समान नागरिक संहिता पर सियासत! लॉ कमिशन मांग रही धर्मगुरुओं व लोगों की राय…
देश में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लागू करने की प्रक्रिया तेज कर दी गई है। यह वह कानून है जिसे सालों से लागू करने के लिए भाजपा सरकार ने लंबा इंतजार किया है। मगर देश में कई कानूनों में बदलाव कर चुकी भाजपा भी समान नागरिक सहिंता लागू कराने में असमर्थ रही है। ऐसे में अब लॉ कमिशन ने यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू करने के लिए सभी धर्मों के गुरुओं और देश की जनता से उनकी राय मांगी है। लोगों के विचारों के बहुमत के आधार पर ही इस कानून को लागू किया जा सकेगा। क्योंकि यह एक ऐसा कानून है, जो धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा सकता है। हालांकि इसके लागू होने के बाद न्याय प्रक्रिया सुदृढ़ व सुचारू हो जाएगी।
30 दिन में देनी होगी अपनी राय
बता दें, 22वें विधि आयोग यानी लॉ कमीशन ने सभी हितधारकों से समान नागरिक संहिता (UCC ) को लेकर उनके विचार मांगे हैं। इसके साथ ही विधि आयोग ने मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों से भी यूसीसी पर उनकी राय पूछी है। इसके लिए आयोग ने 30 दिन का समय दिया है। मालूम हो इससे पहले भी एक बार धार्मिक संगठनों से यूसीसी को लागू करने के लिए उनकी राय पूछी गई थी। लेकिन तब नकारात्मक जवाब ही मिले थे, जिसके बाद यह प्रक्रिया ज्यों का त्यों ही रह गई। वहीं, अब लॉ कमीशन ने एक बार फिर यूसीसी पर लोगों और मान्यता प्राप्त धार्मिक संगठनों की सहमति मांगी है। इसके लिए केंद्र सरकार की membersecretary-lci@gov.in मेल आईडी पर अपनी राय लिखनी है।
यूसीसी की व्याख्या
समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड का अर्थ होता है भारत में रहने वाले हर नागरिक के लिए एक समान कानून होना, चाहे वह किसी भी धर्म या जाति का क्यों न हो। समान नागरिक संहिता में शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में सभी धर्मों के लिए एक ही कानून लागू होगा। समान नागरिक संहिता के खिलाफ तर्क देने वालों का मत है कि विवाह, तलाक, भरण-पोषण, उत्तराधिकार आदि जैसे मामले धार्मिक मामले हैं और संविधान ऐसी गतिविधियों की स्वतंत्रता की गारंटी देता है और इसलिए समान नागरिक संहिता इसका उल्लंघन होगा।
यूसीसी पर सियासत
वहीं अब यूनिफॉर्म सिविल कोड पर सियासत भी तेज हो गई है। सियासी दलों ने इसे लोकसभा चुनाव 2024 से पहले वोटों के ध्रुवीकरण से जोड़कर देख रहे हैं। इसलिए विपक्षी दलों ने सीधे केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। साथ ही इस कानून पर धार्मिक गुरुओं की राय मांगने पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। इसी के तहत तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने गुरुवार को केंद्र सरकार पर राजनीति में धार्मिक लोगों को शामिल करने का आरोप लगाया है। केसीआर ने यूसीसी से जुड़े सवाल पर कहा कि केंद्र सरकार धर्मगुरुओं को इस मामले क्यों ला रहें हैं।
यूसीसी पर मुस्लिम संगठन की राय
समान नागरिक संहिता पर ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की तरफ से इसके विपक्ष में बयान आया है। AIMPLB की ओर से कहा गया है कि हर धर्म के लोगों पर एक समान पर्सनल लॉ थोपना संविधान के साथ खिलवाड़ करना है। मुस्लिम इसे उनके धार्मिक मामलों में दखल मानते हैं। बता दें, AIMPLB हमेशा से यूनिफॉर्म सिविल कोड को असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बताता रहा है।
यूसीसी पर आम लोगों की राय
अब समान नागरिक संहिता को लागू करने को लेकर लोगों की भी प्रक्रिया सोशल मीडिया पर आने लगी है। जहां लोग खुलकर इस कानून को लागू करने के लिए अपनी सहमति दे रहे हैं। साथ ही लोग इस कानून का स्वागत करने के लिए भी बेताब दिख रहे हैं। मगर फिर भी कुछ लोग इस कानून को लागू करने के खिलाफ हैं। यहां कुछ लोगों की समान नागरिक संहिता पर दी गई राय को आपसे साझा कर रहे हैं।
- प्रयागराज से गुलाबजी ने यूसीसी को लागू करना अच्छी पहल बताया है। गुलाबजी का कहा, ‘इसको फालतू का मुद्दा उठा लिया गया है। इसे एक राजनीतिक स्टंट न बनाएं। यह लागू होना ही चाहिए, इससे अनुशासन बना रहता है।’
- मनोज मधुप ने कहा, ‘जी हां ! समान नागरिक कानून लागू होना चाहिए। अब तक इसे देश में लागू हो भी जाना चाहिए था। भारत के संविधान में भी सेक्यूलरिज़्म को अपनाने और समान नागरिक कानून जल्द से जल्द लागू करने की बात कही गयी है। पर अब तक की सरकारें, वोट बैंक की घटिया राजनीति के चलते,इस बात पर आंखें मूंदे बैठी रहीं हैं।’
- आराधना वर्मा ने कहा, ‘हां अवश्य ही समान नागरिक संहिता कानून भारत में लागू किया जाना चाहिए। क्योंकि सभी लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देशों में यह लागू है।’
- uttarpradesh.org में काम करने वाली जर्नलिस्ट योगिता कहती हैं, ‘भारत में यूनिफार्म सिविल कोड की जरूरत सबसे ज्यादा है। क्योंकि यहाँ धर्म के नाम पर मिलने वाली सुविधाएँ बहुत है। तो कई बार दिमाग में आ ही जाता है की अगर किसी विशेष समुदाय में ऐसा होता है तो हमारे यहाँ क्यों नहीं? वहींस गोवा इकलौता ऐसा स्टेट है, जहाँ यूनिफार्म सिविल कोड का पालन होता है। वरना और सब जगहों पर सबके अपने पर्सनल लॉ हैं। इसलिए इसे जल्द लागू करना चाहिए।’
- राजनीति शास्त्री युवराज कहते हैं, ‘एक लोकतांत्रिक समाजवादी पंथनिरपेक्ष राष्ट्र में यूनिफॉर्म सिविल कोड ना हो पाना एक विडंबना ही नहीं अपितु एक काले स्याह धब्बे की तरह है। इसलिए देश में जल्द ही यूसीसी को लागू कर देना चाहिए।’
क्या UCC से प्रभावित होगा संविधान
समान नागरिक संहिता (UCC) को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 में अंकित किया गया है, जो कि मसौदे में अनुच्छेद 35 था। यह भारतीय संविधान के भाग 4 में निहित है और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों से भी संबंधित है। चूंकि ये गैर-न्यायिक अधिकार हैं, इसलिए इन्हें अदालतों में लागू नहीं किया जा सकता है। यहां स्पष्ट है कि अनुच्छेद 44 में हमारा संविधान स्पष्ट रूप से यूसीसी को निर्दिष्ट करता है। यूसीसी राज्य नागरिकों को भारत के पूरे क्षेत्र में एक समान नागरिक संहिता सुरक्षित करने का प्रयास करेगा। क्योंकि जब तक एक समान नागरिक संहिता का पालन नहीं किया जाता है, तब तक एकीकरण को आत्मसात नहीं किया जा सकता है।
किसने शुरू की थी पहल
भारतीय गणराज्य के पहले प्रधान मंत्री, जवाहरलाल नेहरू, उनके समर्थक और महिला सदस्य एक समान नागरिक संहिता को लागू करना चाहते थे। कानून मंत्री के रूप में, बीआर अंबेडकर इस विधेयक का विवरण प्रस्तुत करने के प्रभारी थे।
21वें लॉ कमीशन ने दी थी सलाह
21वें विधि आयोग (अगस्त 2018 में कार्यकाल खत्म हो गया था) ने समान नागरिक संहिता पर दो बार संबंधित लोगों की रायशुमारी की थी। इसके बाद आयोग ने पारिवारिक कानूनों में बदलाव की संस्तुति की थी। इसी संस्तुति पर अब 22वें विधि आयोग ने कदम बढ़ाते हुए हितधारकों से उनके विचार मांगे हैं। समान नागरिक संहिता यानी यूनिफॉर्म सिविल कोड के तहत देश के सभी नागरिकों के लिए एक जैसे कानून होंगे, वो धर्म या जाति पर आधारित नहीं होंगे। उदाहरण के तौर शादी, तलाक और जमीन-जायदाद के बंटवारे में पर्सनल लॉ जैसी चीजों की जगह समान नागरिक संहिता ही काम करेगी।
यूनिफॉर्म सिविल कोड चर्चा में क्यों है ?
लंबे समय से समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लागू करने की मांग उठती रही है। संविधान के संस्थापकों ने राज्य के नीति निदेशक तत्त्व के माध्यम से इसको लागू करने की ज़िम्मेदारी बाद की सरकारों को हस्तांतरित कर दी थी। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि सरकार समान नागरिक संहिता लागू करने में असफल रही है। इसलिए लॉ कमिशन को ही आगे बढ़कर इसे लागू करने की प्रक्रिया को तेज करना पड़ रहा है।
क्यों नहीं हो पा रही लागू ?
दरअसल, समान नागरिकता संहिता (यूसीसी) के अंतर्गत व्यक्तिगत कानून, संपत्ति संबंधी कानून और विवाह, तलाक तथा गोद लेने से संबंधित कानूनों में मतभिन्नता है। बता दें, भारत में अधिकतर व्यक्तिगत कानून धर्म के आधार पर तय किये गए हैं। हिंदू, सिख, जैन और बौद्ध धर्मों के व्यक्तिगत कानून हिंदू विधि से संचालित किये आते हैं। वहीं मुस्लिम व ईसाई धर्मों के अपने अलग व्यक्तिगत कानून हैं। मुस्लिमों का कानून शरीअत पर आधारित है, जबकि अन्य धार्मिक समुदायों के व्यक्तिगत कानून भारतीय संसद द्वारा बनाए गए कानून पर आधारित हैं। ऐसे में यूसीसी को लागू करना थोड़ा मुश्किल हो गया है। चूंकि भारत के सभी धर्मों के नागरिकों के लिये एक समान धर्मनिरपेक्ष कानून होना चाहिये। इसलिए यूसीसी को लागू करने के लिए अब तेजी से प्रक्रिया आगे बढ़ाई जा रही है।
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