यहां शहीदों पर फूल नहीं, चढ़ाया जाता है जल

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देश की सीमा पर हमारे सैनिक सीना तानकर खड़े रहते हैं। ठंडी बरसात और झुलसाने वाली गर्मी में भी ये अपना धैर्य नहीं खोते हैं। कभी-कभी इन्हें भूंखो रहना पड़ता है तो कभी पानी के लिए मीलों जाना पड़ जाता है। उत्तरकाशी जिले की नेलांग घाटी जहां पर हमारे देश के जवान हांड़ कंपाने वाली ठंड में सीना तानकर खड़े रहते हैं।

पानी की तलाश में गए जवान कभी वापस नहीं लौटे

23 साल पहले नेलांग घाटी पर तैनात जवानों के पास पीने का पानी खत्म हो गया जिके बाद पानी की तलाश में निकले तीन जवान फिर कभी वापस नहीं लौटे। जवान तो वापस नहीं आ लेकिन उनकी यादें आज भी लोगों के दिलों में जिंदा है और उनकी याद में एक स्मारक वहीं पर बनाया गया जिसपर कभी फूल नहीं चढ़ाए जाते हैं बल्कि जल चढ़ाया जाता।

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नेलांग घाटी में बना है स्मारक

जिला मुख्यालय से करीब 110 किलोमीटर दूर नेलांग घाटी में आबादी नहीं है केवल भारत-तिब्बत सीमा पुलिस और सेना की चौकियां हैं। ठण्ड के दिनों में पानी जम जाने की वजह से जवानों को बर्फ पिघलाकर अपनी प्यास बुझाते हैं।

साल 1994 में घटी थी घटना

आप को बता दें कि घटना 6 अप्रैल 1994 की है। सेना की 64-फील्ड रेजिमेंट के हवलदार झूम प्रसाद गुरंग, नायक सुरेंद्र  सिंह और दिन बहादुर गश्त पर थे तबी इनका पानी खत्म हो गया तो नेलांग से करीब 2 किलोमीटर पहले पानी लेने गए थे तभी अचानक तूफान आ जाने से ये तीनों जवान बर्फीले तूफान में फंस गए और बर्फ के पहाड़ के नीचे दब गए।

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बर्फ में दब गए थे जवान

जब इनकी तलाश शुरू हुई तो तीनों जवानों के शव बर्फ से निकाले गए। आइटीबीपी केकमांडेंट केदार सिंह रावत का कहना है कि इस घटना के बाद शहीद जवान अपने साथियों के सपने में आए और पानी मांगने लगे तभी से ये परंपरा चली आ रही है। साल 1994 में शहीद जवानों की याद में समारक बनवाया गया तब से यहां सैनिक और पर्यटक जल चढ़ाते हैं।

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