तबेले में पढ़ने को मजबूर मामा ‘शिवराज’ के भांजे
एक तरफ सरकार बच्चों को अच्छी शिक्षा के देने के लिए और उनका भविष्य उज्ज्वल बनाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। सरकार बच्चों को पढ़ाने के लिए नई-नई योजनाओं को लांच कर रही है। सरकार द्वारा चली जा रही शिक्षा के लिए योजनाओं का खाका तो तैयार हो जाता है लेकिन उनको शायद जमीनी तौर पर जगह नहीं मिलती है। शायद यही वजह है कि मध्य प्रदेश में भारत के भविष्य आज भैंस के तबेले में पढ़ने को मजबूर हैं।
शिवराज सरकार तमाम योजनाओं को चला रही है लेकिन वो योजनाएं शायद कागजों तक ही सीमित हैं। ऐसे में ये बच्चे मजबूरी में इस भैंस के तबेले में पढ़ने को मजबूर हैं। करीब दो साल से इसी भैंस के तबेले में पढ़ने को मजबूर हैं। ये आलम सिर्फ मध्य प्रदेश का ही नहीं हैं बल्कि पूरे देश में शिक्षा का स्तर ऐसे ही गिरा हुआ है। कहीं पेड़ के नीचे पाठशाला चल रही है तो कहीं किसी खंडहर में शिक्षक पढ़ाने को मजबूर हैं।
सरकार भले ही करोड़ों रुपए विज्ञापनों पर खर्च कर दें लेकिन जबतक जमीनी तौर पर योजनाओं को अमलीजामा नहीं पहनाया जाएगा तबतक बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ होता रहेगा। श्योपुर से 24 किलोमीटर दूर स्तिथ चौपना गांव का सरकारी प्राइमरी स्कूल पिछले 18 सालों से भैसों के इसी तबेले में संचालित हो रहा है।
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बच्चों को कड़कड़ाती सर्दी, झुलसाती गर्मी या घनघोर बारिश में भी इसी तबेले में बैठकर जानवरों के बीच पढ़ाई करनी पड़ती है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों में बच्चों की संख्या घटकर अब 50 ही रह गयी है। स्कूल में पदस्थ 2 टीचर भी स्कूल के हालातों से दो चार हो रहे हैं। वे करें भी तो क्या, कई दफा अधिकारियों से गुहार लगाने के बाद भी इस स्कूल की बिल्डिंग नहीं बन सकी है। इन सब के बावजूद भी बच्चे इस उम्मीद में पढ़ने आते हैं कि कभी न कभी सरकार इनका ख्याल जरुर करेगी।
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