टोपी नहीं पहनेंगे, लेकिन मस्जिद जाएंगे मोदी !

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नरेंद्र मोदी ने गुजरात के मुख्यमंत्री रहते हुए 2011 में मुस्लिम इमाम के हाथों टोपी पहनने से इनकार कर दिया था। अब सात साल बाद नरेंद्र मोदी(Modi) देश के पीएम हैं। मध्य प्रदेश के इंदौर में दाऊदी बोहरा समुदाय के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए सैफी मस्जिद पहुंचे जहां उन्हें शॉल ओढ़ाई गई और तसबी दी गई, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

गोल टोपी निकाल कर मोदी को पहनाने के लिए आगे बढ़े तो…

बता दें कि 2002 के गुजरात दंगे के बाद हिंदू-मुस्लिम के बीच नफरत की दीवार खड़ी हो गई थी। इस खत्म करने के लिए नरेंद्र मोदी ने 2011 में सामाजिक सद्भावना कार्यक्रम शुरू किया था। इस कार्यक्रम में इमाम मेंहदी हसन बाबा ने जेब एक गोल टोपी निकाल कर मोदी को पहनाने के लिए आगे बढ़े तो उन्होंने उसे रोक दिया। तब उन्होंने टोपी नहीं पहनी।

टोपी नहीं पहने पर मोदी की जबरदस्त आलोचना की गई। इसे उनकी मुसलमान विरोधी मानसिकता कहा गया। हालांकि उन्होंने उसके बाद आजतक कभी मुस्लिम समुदाय की टोपी नहीं पहनी। जबकि दूसरे धर्मों के प्रतीक चिन्हों को वह स्वीकार करते रहे हैं। चाहे सिख समुदाय की पगड़ी बांधनी रही हो या फिर इजराइल में यहुदी समुदाय की परंपरागत टोपी को पहनना रहा हो। उन्होंने इसे स्वीकार किया।

धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन के साथ कार्यक्रम में हिस्सा लिया

सात साल के बाद आज नरेंद्र मोदी देश के पीएम हैं। उन्होंने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय के 53वें धर्मगुरु सैयदना मुफद्दल सैफुद्दीन के साथ कार्यक्रम में हिस्सा लिया। पीएम नंगे पैर सैफी मस्जिद में प्रवेश किया और मजलिस में शामिल हुए।

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पीएम मोदी ने इस मौके पर हज़रत इमाम हुसैन की शहादत के स्मरणोत्सव ‘अशरा मुबारका’ में उपस्थित जन समुदाय को संबोधित किया। इस दौरान पीएम मोदी को बोहरा समुदाय के धर्मगुरु सैयदना ने ताबीज भी दिया। इतना ही नहीं मोदी को शॉल भी ओढ़ाई, जिसे उन्होंने सहर्ष स्वीकार किया।

मरसिया को सुनते रहे और मातम में शामिल हुए

मोदी ने पूरे कार्यक्रम में सैयदान के द्वारा इमाम हुसैन की शहादत पर पढ़ी जाने वाली मजलिस को सुना। हुसैन के गम में पढ़े जाने वाली मरसिया को सुनते रहे और मातम में शामिल हुए। इसके बाद उन्होंने कहा कि इमाम हुसैन अमन और इंसाफ के लिए शहीद हो गए। साभार

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