Plasma treatment : जानिये, कोरोना से ठीक हुए मरीज डाक्टरों के लिए इतने उपयोगी क्यों?
अनेक ठीक हुए कोरोना मरीज लोगों की रिकवरी में कर रहे हैं मदद
जबतक कोरोना की वैक्सीन खोज नहीं ली जाती तबतक दुनिया भर में प्लाज्मा ट्रीटमेंट Plasma treatment पर भी तेजी से अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। कोरोना वायरस का ठीक इलाज या टीका अबतक नहीं मिला है। इसलिए कोई क्लोरोक्विन से इलाज कर रहा है कि तो कोई एंथ्रोमाइसिन से इसका इलाज कर रहा है। अब इसमें Plasma treatment एक नाम जुड़ गया है जिससे डाक्टरों ने कुछ राहत की सांस ली है। वैसे यह Plasma treatment नया नहीं है। यह 130 साल पुराना है। 130 साल पहले यानी 1890 में जर्मनी के फिजियोलॉजिस्ट एमिल वॉन बेह्रिंग ने खोजा था। इसके लिए उन्हें नोबेल सम्मान भी मिला था। यह मेडिसिन के क्षेत्र में पहला नोबेल था। माना जा रहा है कोरोना से ठीक हुए मरीज बड़े डोनर बन सकते हैं इस नाते वे राष्ट्र के लिए बड़ी संपत्ति साबित हो सकते हैं।
दिल्ली, पंजाब जैसे राज्य में इसको ट्रायल के तौर पर मंजूरी मिल गई है।
कुछ मरीजों को इससे फायदा
Plasma treatment कितना कारगर है साफ तौर पर कहा नहीं जा सकता। लेकिन चीन में कुछ मरीजों को इससे फायदा हुआ था। तीन भारतीय-अमेरीकी मरीजों को भी इससे फायदे की खबरें थी। फिलहाल भारत में ICMR और DGCI ट्रायल के बाद ही इस बाबत कुछ कहेंगी।
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ज्ञात हो कि पिछले कई दिनों से आपने सुना होगा भारत की कई राज्य सरकारें आईसीएमआर यानी भारतीय चिकित्सा शोध परिषद से इस बात की अनुमति मांग रही हैं कि वे अपने यहां प्लाज्मा ट्रीटमेंट Plasma treatment से कोविड-19 के गंभीर मरीजों को ठीक करने का प्रयास करना चाहती हैं। दिल्ली में ही दो अस्पतालों को इसकी अनुमति मिली है। आईएलबीएस में डॉक्टर सरीन के नेतृत्व में प्रयोग चल रहा है, दूसरा मैक्स अस्पताल में जहां एक मरीज पर Plasma treatment आजमाने के बाद उसको वेंटिलेटर से वापस लाया गया। इसे एक शुरुआती सफलता मानी जा रही है।
Plasma treatment कितना कारगर?
खबरों के अनुसार सार्स-सीओवी, एच1एन1 और मर्स सीओवी जैसे खतरनाक वायरस के इलाज में भी इस थेरेपी का इस्तेमाल किया गया था।
द्वारका के मणिपाल हॉस्पिटल में रेस्पिरेटरी डिपार्टमेंट के हेड डॉ पुनीत खन्ना का कहना है कि “कोरोनावायरस से पीड़ित जो लोग अब पूरी तरह से स्वस्थ हो चुके हैं उनके ब्लड में जो एंटीबॉडीज बन जाती हैं उन्हें ही प्लाज्मा कहते हैं। डॉक्टर पुनीत कहते हैं कि इस थेरेपी में ठीक हुए व्यक्ति के ब्लड से एंटीबॉडीज निकालकर कोरोनावायरस से पीड़ित व्यक्ति के शरीर में डाली जाती हैं, जिससे कोरोनावायरस से पीड़ित व्यक्ति को ठीक किया जा सकता है।”
प्लाज्मा खून का तरल हिस्सा
इंसान के खून में 2 चीजें होती हैं, पहली रेड ब्लड सेल, दूसरी वाइट ब्लड सेल, तीसरी प्लेट्लेट्स और चौथी प्लाज्मा। प्लाज्मा खून का तरल यानी लिक्विड वाला हिस्सा होता है। शरीर में किसी वायरस के आ जाने पर प्लाज्मा ही एंटीबॉडी बनाने में मदद करता है। तो क्योंकि कोरोना भी शरीर में बाहर से आने वाला एक वायरस है, ऐसे में हमारा शरीर इससे लड़ने के लिए खुद-ब-खुद एंटीबॉडी बनाता है, जिसमें सबसे बड़ी भूमिका होती है रक्त में मौजूद प्लाज्मा। आपका शरीर कितना ज्यादा एंटीबॉडी बनाने में कारगर है यही बात कोरोना के हराने के लिए जरूरी है। शरीर अगर जरूरत के अनुसार एंटी बॉडी बना लेता है तो ठीक हो सकता है। अब दूसरी बात, जब आप एंटीबॉडी बना कर किसी वायरस को मात दे देते हैं, तो इसके बाद भी लंबे समय तक एंटीबॉडी प्लाज्मा के साथ आपके खून में मौजूद रहती हैं। इस तरह समझ जायें कि कैसे कोरोना को हराकर अपने घरों को लौटे लोग कितनी बड़ी उम्मीद की किरण बनकर सामने आये हैं।
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खून से प्लाज्मा लेने के दो तरीके हैं
पहला – सेंट्रिफ्यूज तकनीक। इसमें 180 मिलीलीटर से 220 मिलीलीटर तक कन्वेंशनल सीरा यानी प्लाज्मा पा सकते हैं।
दूसरा- एफ़्रेसिस मशीन / सेल सेपरेटर मशीन का उपयोग करके। इस तरीके से एक बार में 600 मिलीलीटर प्लाज्मा लिया जा सकता है।
किसी डोनर के शरीर से प्लाज्मा लेने के बाद उसे तकरीबन एक साल तक -60 डिग्री सेल्सियस के तापमान में स्टोर करके रखा जा सकता है।
कोरोना को मात देने वाला बेहद उपयोगी
ऐसे में वह व्यक्ति, जो वायरस को मात देकर स्वस्थ हो गया है, अगर ब्लड डोनेट करता है, तो उसके खून से प्लाज्मा में मौजूद एंटीबॉडी को दूसरे मरीज में डाला जा सकता है। और बीमार या संक्रमित शरीर में जाकर ये एंटीबॉडी फिर से अपना काम शुरू करते हैं और मरीज को ठीक होने में मदद करते हैं।
डॉक्टर्स के मुताबिक एक इंसान से खून के प्लाजमा की मदद से दो लोगों का इलाज किया जा सकता है। अब कोशिश तीन लोगों के इलाज की बात भी कही जा रही है।
कोरोना से जंग जीतने वाला रक्तदान कर सकता है
अगर किसी व्यक्ति में कोरोना वायरस का संक्रमण होता है और वह इससे जंग में जीत जाता है, तो वह भी प्लाज्मा डोनेट कर सकता है। ऐसा इंसान कोरोना नेगेटिव आने के दो हफ्ते बाद ही प्लाज्मा डोनेट बन सकता है।
राज्य सरकारों ने मांगी है इजाजत
देश के कई राज्यों ने प्लाज्मा तकनीक को आजमाने के लिए केंद्र सरकार से इजाजत मांगी है। कुछ को इजाजत मिल भी गई है। ये फिलहाल ट्रायल के तौर पर इस तकनीक का इस्तेमाल करनेवनाले हैं। इसमें दिल्ली, केरल, पंजाब, महाराष्ट्र और तमिलनाडु शामिल हैं। दिल्ली में वेंटिलेटर पर रखे गए शख्स को यह इलाज देना शुरू किया गया है। फिलहाल उसके नतीजों का इंतजार है।
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