Reservation: बिहार की राजनीति में आरक्षण को लेकर मचा भूचाल

आरक्षण की सीमा को घटाने या बढ़ाने काे लेकर उठने लगे सवाल

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पटना: बिहार की राजनीति में इस समय भूचाल सा मचा हुआ है. बता दें जब से नितीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ है तब से वह चौतरफा भाजपा को अपने शिकंजे में ले रहे है. बिहार में जाति जनगणना और उसके बाद आर्थिक जनगणना के बाद विधान सभा में आरक्षण संशोधन विधेयक 2023 पास हो गया. अब इस संशोधन के बाद बिहार में आरक्षण की सीमा 75 प्रतिशत तय कर दी गई. अब मात्र 25 प्रतिशत ही अनारक्षित सीटें रह गई हैं. राज्य सरकार के इस संशोधन विधेयक को पास करने के बाद कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं. न्यायालय की ओर से 50 प्रतिशत आरक्षण के दायरे को क्या पार किया जा सकता है? क्या ये अधिकार राज्य सरकार को है कि वह आरक्षण की सीमा को घटा या बढ़ा सके ? क्या न्यायालय में इसे चुनौती दी जा सकती है?

‘आरक्षण की सीमा बढ़ा सकती है राज्य सरकार’

आपको बता दें कि भारत के संविधान के अनुसार अनुच्छेद 15(4) और अनुच्छेद 16(4) के आधार पर पिछड़ों को आरक्षण प्रदान किया जा सकता है. वर्ष 1992 इंदिरा साहिनी केस में आरक्षण की सीमा अधिकतम 50 प्रतिशत रखी जा सकती है, मगर अपवाद स्वरूप ही इसे बढ़ाया जा सकता है. अपवाद का आधार जनजातीय क्षेत्र या अत्याधिक पिछड़ापन हो सकता है. दूसरी तरफ 102वें संविधान संशोधन और 342(A) के तहत कोई भी राज्य सरकार के पास यह अधिकार नहीं कि वह आरक्षण को घटा या बढ़ा सके. 342(A) के अनुसार राष्ट्रपति और राज्यपाल की सलाह पर अगर कोई जाति, सामाजिक और शैक्षणिक दृष्टि से पिछड़ा है तो आरक्षण की सीमा बढ़ाई जा सकती है.

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राष्ट्रपति लेंगे संशोधित आरक्षण पर निर्णय….

गौरतलब है कि बिहार में पास हुए 75 फीसद आरक्षण को लेकर अब राजनीति शुरू हो गयी है. वैसे करने को तो कोई भी इस आरक्षण को चुनौती दे सकता है. मगर, बिहार के संदर्भ में ये कहा जा सकता है कि ऐसा किसी राजनीतिक दल की ओर से संभव नहीं है. वैसे भी इसे सदन ने सर्वसम्मति से पास किया है. भाजपा ने इस संशोधन की पुरजोर वकालत की है. इसलिए उम्मीद है कि राज्यपाल सकारात्मक दृष्टि रख कर इसे राष्ट्रपति के पास भेज सकते हैं. अब राष्ट्रपति को इसपर निर्णय लेना है.

क्या राज्य में तय होगी आरक्षण की समय सीमा ?…

बता दें कि नए आरक्षण संसोधन के बाद राज्य में सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति को 20 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को दो प्रतिशत आरक्षण मिलेगा. जबकि ओबीसी और ईबीसी की बढ़ी जनसंख्या को देखते हुए नीतीश सरकार ने दोनों समुदायों को एक साथ 43 प्रतिशत आरक्षण देने का निर्णय लिया है. इसके अलावा आर्थिक रूप से कमजोर लोगों को 10 फीसद आरक्षण मिलता रहेगा. यानि अब बिहार में सरकारी नौकरियों में 75 फीसद आरक्षण हो जाएगा और 25 फीसद अनारक्षित वर्ग के लिए बचेगा.

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