‘प्रेम ना हाट बिकाय’ नाटक ने साबित किया प्रेम ही सत्य है
‘प्रेम ना हाट बिकाय’ नाटक का मंचन शुक्रवार को गोमतीनगर के भारतेन्दु नाटक अकादमी में किया गया। नाटक की कहानी शुरु होती है अवनि और अनवर के उस अटूट प्रेम से जो अडिग है। लेकिन अवनि की असमय मौत अनवर को तोड़ देती है। जिसकी वजह से वह नकारात्मक विचारों में घिरकर अंधेरी दुनिया में चल पड़ता है।अनवर के दोस्त उसे लाख समझाने की कोशिश करते हैं लेकिन जिन्दगी को लेकर अनवर नई दुनिया में जीने को तैयार नही होता है।
सपनों की अवनि अनवर को देती है जीने की दिशा
ऐसे में सूत्रधार और सपनो में आई अवनि उसको जीवन जीने को सकारात्मक दिशा देती है । नाटकीय उतर चड़ाव के बीच अनवर की पत्नी उसे मिलती है। जिसे बाद में जीवनसाथी के तौर पर आगे बढ़कर साथ ले जाती है। सूत्रधार के माध्यम से कथानक में कई बाते उठाई गयी तो कई प्रतीकों के प्रयोग ने मंचन को सवारा।
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‘मोको कहां ढूंढे रे बन्दे मै तो तेरे पास’
मोको कहां ढूंढे रे बन्दे मै तो तेरे पास’ में सूफी संत कबीर की ये पंक्तिया बताती हैं की इश्वर हम सबके भीतर है। उसे खोजने की जरूरत नहीं है। सूफियाना कलाम का ये अर्थ उस निश्चल प्रेम पर लागू होता है जो इश्वर का ही दूसरा रूप है प्रेम ही वो रास्ता है जो हमे इश्वरीय अनुभूति तक ले जाता है,जिसके मन में प्रेम नही वो इश्वर को भी कैसे पा सकता है। इसी कथानक से रूबरू कराते हुये नृत्य नाटक ‘प्रेम न हाट बिकाय’ का पूरा मंचन किया गया।जिसमे समाज को एक संदेश देने की कोशिश की गई है कि प्रम ही सत्य है।
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