पंचायत चुनाव- गांव-गांव दुश्मनी की बयार, बहने लगा है खून
बड़ागांव थाना क्षेत्र के इंदरपुर में बीती रात पूर्व प्रधान विजेन्द्र यादव (45 वर्ष) की गोली मारकर हत्या कर दी गयी. बदमाशों ने उसे सात गोली मारी, उसकी मौत निश्चित होने के बाद फरार हो गए. पुलिस को मामले को पंचायत चुनाव (panchayat election) से जोड़कर देख रही है. विजेन्द्र इस बार भी प्रधान का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा था. यह बात कुछ लोगों को खटक रही थी. आशंका है कि इन लोगों ने भाड़े के हत्यारों से पूर्व प्रधान की हत्या करा दी. पंचायत चुनाव का डेट तो डिक्लेयर हो चुका है लेकिन इसका रंग पूरी तरह चढ़ भी नहीं कि हत्याओं का दौर शुरू हो गया है. विजेन्द्र की हत्या पंचायत चुनाव (panchayat election) में हिंसा का पहला मामला नहीं है इसके पहले भी चुनावी रंजिश में कई लोगों को पर हमला किया गया जिसमें कई की जान चली गयी.
सबको समझ आ रहा महत्व
अन्य चुनावों की अपेक्षा पंचायत इलेक्शन (panchayat election) में हिंसा की आशंका कहीं ज्यादा होती है. बढ़ते प्रभाव और पैसों की वजह से सामान्य लोगों के लेकर बाहुबली तक इसमें हाथ आजमा रहे हैं. लोकतांत्रिक ढांचे में गांव की सरकार के प्रभाव का असर है कि स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय पार्टियां तक अपने उम्मीदवार उतार रही हैं. प्रत्याशी चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक चले जा रहे हैं. ग्राम प्रधान से लेकर जिला पंचायत अध्यक्ष तक के चुनाव खर्च की सीमा तयकर दी गयी है लेकिन सबसे महत्वपूर्ण माने जाने वाले प्रधान पद का लगभग हर प्रत्याशी उससे कई गुना ज्यादा लगभग 10 से 20 लाख रुपये तक खर्च कर रहा है. पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी तय होने में तो यह खर्च करोड़ के आसपास पहुंच जा रहा है. अगर रुपयों से बात नहीं बनी तो हिंसा का सहारा भी लिया जा रहा है. प्रत्याशी अपने प्रतिद्वंदि और वोटर्स के बीच डर पैदा करने के लिए किसी की जान लेने से भी नहीं चूक रहे हैं.
यह बन रहे हिंसा का कारण
पिछले दो दशक से जखनिया का प्रधान पद अंटू सिंह के परिवार में रहा. इस बार उनकी पत्नी सीमा सिंह प्रधान रहीं. उन्होंने पंचायत इलेक्शन में हिंसा की कई वजह बताते हैं. जाल्हूपुर के तीन बार से प्रधान रहे बबलू सिंह भी हिंसा से चिंतित हैं. उन्हें भी कई वजह नजर आती हैं इसकी. इनका कहना है कि…
-गांव-गिरावं में प्रधान का पद रुतबे वाला माना जाता है
-स्थानीय और राष्ट्रीय पार्टियों के चुनाव में कूदने से गंवई राजनीति करने वालों को अब यह बड़ा करियर नजर आने लगा है.
-प्रशासन और सरकार से सीधे संवाद का रास्ता खुल गया है.
-गांव के हर जरूरतमंद व्यक्ति को राशन से लेकर मकान तक का इंतजाम प्रधान के ही माध्यम से होना है इससे गांव में रुतबा और बढ़ जाता है
-गांवों में जमीनों की प्लाटिंग से लेकर फैक्ट्रियां लगने तक प्रधान के आशीर्वाद से ही हो रहा है.
-विकास के नाम पर बड़ी रकम गांवों में आने से लोगों का आकर्षण बढ़ा है
-शिक्षा समेत अन्य कार्यों के लिए अब रुपये काफी ज्यादा आ रहे हैं
-गांवों के विकास को लेकर केन्द्र व प्रदेश सरकार तक के प्रोजेक्ट में गांव की सरकार की अहम भूमिका रहती है
टूट रहा सामाजिक ताना-बाना
सबसे शांत और सुकून देने वाले गांव में जब से राजनीति घुसी है तब से वहां अशांति का दौर चल रहा है. सगे पट्टिदार-रिश्तेदार एक-दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं. यह कहना बीएचयू के समाजशास्त्री भरत सिंह का. वो कहते हैं कि हमारा समाजिक ताना-बाना सबसे ज्यादा गांव में मजबूत था. पीढ़ियों से लोग एक-दूसरे के साथ प्रेम से रहते आ रहे हैं. हर किसी के सुख-दुख में साथ होते हैं. तीज-त्योहर मिलकर मनाते हैं. लेकिन राजनीति के स्वार्थ ने वहां के माहौल को बदल दिया है. अब वहां वैमनस्यता बढ़ रही है. पद और प्रतिष्ठा हासिल करने के लिए लोग एक-दूसरे के दुश्मन बन रहे हैं. यह दुश्मनी एक बार शुरू हो रही है तो कई पीढ़ियों तक चल रही है. इस पर लगाम ना लगा तो सामाजिक बिखराव और हिंसा बढ़ती ही जाएगी.
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चौंका रहीं हाल में हुई घटनाएं
-आजगमढ़ के वरदह थाना अंतर्गत सोनहरा गांव में अनिल यादव की लाठी-डंडों से पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी. वह अहमदाबाद में जिंस की फैक्ट्री चलाता था. प्रधान पद का चुनाव लड़ने के लिए अपने गांव आया था.
-चंदौली जिले के चकिया कोतवाली के रूपई गांव में निवर्तमान प्रधान के भाई जसवंत (32 वर्ष) की गोली मारकर हत्या कर दी गयी. वह चुनाव की कैम्पेनिंग में लगा था.
-वाराणसी के चौबेपुर के बरई गांव में होली के दिन विवाद में निवर्तमान बीडीसी की पीट-पीटकर हत्या कर दी गयी.
-आजमगढ़ के रौनापार देवारा खास राजा की निवर्तमान प्रधान इंदिरा देवी की बड़ी बहु अनीता चुनाव लड़ रही हैं. उनका चुनाव संभाल रहे छोटे पुत्र आशीष को गोली मार दी गयी.
-वाराणसी जिले के रोहनिया में पत्रकार एनडी तिवारी की हत्या में पुलिस पंचायत चुनाव के एंगल को भी खंगाल रही है. एनडी गांव की राजनीति में काफी प्रभावशाली माने जाते थे.
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