रामनगर की रामलीला: हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी, तुम्ह देखी सीता मृगनैनी, जानकी वियोग में तड़पे प्रभु श्रीराम

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वाराणसी: रामनगर की रामलीला में जानकी वियोग में श्रीराम की दशा देख लीलाप्रेमियों की आंखें नम हो गई . आज की रामलीला में प्रसंग यथा जटायु मोक्ष,सबरी फल भोजन, वन वर्णन, पंपासर पर्यटन, नारद- हनुमान व सुग्रीव मिलन लीला का मंचन किया गया . हे खग मृग हे मधुकर श्रेनी, तुम्ह देखी सीता मृगनैनी .खंजन सुक कपोत मृग मीना, मधुप निकर कोकिला प्रबीना…. श्रीरामचरित मानस में तुलसीदासजी लिखते हैं कि व्याकुल हो भगवान श्रीराम सीताजी को वन-वन ढूंढते फिर रहे हैं. वह पशु, पक्षियों से सीता के बारे में पूछते हैं.

जानकी वियोग में लीलाप्रेमियों की आंखें नम

कहते हैं कि हे पक्षियो ! हे पशुओ! हे भौंरों की पंक्तियों ! तुमने कहीं मृगनयनी सीता को देखा है. रामनगर की रामलीला में जानकी के वियोग में श्रीराम की ऐसी दशा देख लीलाप्रेमियों की आंखें नम हो गई. सीता को कुटिया में न पाकर प्रभु श्रीराम व्याकुल हो उठते हैं. तलाश में विलाप करते वन-वन भटकते हैं.

विश्वप्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के 17वें लीला के अन्तर्गत गुरुवार को श्री जानकी के वियोग में श्रीराम का विलाप, जटायु मोक्ष, शबरी फल भोजन, वन वर्णन, पम्पासर पर्यटन, नारद हनुमान व सुग्रीव मिलन की लीला सम्पन्न हुई. प्रसंगानुसार सीता की खोज करते हुए वन में भटकते श्री राम रास्ते में गिद्धराज जटायु को राम राम भजते देख उसके सिर पर हाथ रखकर उसकी पीड़ा हर लेते हैं. गिद्धराज प्रभु श्री राम को रावण द्वारा सीता को हरण कर दक्षिण दिशा में ले जाने की जानकारी देने के उपरान्त स्वर्ग सिधार जाता है. श्री राम स्वयं उसका अंतिम संस्कार कर मोक्ष प्रदान करते हैं.

श्रापित कबंध राक्षस का वध

सीता को ढूंढते आगे बढ़ने पर दुर्वाषा ऋषि के श्राप से श्रापित कबंध राक्षस का वध कर उसका उद्धार करते हैं. प्रभु श्री राम शबरी के आश्रम में पहुंचते हैं जहां भिलनी शबरी उनकी प्रतीक्षा कर रही होती है. शबरी उन्हें आसन पर बैठा कर खाने के लिये कन्दमूल फल व बेर देती है श्री राम शबरी को नवधा भक्ति का ज्ञान देते हैं और सीता के बारे में पूछते हैं शबरी श्री राम को पम्पासर जैसे रमणीक स्थल के बारे मे बतातीे है जहां मतंग ऋषि की कृपा से सभी जानवर आपस में मिल जुल कर रहते हैं वहां सुग्रीव से मिलने की बात भी बताती हैं.

लीला में अरण्य काण्ड का प्रसंग समाप्त

तत्पश्चात हरिपद में लीन शबरी योगाग्नि में जलकर स्वर्ग चली जाती हैं. दोनों भाई पम्पासर सरोवर पर आकर स्नान करते हैं और शीतल छाया में बैठते हैं तभी नारद जी का आगमन होता है. यहां पर प्रभु श्री राम नारद जी के शंका का समाधान करते हैं इस प्रकार नारद का मोह दूर होता है वह श्री राम को प्रणाम कर प्रभु नाम भजते चले जाते हैं यहीं पर अरण्य काण्ड का प्रसंग समाप्त होता है और किष्किंधा काण्ड प्रारम्भ होता है

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