मंदी से बनारसी साड़ी उद्योग पर लगा ग्रहण, आधे पर सिमटा कारोबार

0

वाराणसी। देशभर में मंदी की आहट ने व्यापारियों के होश उड़े हैं। त्योहारों के सीजन में भी बाजारों से रौनक गायब है। फैक्ट्रियों पर ताले लगने शुरु हो गए हैं। सड़कों पर बेरोजगारों की भीड़ है। मंदी ने बनारस के साड़ी उद्योग को आने चपेट में ले लिया है। चार हजार रुपये का कारोबार अब आधे पर सिमट गया है। अगर यही हालात रहे तो बुनकर पलायन को मजबूर होंगे।

कैंसिल हो रहे हैं आर्डर:

मंदी के चलते कारोबार लगभग ठप सा पड़ा है। गोदामों में माल बनकर तैयार है लेकिन पूछने वाला कोई नहीं। निर्यातकों से ऑर्डर मिलने बंद हो गए हैं। जानकार बता रहे हैं कि साड़ी कारोबार अपने सबसे निचले स्तर पर पहुंच चुका है। व्यापारियों को समझ में नहीं आ रहा है कि इस दौर से कैसे निकला जाए ? ऐसा नहीं है कि हाल के सालों में बनारसी साड़ी का उद्योग बहुत आगे था, लेकिन ये सच है कि टीवी सीरियल में साड़ी के बढ़ते क्रेज से बनारसी साड़ी की डिमांड बढ़ी थी। कारोबार फिर से रफ्तार पकड़ने लगा था लेकिन नोटबंदी और जीएसटी से साड़ी उद्योग से जुड़े बुनकरों और कारोबारियों के अरमानों पर पानी फेर दिया। और अंत में मंदी के दौर में पूरे उद्योग पर ही ग्रहण लगा दिया है। व्यापारियों के मुताबिक बायर आर्डर कैंसिल कर रहे हैं , जिसकी वजह से बुनकर खाली बैठे हैं। उनके पास काम नहीं है।

बाजार में खरीददार का टोटा:

बनारस के अधिकांश इलाकों में बनारसी साड़ी बनाने का काम होता है। हैंडलूम के साथ-साथ अब बड़े पैमाने पर पावरलूम के जरिए साड़ियां तैयार होती हैं। यहां की बनी साड़ियों की दक्षिण भारत और अरब के देशों में खूब डिमांड हैं। बनारस साड़ी का क्रेज क्या है, अब आप इसे यूं समझिए कि अनुष्का शर्मा और ऐश्वर्या राय जैसी फिल्म अभिनेत्री भी अपनी शादी में इसे पहन चुकी हैं। सिर्फ फिल्म अभिनेत्री ही क्यों, हर भारतीय लड़की की ख्वाहिश होती है कि वो अपनी शादी में बनारस साड़ी पहने या ना पहने लेकिन उसे अपने साथ ससुराल जरुर लेकर जाती है।

लिहाजा, सालों तक साड़ी उद्योगी में बनारस का दबदबा रहा। लेकिन सूरत की साड़ियों और चाइना रेशम की वजह से बनारसी साड़ी का बाजार पिछड़ गया। बावजूद इसके अभी भी बनारस में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर लगभग दो लाख जुड़े हैं। इस लिहाज से देखा जाए तो लगभग आठ लाख लोगों की रोजी-रोटी का जुगाड़ साड़ी उद्योग से होता है। लेकिन हाल के महीनों में आई मंदी से बुनकर परेशान हैं। उन्हें 1991 की आर्थिक मंदी की याद आने लगी है, जब शहर के अधिकांश करघ बंद हो गए थे।

जानकारों के मुताबिक, मंदी की वजह से बायर्स ऑर्डर कैंसिल कर रहे हैं। मतलब साड़ी के बड़े खरीददार अब रुचि नहीं ले रहे हैं। लिहाजा दुकानों में खरीदने वालों का टोटा है। बढ़ती बेरोजगारी और महंगे दाम के चलते स्थानीय लोग भी साड़ी नहीं खरीद रहे हैं। लिहाजा गोदाम साड़ियों से भरे पड़े हैं। ऐसे हालात में बॉयर और बाजार के हालात को देख अब कारोबारी बेचैन हैं। उनके पास कारीगरों को देने के लिए मेहनताना नहीं है। क्योंकि जब तक व्यापार बढ़ेगा नहीं, तब तक बाजार में पैसा नहीं आएगा। जानकार इसके लिए सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।

ये भी पढ़ें: झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा का खेल खराब कर सकता है ये दल!

Leave A Reply

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More