लाखों की नौकरी छोड़, संवार रहीं गरीब बच्चों का भविष्य

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कभी-कभी इंसान एक बड़ी नौकरी पाकर भी नहीं खुश होता है औऱ कभी-कभी एक छोटे से काम में भी उसको सारे जहां की खुशियां मिल जाती हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है समीना बानों की जिन्हें अमेरिका जैसे देश में नौकरी मिल गई और तनख्वाह भी बहुत अच्छी मिल रही थी, लेकिन समीना बानो का दिल उस नौकरी में नहीं लग रहा था।

लाखों की नौकरी को कहा अलविदा

समीना को तो कुछ और ही करना था इसलिए उन्होंने लाखों की नौकरी को बाय-बाय बोल दिया और वापस अपने वतन भारत लौट आईं। देश वापस आकर समीना ने उन बच्चों की जिंदगी में शिक्षा की रौशनी फैलाने का जिम्मा उठाया जो गरीबी की वजह से शिक्षा की पहुंच से बहुत दूर थे। समीना बानो के पिता वायुसेना में अधिकारी है इसीलिए उनकी शिक्षा देश के अलग-2 हिस्सों में हुई।

गरीब बच्चों को पढ़ाने का किया फैसला

आईआईएम बंगलुरु से इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद समीना अमेरिका चली गईं। लेकिन उनके दिमाग में उन गरबी बच्चों की तस्वीर बसी थी जो गरीबी की वजह से पढ़ नहीं पाते हैं और शायद इसीलिए गरीबी के दलदल में फंसते चले जाते हैं। इन्हीं बच्चों को एक नया भविष्य देने के इरादे से उन्होंने साल 2012 में अमेरिका से नौकरी छोड़ कर वापस आ गईं।

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यूपी के लखनऊ से की शुरूआत

बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से समीना ने शुरूआत की और एक घर रिकाए पर लेकर रहने लगीं। यहीं पर एक विनोद नाम के शख्स से उनकी मुलाकात हुई, जिन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य की जानकारी थी। साल 2012 में समीना ने विनोद की मदद से भारत अभ्युदय फाउंडेशन की शुरूआत की। इसके जरिए उन्होंने लखनऊ के झुग्गी बस्तियों में रहने वाले 11-12वीं के बच्चों को पढ़ाने का काम शुरू किया।

सरकार की मदद चाहती थीं समीना

लेकिन समीना सिर्फ इतने बच्चों को ही नहीं पढ़ाना चाहती थीं, वो चाहती थीं कि ऐसे ही तमाम बच्चे शिक्षित हो जो शिक्षा की धारा से दूर थे। इसके लिए वो सरकार की मदद चाहती थीं। क्योंकि बिना सरकार के इतने बड़े काम को करने में दिक्कत होती। इसके लिए विनोद ने उनकी बहुत मदद की और उनकी मदद से उन्हें सफलता भी मिली।

गरीब बच्चों के लिए लड़ी कानूनी लड़ाई

देखते ही देखते महज 18 महीने में समीना बानो ने यूपी के पचास जिलों के करीब 20 हजार बच्चों को राज्य के 3 हजार निजी स्कूलों में दाखिला दिलवाया। इसके लिए उन्होंने शिक्षा के अधिकार एक्ट का सहारा लिया जिसमें सभी निजी स्कूलों को 25 प्रतिशत सीटों पर गरीब बच्चों को दाखिला देना होता है। लेकिन ये काम इतना आसान नहीं था क्योंकि बड़े स्कूलों ने एसका विरोध किया जिसके लिए समीना को कानूनी लड़ाई भी लड़नी पड़ी।

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माय स्कूल माय वॉइस का दिलाया अधिकार

करीब दो साल के बाद समीना को सफलता मिली। शिक्षा के अधिकार एक्ट लागू होने के बाद भी 6 लाख सीटों में सिर्फ 108 एडमिशन हुए थे। लेकिन समीना के इस पहल से आज के समय में ये संख्या 20 हजार से भी ज्यादा हो गई है। इसी सफलता के साथ समीना ने सरकारी स्कूलों में शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए एक कदम और बढ़ाया जिसके तहत माय स्कूल माय वॉइस का अधिकार भी दिलवाया।

कोई भी बच्चा सीएम को दे सकता है लिखित राय

इस पहल के जरिए कोई भी बच्चा शिक्षक के प्रति अपनी राय लिखित तौर पर सीधे प्रदेश के मुख्यमंत्री तक पहुंचा सकता है। समीना का कहना है कि सरकार ने अभी तक आर्थिक मदद नहीं की है लेकिन टीचरों की ट्रेनिंग या शिक्षा से जुड़ा कोई अन्य काम के लिए सरकार मदद करती है।

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