आरबीआई के पूर्व गवर्नर ने माना की सरकार से थे मतभेद

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सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच सत्ता संतुलन के महत्वपूर्ण हस्ती के रूप में, आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) के पूर्व गवर्नर वाई. वी. रेड्डी ने कहा है कि उन्होंने एक बार इस्तीफे पर भी विचार किया था और यहां तक कि उन्हें मंत्री (तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदंबरम) से बिना शर्त माफी भी मांगनी पड़ी थी। रेड्डी की किताब (एडवाइस एंड डिस्सेंट : माई लाइफ इन पब्लिक सर्विस) मंगलवार को जारी हुई है, जिसमें उन्होंने यह बात कही है। रेड्डी साल 2003 के सितंबर से साल 2008 के सितंबर तक आरबीआई के गवर्नर थे। इस किताब में रेड्डी ने तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदंबरम के साथ अपने मतभेदों का वर्णन किया है।

बैंकिंग प्रणाली को विदेशी स्वामित्व में खोलने का मुद्दा साल 2008 में चिदंबरम के साथ एक प्रमुख विवाद बन गया था। रेड्डी ने उस बैठक की बात किताब में लिखी है, जिसमें वित्तमंत्री ने उनसे कहा था, “गर्वनर, यह एक वैश्विक प्रतिबद्धता है, जो कि वैश्विक वित्तीय समुदाय के लिए बनाई गई है। हम इस तरह की नीति के खिलाफ जाने को कैसे उचित ठहरा सकते हैं? क्या यह सिर्फ इसलिए है, क्योंकि सरकार की सत्ता में बदलाव आया है? क्या हम हर बार एक गवर्नर या आरबीआई के परिवर्तनों की समीक्षा करते हैं?”

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किताब के मुताबिक, रेड्डी ने उन्हें बताया कि “इसका गंभीर अपरिवर्तनीय परिणाम होगा। मेरा मानना है कि राष्ट्र हित के लिए इस स्तर पर हमें इस प्रतिबद्धता के खिलाफ जाना चाहिए।”लेकिन किताब के मुताबिक, चिदंबरम ने रिजर्व बैंक के गवर्नर से कहा, “लेकिन मुझे विश्वास है कि यह हमारे राष्ट्र हित में है।”
रेड्डी लिखते हैं कि उन्होंने अपनी परेशानियों को तत्कालीन आर्थिक मामलों के सचिव राकेश मोहन के साथ साझा किया और कहा कि वे सरकार के दवाब के कारण इस्तीफा देने के बारे में सोच रहे हैं।

उन्होंने लिखा है कि चिदंबरम की उन्हें गवर्नर के पद से हटाने की अनिच्छा के बावजूद, “मुझे लगा कि ेमहीने दर महीने हमारी बीच दूरियां बढ़ती जा रही हैं। उनकी (चिदंबरम) छवि एक ऐसे सुधारक की थी जो विकास दर को दो अंकों में ले जाना चाहते थे। उनकी नजर में मेरी सर्तकता से जो उनकी कुछ नीतियों को लागू करने की राह में बाधक था, उनकी छवि को नुकसान पहुंच रहा है।”

रेड्डी ने लिखा, “एक समय में, उन्होंने कहा कि वह अपने विदेशी दौरे को रद्द कर रहे है, क्योंकि उन्हें सुधार को लेकर रिपोर्ट देनी थी, जिसका वे सामना नहीं कर पा रहे थे। उनकी निराशा से बाद में इसकी पुष्टि हुई, मुझे लगता है कि 2008 की शुरुआत में यह हुआ था।”जब उन्होंने मंत्री से मुलाकात की, चिदंबरम ने कहा कि आरबीआई सुधारों के लिए पर्याप्त साथ नहीं दे रहा है। रेड्डी ने कहा, “मैंने उनसे बिना शर्त माफी मांगी और कहा सहयोगी होने के नाते मैं मुद्दे को ध्यान में रखूंगा।”

हालांकि, आरबीआई गवर्नर के रूप में चिदंबरम के साथ मिलकर चार वर्षो तक काम करने के अपने समग्र अनुभव पर रेड्डी लिखते हैं, “हमारे अधिकांश तनावों को रचनात्मक या विवाद के रूप में वर्णित किया जा सकता है, जो अंतत: अच्छे विचारों या परिणामों को जन्म देते हैं।”

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