तस्वीरों में उतारी कश्मीर की सच्चाई, मिला पत्रकारिता का सबसे बड़ा सम्मान

यूं तो जम्मू-कश्मीर में आम जीवन को समय-समय पर तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है

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यूं तो जम्मू-कश्मीर में आम जीवन को समय-समय पर तमाम मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। आतंकवाद की गिरफ्त में रहने वाली कश्मीर की वादियों को गोली-बंदूक की आवाज़े, कर्फ्यू जैसी अमानवीय चीज़ों की आदत सी पड़ चुकी है। एक वो समय था जब बॉलीवुड की लगभग सारी फिल्मों को कश्मीर में शूट किया जाता था। एक आज का समय है जब फोटो खींचना भी वर्जित हो जाता है।

चैनलों के न्यूज़रूम के लिए जम्मू कश्मीर की खबरें दुर्लभ होती है। पत्रकारिता जिसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है, वो स्तंभ जम्मू-कश्मीर के आतंकी हमलों के सामने कमज़ोर पड़ जाता है। लेकिन इसे मज़बूत बनाने के लिए हमारे पास तमाम वीर-योद्धा है जिन्होंने मुश्किल से मुश्किल समय मे जम्मू कश्मीर की तमाम खबरों को देश के सामने रखा है। इन्हें पुरस्कृत करना हमारा कर्त्तव्य होना चाहिए। चलिए आपको पत्रकारिता क्षेत्र के सबसे गौरवपूर्ण पुरस्कार के बारे में बताते है।

पुलित्जर अवार्ड: जर्नलिज्म का सरताज-

PulitzerPrize

जोसफ पुलित्जर ने आप ने वसीहत मे कोलंबिया यूनिवर्सिटी को कुछ पैसे दिए थे और गुज़ारिश की थी कि एपिक जर्नलिज्म के लिए एक प्राइज की स्थापना की जाए। कोलंबिया यूनिवर्सिटी ने इसे ज़रूरी समझा और 4 जून 1917 पहला अवार्ड भी दिया। प्रत्येक साल इस अवार्ड की घोषणा अप्रैल के महीने में होती है। विश्व का पहला पुलित्जर अवार्ड फ्रेंच एम्बेसडर Jean Jules Jusserand को इनकी प्रतिष्ठित किताब जोकि अमेरिका में इतिहास में एक ही थी उसी के लिए मिला था।

पुलित्जर अवार्ड 2020 में क्या रहा ख़ास-

हर साल की भांति इस साल भी पुलित्जर अवार्ड के विजेताओं के नाम पूरी दुनिया के सामने रखे गए। लेकिन इस बार की घोषणा में कुछ अलग सा था। कोरोना ने अपने चपेट में लिए पूरे विश्व में कम्युनिकेशन टेक्नोलॉजी को बदलने का सोचा है, और वो नई टेक्नोलॉजी इस बार की घोषणा में भी इस्तमाल की गई। इस बार ख़ास ये रहा कि विजेताओं के सूची वर्चुअल माध्यम से की गई है। पुलित्जर अवॉर्ड की एडमिनिस्ट्रेटर डैना कैनेडी द्वारा यूट्यूब पर किया गया था। 4 अप्रैल की रात को डैनी ने इस अवार्ड के विजेताओं का नाम आखिर घोषित कर ही दिया।

भारत के 3 पत्रकार भी बने विजेता-

pulitzer prize

भारतीयों की आदत है वह किसी भी क्षेत्र को छोड़ते नहीं है। यही वजह रही कि जम्मू कश्मीर के तीन पत्रकारों ने अपना डंका पुलित्जर अवार्ड के विजेता बनकर पूरे पत्रकारिता जगत में बजा दिया। ये वो पत्रकार है जिन्होंने आर्टिकल 370 निरस्त होने के बाद जम्मू कश्मीर की हालत को अपने तस्वीरों में कैद किया और पूरी दुनिया के सामने रखा।

फोटोग्राफर्स ने पिछले साल अगस्त में फोन और इंटरनेट सेवाओं को बंद होने के बाद जम्मू-कश्मीर में विरोध प्रदर्शन, पुलिस, अर्धसैनिक कार्रवाई और दैनिक जीवन की छवियों को कैद कर लिया, जब दुनिया के लिए इस क्षेत्र तक पहुंच पाना मुश्किल हो था।

दर यासीन, मुख्तार खान और चुन्नी आनंद को उनकी जम्मू कश्मीर में की गई निडर और बेबाक पत्रकारिता के लिए इस गौरवशाली पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। आपको बता दें कि मुख़्तार खान और दर यासीन कश्मीर के रहने वाले है और चन्नी आनंद जम्मू शहर के रहने वाले है।

आनंद ने कहा कि पुरस्कार ने उन्हें अवाक्य छोड़ दिया था। ‘मैं हैरान था और यह विश्वास नहीं कर सकता,’ उन्होंने कहा। यासीन ने ट्वीट कर कहा, ‘यह एक सम्मान और एक विशेषाधिकार है जिसकी हम कभी कल्पना भी नहीं कर सकते हैं।’

आपकी अधिक जानकारी के लिए बता दे, ये तीनों पत्रकार फोटो जर्नलिस्ट थे और इनकी खींची गई फोटो जम्मू कश्मीर की हालत को बखूबी बयां कर रही थी।

[bs-quote quote=”इस आर्टिकल के लेखक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मास कॉम्युनिकेशन IIMC में स्टूडेंट हैं।” style=”style-13″ align=”center” author_name=”गौरव द्विवेदी ” author_job=”IIMC स्टूडेंट” author_avatar=”https://journalistcafe.com/wp-content/uploads/2020/05/gaurav.jpeg”][/bs-quote]

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