RSS संघ प्रमुख मोहन भागवत आज पहुंचेंगे काशी, रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में सभी धर्मों के 450 से ज्यादा धर्मगुरुओं से करेंगे बातचीत
वाराणसी: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक मोहन भागवत मंगलवार की देर रात रेल मार्ग से काशी आएंगे. विश्व संवाद केंद्र में रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन 19 जुलाई को सिद्धिपीठ हथियाराम मठ में सिद्धिदात्री मां वृद्धिका की पूजा की जायेगी. काशी के ब्राह्मण पूजन कराएंगे। वह रात्रि विश्राम भी मठ में ही करेंगे. वह रात्रि विश्राम भी मठ में ही करेंगे. अगले दिन 20 जुलाई को वह मीरजापुर के सक्तेशगढ़ स्थित स्वामी अड़गड़ानंद आश्रम जाएंगे और वहां से विंध्याचल स्थित देवरहा हंस बाबा आश्रम जाएंगे. रात्रि विश्राम के बाद 21 जुलाई की सुबह वाराणसी लौटेंगे.
सम्मेलन में 25 देशों के 450 से अधिक मंदिरों के पदाधिकारी भाग लेंगे…
काशी में वह संघ की ढांढनेश्वर महादेव शाखा में शामिल होंगे. शाम को श्रीकाशी विश्वनाथ धाम में दर्शन-पूजन के बाद अगले दिन 22 जुलाई को वह रुद्राक्ष कन्वेंशन सेंटर में टेम्पल कनेक्ट द्वारा आयोजित विश्व के मंदिरों के सम्मेलन इंटरनेशनल टेम्पल्स कन्वेंशन एंड एक्सपो का उद्घाटन करेंगे. 22 से 24 जुलाई तक होने वाले इस सम्मेलन में 25 देशों के 450 से ज्यादा मंदिरों के पदाधिकारी हिस्सा लेंगे. हिंदुओं के अलावा सिख, जैन, बौद्ध मठों और गुरुद्वारों के पदाधिकारी भी आएंगे. भागवत 22 जुलाई की शाम को ही मुंबई के लिए रवाना हो जायेंगे.
सिद्धपीठ हथियाराम मठ की 800 साल पुरानी परंपरा…
यह जानकारी सिद्धपीठ के पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर महंत भवानी नंदन यति महाराज ने सोमवार को प्रेस वार्ता में दी. पीठाधीश्वर ने कहा कि सिद्धपीठ में संघ प्रमुख के रात्रि प्रवास का मुख्य उद्देश्य यहां सिद्धिदात्री मां वृद्धिका से आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करना है. 800 साल पुरानी है सिद्धपीठ हथियाराम मठ की परंपरा महंत भवानी नंदन यति महाराज ने बताया कि हथियाराम मठ भी देश के प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक है. साकार ब्रह्मा के उपासक शैव संप्रदाय के भाभाराम मठ की परंपरा 800 वर्ष पुरानी है.
तप से मानव कल्याण…
इसका प्रमाण किंवदंतियों और प्राचीन हस्तलिखित पुस्तकों में मिलता है. यहां की गद्दी परंपरा दत्तात्रेय और शंकराचार्य से शुरू होती है. 800 वर्ष पूर्व गुरुजन ने बेसो नदी के किनारे जंगल में तपस्या की थी. पूर्व काल में उन्होंने लोक कल्याण के लिए कच्ची मिट्टी के चबूतरे पर मां की प्रतिमा स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू की. अपने तप के बल पर मानव कल्याण के लिए मां वृद्धिका आज भी सिद्धपीठ में कच्चे चबूतरे पर विद्यमान हैं, जहां अखंड ज्योत जलती है. लोक मान्यता है कि जो भक्त सच्चे मन से मां की पूजा करता है, वह खाली हाथ नहीं लौटता.
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