रामलला की प्राण प्रतिष्ठा करने वाले पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित का निधन, 86 वर्ष में ली अंतिम सांस

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अयोध्या के राममंदिर में रामलाल की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करने वाले पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित का शनिवार को निधन हो गया है, उन्होंने 86 साल की उम्र में अपनी अंतिम सांस ली है. बताया जा रहा है कि, वे लम्बे समय सें गंभीर बीमारी के जूझ रहे थे. जिसके बाद आज उन्होने उपचार के दौरान ही अपनी अंतिम सांस ली है. इस खबर के सामने आने के बाद महंत समाज में शोक की लहर दौड़ गयी है. निधन के पश्चात पंडित दीक्षित की शव यात्रा उनके निवास स्थान मंगलागौरी से निकाली जाएगी. वाराणसी के मीरघाट स्थित सांगवेद महाविद्यालय में लक्ष्मीकांत दीक्षित वरिष्ठ आचार्य थे. इस विश्वविद्यालय को काशी नरेश ने स्थापित किया था. आचार्य लक्ष्मीकांत को काशी में यजुर्वेद के महान विद्वानों में गिना जाता था.

कौन थे पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित ?

साल 1942 में उत्तरप्रदेश के जिला मुरादाबाद में पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित का जन्म हुआ था, उनके पिता का नाम वेदमूर्ति मथुरानाथ दीक्षित और माता का नाम रूक्मिणी दीक्षित था. वही पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित का पूरा नाम लक्ष्मीकांत मथुरानाथ दीक्षित था. इनके विषय मे बताया जाता है कि, काशी के वेदमूर्ति पंडित गणेश दीक्षित और वेदमूर्ति पंडित मंगल जी के सानिध्य में रहकर श्रौत-स्मार्त यागों, शुक्लयजुर्वेद के मूल से अष्टविकृति पर्यन्त का अध्ययन किया गया था. शुक्ल यजुर्वेद के सर्वश्रेष्ठ विद्वान वेदमूर्ति लक्ष्मीकांत के बहुत से शिष्य विश्व भर में वेदसेवा करते हैं.

मूलरूप महाराष्ट्र के थे निवासी

लक्ष्मीकांत दीक्षित भी पूजा पद्धति में सिद्धहस्त थे, लक्ष्मीकांत दीक्षित ने अपने चाचा गणेश दीक्षित भट्ट से वेद और अनुष्ठानों की दीक्षा ली थी. वही लक्ष्मीकांत दीक्षित का परिवार कई पीढ़ियों पहले काशी में आकर बस गया था. वे मूल रूप से महाराष्ट्र के शोलापुर जिले के जेऊर में रहते थे. उनके पूर्वजों ने भी नागपुर और नासिक राज्यों में धार्मिक अनुष्ठान कराएं है. इसके साथ ही पंडित दीक्षित के सुपुत्र सुनील दीक्षित ने जानकारी देते हुए बताया था कि, 17वीं शताब्दी में छत्रपति शिवाजी महाराज को भी उनके पूर्वज रहे पंडित गागा भट्ट ने राज्याभिषेक करवाया था.

कई राष्ट्रीय पुरस्कारों से किया गया सम्मानित

आपको बता दें कि, 16 जनवरी को राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम शुरू हुआ, जिसके मुख्य पुजारी पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित थे. उस समय श्री लक्ष्मी कांत ने प्रधानमंत्री मोदी को एक सूत्र में बांधने का काम किया था. पंडित लक्ष्मीकांत जी भी बहुत ख्यात हैं क्योंकि वे भारत, नेपाल और कई शहरों में मंदिरों के वैदिक अनुष्ठानों में प्रमुख आचार्य रहा करते थे. इसके अलावा उन्हें देश के कई सारे राष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया है जिसमें देवी अहिल्या बाई राष्ट्रीय पुरस्कार, वेदसम्राट, वैदिक भूषण, वैदिक रत्न और वैदिक भूषण भी शामिल है.

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22 जनवरी को हुई थी प्राण प्रतिष्ठा

500 सालों के संघर्ष के बाद अयोध्या में राममंदिर के पुनर्निमाण का कार्य किया जा रहा है, जिसके साथ ही एक तल के पूर्ण होने पर 22 जनवरी को राममंदिर में रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की गई थी. इस कार्यक्रम का काफी भव्य आयोजन कराया गया था, जिसमें देश विदेश के कई बडी हस्तियां शामिल हुए थी. वही इस भव्य अनुष्ठान में 121 पुजारियो के समूह ने भी हिस्सा लिया था. जिसमें काशी के पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित को मुख्य पुजारी चुना गया था. वैसे 16 जनवरी से प्राण प्रतिष्ठा के अनुष्ठान शुरू हो गए थे, लेकिन 22 जनवरी को मंगल अनुष्ठान का समापन हुआ था. पीएम नरेंद्र मोदी ने अयोध्या में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में भाग लिया था. प्रधानमंत्री मोदी ने इसके बाद पंडित लक्ष्मीकांत दीक्षित से मुलाकात भी की थी.

 

 

 

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