जैन धर्म के साधु और साध्वियां जीते हैं कठोर जीवन, दीक्षा लेने के बाद कभी नहीं नहाते, कड़कड़ाती ठंड में नहीं पहनते कपड़े
दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म जैन धर्म है. इसको श्रमणों का धर्म भी कहा जाता है. ऋषभ देव को जैन धर्म का संस्थापक माना जाता है. अब बात करते हैं जैन धर्म के साधु और साध्वियों के बारे में. जैन साधु दो तरह के होते हैं. एक श्वेतांबर होते हैं जो सफेद वस्त्र पहनते हैं. दूसरे दिगंबर होते हैं, जो बिना वस्त्र के होते हैं. जैन धर्म के साधु और साध्वियां का जीवन सबसे कठोर होता है.
अन्य धर्मों के मुकाबले इस धर्म के साधु और साध्वियां हर चीज का काफी कड़ाई से पालन करते हैं. जैन धर्म की दीक्षा लेने के बाद साधु और साध्वियां कभी नहाते नहीं हैं. यहां तक कि कड़कड़ाती ठंड में गर्म कपड़े भी नहीं पहनते हैं.
जानिए जैन धर्म के बारे में…
– जैन धर्म में श्वेतांबर और दिगंबर नामक दो तरह के पंथ हैं. दोनों ही पंथों के साधू और साध्वियां दीक्षा लेने के बाद कठोर जीवन जीते हैं. वो सही मायनों में मर्यादित और अनुशासित जीवन जीते हैं, जिसमें किसी भी तरह के भौतिक और सुविधापूर्ण संसाधनों का इस्तेमाल नहीं करते हैं.
– श्वेतांबर साधु और साध्वियां शरीर पर केवल एक पतला सा सूती वस्त्र धारण करते हैं. वहीं, दिगंबर साधु तो वस्त्र भी धारण नहीं करते हैं, मगर जैन पंथ की साध्वियां एक सफेद वस्त्र साड़ी के तौर पर जरूर धारण करती हैं. कड़ाके की ठंड में भी वो इसी तरह के वस्त्र पहनते हैं.
– दिगंबर साधु तो बर्फीली ठंड में भी कोई वस्त्र नहीं पहनते हैं. श्वेतांबर साधु और साध्वियां अपने साथ रहने वाली 14 चीजों में एक बहुत पतली सी कंबली भी रखती हैं, जिसे वो केवल सोने के समय ही ओढ़ते हैं.
– मौसम चाहे कैसा भी हो श्वेतांबर पंथ के सभी साधु और साध्वियां जमीन पर ही सोते हैं. साधु और साध्वियां सोने के लिए नंगी जमीन, चटाई या सूखी घास का भी इस्तेमाल करते हैं. हालांकि, इन साधु और साध्वियों की नींद बहुत कम होती है.
– दीक्षा लेने के बाद जैन साधु और साध्वियां कभी नहीं नहाते. ऐसा माना जाता है कि उनके स्नान करने पर छोटे जीवों का जीवन खतरे में पड़ जाएगा. इसी वजह से वो नहाते नहीं और मुंह पर हमेशा कपड़ा लगाए रखते हैं ताकि कोई छोटे जीव मुंह के रास्ते शरीर में नहीं पहुंचे. हालांकि, थोड़े-थोड़े दिनों के अंतराल पर साधु और साध्वियां गीला कपड़ा लेकर अपने शरीर को पोंछ लेते हैं. इससे उनका शरीर हमेशा तरोताजा और शुद्ध लगता है.
– जैन साधु और साध्वियां हर तरह के भौतिक संसाधनों को त्यागकर बाउट ही साधारण और सादगी भरा जीवन यापन करते हैं. विदेशों में रहने वाले जैन साधु और साध्वियां भी ऐसा ही कठिन जीवन बिताते हैं. जैन समुदाय उन्हें ठहरने और खाने की व्यवस्था कराता है. कुछ तो जैन धर्म से जुड़े मंदिरों के साथ लगे मठों में निवास करते हैं.
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