भारत में बढ़ रहे ऑस्टियो ऑर्थराइटिस के मरीज
आंकड़े गवाह हैं कि भारत में एक करोड़ से अधिक ऑस्टियो ऑर्थराइटिस के मामले हर साल सामने आते हैं। छह करोड़ से ज्यादा मरीज यहां पहले से ही मौजूद हैं। यही हाल रहा तो वर्ष 2025 तक भारत ऑस्टियो ऑर्थराइटिस की राजधानी ही बन जाएगा। ऑस्टियो ऑर्थराइटिस अक्सर पाए जाने वाली मांसपेशियों व हड्डियों की समस्या है, जिसका सेहत, सामाजिक व आर्थिक तौर पर सबसे अधिक दुष्प्रभाव वृद्धों पर पड़ता है। यह बीमारी धीरे-धीरे बढ़ती है, हालांकि कुछ मरीजों में यह तेजी से भी पनपती देखी गई है।
ऑस्टियो ऑर्थराइटिस को जोड़ों का ह्रास भी कहते हैं और यह किसी भी जोड़ को प्रभावित कर सकती है। हालांकि यह ज्यादातर घुटनों, नितंबों, कमर के निचले भाग, गर्दन और उंगलियों के जोड़ों में अधिक होती है। इसे प्राय: दवाइयों व फिजियोथेरेपी से ठीक किया जाता है और दर्द अधिक होने पर इसका मरीज बिस्तर भी पकड़ सकता है। फिलहाल, सर्जरी के जरिए ट्रांसप्लांट कर इसके गंभीर मामलों को ठीक किया जाता है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) व हार्टकेयर फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, “ऑस्टियो ऑर्थराइटिस दुर्बल कर देने वाली स्थिति होती है और यह अक्सर बढ़ती उम्र, मोटापे, जोड़ों में लगी किसी पुरानी चोट, जोड़ों पर अधिक दबाव, कमजोर जांघों और जींस आदि के कारण होती है। इसके लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है सुबह के समय जोड़ों में दर्द और जकड़न।”
उन्होंने कहा कि मोटापे या अधिक भार के कारण कई बार, घुटनों की कार्टिलेज क्षतिग्रस्त हो जाती है, जिससे ऑस्टियो ऑर्थराइटिस हो जाती है। बॉडी मास इंडेक्स में प्रति इकाई वृद्धि होने से कार्टिलेज क्षतिग्रस्त होने की आशंका 11 प्रतिशत बढ़ जाती है।
डॉ. अग्रवाल ने बताया, “शरीर का वजन घटाकर इस बीमारी को बढ़ने से रोका जा सकता है। अपने शरीर को अधिक भारी या मोटा मत होने दीजिए। समय पर संतुलित भोजन और व्यायाम करके शरीर के वजन को नियंत्रित रखा जा सकता है। इससे आप घुटने की सर्जरी से अपना बचाव कर सकते हैं।”
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उन्होंने कहा कि तीन तरह के व्यायाम कर शरीर के वजन व जोड़ों के दर्द से छुटकारा मिल सकता है। ये व्यायाम हैं :
– स्ट्रेचिंग : शरीर को तानने से जोड़ों की गतिशीलता बढ़ती है और दर्द से आराम मिलता है।
– मजबूती देने वाले व्यायाम : इनसे जोड़ों को बांधे रखने वाली पेशियां मजबूत होती हैं और अंग सही जगह पर रहते हुए ठीक से गतिशील बने रहते हैं।
– फिटनेस वाले व्यायाम : इनसे वजन को नियंत्रण में रखा जा सकता है और ऑस्टियो ऑर्थराइटिस के खतरे को भी टाला जा सकता है।
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