसके बावजूद पर्यावरण को नजरअंदाज कर इसका अवैध खनन धड्ड्ले से जारी है.
Urbanization ने बढाई डिमांड
कारणों को जब आप खंगालना शुरू करेंगे तो सबसे पहला कारण जो आपको समझ में आएगा वह है शहरीकरण. बीते कुछ सालों में ब्राज़ील, रूस, चीन, इंडिया और साउथ अफ्रीका में रेत, छोटे पत्थरों और सीमेंट की मांग बहुत तेज़ी से बढ़ी है. पिछले 20 सालों में बालू की डिमांड पूरी दुनिया में 60 प्रतिशत बढ़ी है और सिर्फ चीन में सीमेंट की मांग 438 प्रतिशत बढ़ी है.
जनरल वन अर्थ ने इन बढ़ते डिमांड के ट्रेंड पे रिसर्च की और उसमे पता चला कि बालू की सबसे ज्यादा डिमांड नार्थ अमेरिका और चीन में है. वही इसके उत्पादन का पूरा ठीकरा भारत जैसे मध्य और निम्न आय वाल्डे देशों पे पड़ता है. एक तथ्य ये भी है कि ज़्यादातर खनन अवैध ही होता है.
यह भी पढ़ें: डेरी को भी है Climate Change का ख़तरा
बालू अवैध खनन का पर्यावरण और समाज पे पड़ता है बुरा असर
खानन का सीधा दूष्प्रभाव पर्यावरण पे पहुचंता है. जहाँ पे बालू का सबसे ज्यादा खाना होता वहां पे लैंड डीग्रेडेशन का खतरा ज्यादा रहता है. और उससे ज्यादा बालू को प्रोसेस करने में जो प्रदुषण होता है वह हमारी biodiversity के लिए सबसे ज्यादा खतरनाक है. अनुमान है कि यह नदियों के किनारे बसे 300 करोड़ लोगों के जीवन को भी प्रभावित कर रहा है. दुनिया भर में भारत सहित करीब 70 देशों में अवैध रेत खनन के मामले सामने आए हैं. पिछले कुछ वर्षों में रेत को लेकर हुए संघर्षों में स्थानीय नागरिकों, पुलिस और सरकारी अधिकारियों सहित सैकड़ों लोग मारे गए हैं.
डेवलपमेंट और एनवायरनमेंट के बीच ज़रूरी है बैलेंस….
हालांकि शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि यदि इसके खनन को ठीक तरह से प्रबंधित किया जाए तो यह एसडीजी के कई लक्ष्यों को हासिल करने में सहयोग मिल सकता है. यह उद्योग लाखों लोगों को रोजगार देता है. साथ ही सड़कों और अन्य जरुरी बुनियादी ढांचे के निर्माण में भी मददगार होता है. यह निवेश के अवसर पैदा कर सकता है. ऐसे में इस समस्या का समाधान खनन से जुड़ी सभी गतिविधियों को रोकना नहीं है इसके लिए प्रबंधन से जुड़ी प्रभावी योजनाओं और नीतियों के निर्माण की आवश्यकता है.
यह भी पढ़ें: Solar Energy से खेतों में सिंचाई होगी आसान…
हमें वो रास्ता अपनाना होगा जो संतुलन बनाता हो. अवैध खनन पर रोक जरुरी है, पर साथ ही रेत और बजरी उद्योग को इस तरह विकसित करना चाहिए जिससे वो सतत विकास के लक्ष्यों में भी मददगार साबित हों. हमें खनन के प्रभावों को बेहतर तरीके से समझने की जरुरत है. विशेष रूप से कमजोर देशों में जहां रेत और बजरी के खनन पर कोई रोक टोक या पाबन्दी नहीं है. वहां पर स्थानीय समुदायों और पर्यावरण पर पड़ने वाले इसके असर को समझने की जरुरत है, जिससे उचित नीतियां और योजनाएं बनाई जा सकें.
[better-ads type=”banner” banner=”100785″ campaign=”none” count=”2″ columns=”1″ orderby=”rand” order=”ASC” align=”center” show-caption=”1″][/better-ads]