आत्मा की शांति के लिए विदेशी भी पहुंचे ‘गया’

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एक ओर जहां आधुनिकता की अंधी दौड़ में आम तौर पर भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म से लोग दूर हो रहे हैं, वहीं यहां की सनातन परंपरा के आकर्षण ने विदेशियों को भी इस पितृपक्ष में बिहार में मोक्षस्थली माने जाने वाले विष्णु नगरी गया खींच लाया है।

स्पेन और जर्मनी से 18 विदेशियों का एक जत्था  पहुंचा

पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति और मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण के लिए रूस, स्पेन और जर्मनी से भी लोग यहां पहुंचे हैं। विदेशी पर्यटकों ने अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए शुक्रवार को मोक्षदायिनी फल्गु नदी में तर्पण अर्पण करने के बाद विष्णुपद के देव घाट पर श्राद्घ कर्म किया और पिंडदान किया। विदेशी पर्यटक पूर्वजों के पिंडदान और तर्पण के लिए रूस, स्पेन और जर्मनी से 18 विदेशियों का एक जत्था गुरुवार को गया पहुंचा था।

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मोक्ष के लिए तर्पण एवं पिंडदान करेंगे

टीम का नेतृत्व कर रहे लोकनाथ गौड़ ने मीडिया से कहा, “ये लोग भारतीय संस्कृति से काफी प्रभावित हैं। यहां आने के बाद सभी ने गयाजी की पावन भूमि को नमन किया। वे यहां की सनातन परंपरा से काफी प्रभावित हैं। पितृपक्ष में अगले तीन दिनों तक यहां रुक कर अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और उनके मोक्ष के लिए तर्पण एवं पिंडदान करेंगे।”

पूर्वजों को सम्मान देने के लिए यहां आए हैं

उन्होंने बताया कि वे शनिवार को पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और रविवार को अक्षयवट में कर्मकांड करेंगे। उसके बाद सभी सदस्य नई दिल्ली के लिए रवाना हो जाएंगे।विदेश से आने वाले पिंडदानियों ने कहा कि उन्होंने गया में पिंडदान के बारे में बहुत कुछ सुन रखा है और उससे प्रभावित होकर वे अपने पूर्वजों को सम्मान देने के लिए यहां आए हैं।

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यहां आने के लिए प्रेरित हुई…

देवघाट में पिंडदान करने के बाद रूस की क्रिकोव अनंतोलल्ला ने कहा, “मैं यहां अपने पति, परिवार और देश में शांति के लिए आई हूं। गया में पूर्वजों को लेकर होने वाले इस अनुष्ठान के बारे में मैंने सुन रखा था, जिससे यहां आने के लिए प्रेरित हुई।”

दुर्भाग्य से छुटकारा पाने के लिए यहां आई

जर्मनी से आईं युगेनिया क्रेंच ने मीडिया से कहा कि उनके परिवार और घर में कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है, इसलिए वह अपने इस दुर्भाग्य से छुटकारा पाने के लिए यहां आई हैं। उन्होंने कहा, “सनातन धर्म के विषय में मैंने काफी कुछ सुना है। इस कर्मकांड से न केवल पूर्वजों को मुक्ति (मोक्ष) मिलती है, बल्कि वर्तमान स्थिति में भी खुशहाली आती है।”

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पितृ योनि की स्वीति और आस्था के कारण श्राध का प्रचलन

गौरतलब है कि सभी विदेशी भारतीय वेशभूषा में वैदिक मंत्रोच्चार के बीच पारंपरिक तरीके से इस कर्मकांड में शामिल हो रहे हैं। उल्लेखनीय है कि मंगलवार से प्रारंभ पितृपक्ष मेला 20 सितंबर को समाप्त होगा। आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष पितृपक्ष या महालया पक्ष कहलाता है। हिंदू धर्म और वैदिक मान्यताओं में पितृ योनि की स्वीति और आस्था के कारण श्राद्घ का प्रचलन है।

सोलह पीढ़ियों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिल जाती

ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्घ कर्म कर पिंडदान और तर्पण करने से पूर्वजों की सोलह पीढ़ियों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिल जाती है। इस मौके पर किया गया श्राद्घ पितृऋण से भी मुक्ति दिलाता है। पितृपक्ष में पिंडदान के लिए प्रसिद्घ गयाजी में इस बार 10 लाख श्रद्घालुओं के आने की संभावना है।

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