बेसहारों का सहारा बना ‘तरुण’
हम सब सपने देखते है, वो भी अपने लिए, लेकिन जब किसी बेसहारों का सहारा बनना हो तो हम एक दूसरे की तरफ देखने लगते हैं। मगर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद में लावारिस और बेसहारा बच्चों के लिए आश्रय स्थल संचालित करने वाले तरुण गुप्ता इस दिखावटी भीड़ से अलग हैं। क्योंकि उन्होंने अपना सारा जीवन दूसरों की सेवा को समर्पित कर दिया।
आचार्य तरुण ‘मानव’
सेल्स और मार्केंटिंग में स्नातकोत्तर तरुण वर्ष 2006 तक कई बड़े संस्थानों को कर्मचारी उपलब्ध करवाने वाली एक मैनपावर कंसल्टेंसी फर्म का संचालन कर रहे थे। इसी दौरान उनके घर पर 2006 में एक पुत्र ने जन्म लिया और उन्होंने अपना जीवन लावारिस और बेसहारा बच्चों के लिए समर्पित कर दिया। समय के साथ कब तरुण गुप्ता अपने सेवा भाव के कारण आचार्य तरुण ‘मानव’ बन गए उन्हें पता ही नहीं चला।
बढ़ती गई रुचि
दरअसल, तरुण के बेटे के जन्म के समय उनके घर में नवजात से संबंधित सामान का ढेर लग गया और उन्होंने इस सामान को अपने कार्यालय के आसपास के इलाकों में रहने वाले झुग्गी वालों को बांटना प्रारंभ कर दिया। कुछ दिनों बाद तरुण के पड़ोसी भी इसी प्रकार से अपने घर के पुराने कपड़े इत्यादि इन गरीब बच्चों को देने प्रारंभ किए और समय के साथ उनकी रुचि इस काम में बढ़ती गई।
कैलाश सत्यार्थी का मिला साथ
इसके बाद तरुण ने बच्चों के लिए काम करने वाले नोबेल पुरस्कार प्राप्त कैलाश सत्यार्थी की संस्था ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के साथ संपर्क साधा और ‘चालल्ड राइट एडवोकेसी’ का काम प्रारंभ किया। तरुण कहते हैं कि उन्हें जात-पात में कोई विश्वास नहीं है और मानवता ही उनके लिए सबकुछ है।
‘ऑपरेशन स्माइल’
गुमशुदा बच्चों को तलाशने के लिए गाजियाबाद पुलिस द्वारा चलाए गए अभियान ‘ऑपरेशन स्माइल’ में इनके सक्रिय सहयोग ने इस अभियान की सफलता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वर्ष 2006 में अपने बेटे के जन्म के बाद तोहफे के रूप में मिले सामान को गरीब बच्चों के बीच बांटने से शुरू हुआ उनका यह अभियान समय के साथ वृहद स्वरूप लेता गया और कई लोग इस सफर में उनके साथी बने।
प्रेरणा बना तरुण का ‘आश्रम’
तरुण की संस्था ‘प्रेरणा परिवार बाल आश्रम’ गाजियाबाद के कविनगर क्षेत्र में एक किराए के मकान में संचालित हो रहा है, जिसमें 26 लावारिस और बेसहारा बच्चे रह रहे हैं और शिक्षा-दीक्षा प्राप्त कर रहे हैं।
तरुण की संस्था एक ऐसी संस्था है जो बिना किसी सरकारी सहायता के सिर्फ दान के सहारे चल रही है और फिलहाल उनके साथ रह रहे 18 बच्चे एक स्थानीय प्राईवेट स्कूल में पढ़ने जाते हैं।
हर तरह की व्यवस्था उपलब्ध
इसके अलावा इन्होंने भीख मांगने वाले और सड़कों पर कूड़ा इत्यादि इकट्ठा करने वाले बच्चों को शिक्षित करने के लिए एक ‘डे केयर सेंटर’ का संचालन प्रारंभ किया, जो विवेकानंद नगर इलाके में संचालित हो रहा है। उनके इस सेंटर में वर्तमान में 45 बच्चे पंजीकृत हैं और यहां पर इन बच्चों की पढ़ाई के अलावा उनके लिए प्राथमिक उपचार, मौसम के अनुसार जरूरत के कपड़े, डेंटल और आंखों के चेकअप इत्यादि की व्यवस्था की जाती है।
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