देखिये, प्रकृति के लिए कोरोना संकट कैसे बन गया वरदान!
लॉकडाउन ने भर दिया ओजोन में हुआ इतिहास का सबसे बड़ा छेद
वाशिंगटन : दुनिया पर आए संकट के बहाने इंसान को इस बात का अहसास हो गया है कि प्रकृति को संतुलन में लाने के लिए कुछ करने की नहीं, कुछ न करने की जरूरत है।
आपके लिए वायरस की वजह से आई महामारी और लॉकडाउन की परिभाषा कुछ भी हो, घरों में कैद होने के बाद आप मौजूदा परिस्थिति को लेकर कुछ भी सोच रहे हों लेकिन प्रकृति के लिए यह संकट एक वरदान के तौर पर सामने आया है।
इंसान को छोड़ दें तो ग्रह पर अन्य कई जीवों के लिए यह जीवन को बेहतर करने वाला समय है और ऐसे समय में जब इंसान ने काम से ब्रेक ले लिया है तब प्रकृति अपनी मरम्मत करते हुए खुद को संवारने में जुट गई है।
प्रकृति चैन की सांस ले रही
लॉकडाउन से इंसान भले ही परेशान हो लेकिन जीव-जंतु, पेड़-पौधे और प्रकृति चैन की सांस ले रहे हैं। इस महीने यानी अप्रैल की शुरुआत में वैज्ञानिकों को उत्तरी ध्रुव यानी नॉर्थ पोल के ऊपर स्थित ओजोन Ozone लेयर में एक 10 लाख वर्ग किमी का छेद दिखा था। यह इतिहास का सबसे बड़ा छेद था। लॉकडाउन की वजह से कम हुए प्रदूषण की वजह से ये छेद भर गया है।
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ये एक बड़ी खुशखबरी है
धरती के उत्तरी और दक्षिणी ध्रुवों के ऊपर ओजोन Ozone लेयर है। इससे पहले भी लॉकडाउन ने दक्षिणी ध्रुव के Ozone लेयर के छेद को कम किया था। वैज्ञानिकों का दावा था कि यह अब तक के इतिहास का सबसे बड़ा छेद है। यह 10 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला था।
उत्तरी ध्रुव यानी नॉर्थ पोल यानी धरती का आर्कटिक वाला क्षेत्र। इस क्षेत्र के ऊपर एक ताकतवर पोलर वर्टेक्स बना हुआ था। जो अब खत्म हो गया है। नॉर्थ पोल के ऊपर बहुत ऊंचाई पर स्थित स्ट्रेटोस्फेयर पर बन रहे बादलों की वजह से Ozone लेयर पतली हो रही थी।
लॉकडाउन से सीधा संबंध नहीं
एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार छेद के बंद होने का लॉकडाउन के प्रदूषण के स्तर में कमी के साथ फिलहाल कोई सीधा संंबंध सामने नहीं आया है। यह ध्रुवीय भंवर और उच्च ऊंचाई वाली धाराओं की वजह से हुआ है जो ध्रुवीय क्षेत्रों में ठंडी हवा लाने के लिए जिम्मेदार हैं। विशेष रूप से जुलाई से सितंबर के दौरान दक्षिणी ध्रुव पर अंटार्कटिक के ऊपर ओजोन परत में इस तरह के छेद काफी आम हैं लेकिन, इस बार बीते अप्रैल में आर्कटिक के ऊपर देखा गया Ozone परत का छेद असामान्य था, जो कि अब भर गया है।
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छेद कम करने के पीछे तीन सबसे बड़े कारण
Ozone लेयर के छेद को कम करने के पीछे मुख्यतः तीन सबसे बड़े कारण थे बादल, क्लोरोफ्लोरोकार्बन्स और हाइड्रोक्लोरोफ्लोरोकार्बन्स। इन तीनों की मात्रा स्ट्रेटोस्फेयर में बढ़ गई थी। इनकी वजह से स्ट्रेटोस्फेयर में जब सूरज की अल्ट्रवायलेट किरणें टकराती हैं तो उनसे क्लोरीन और ब्रोमीन के एटम निकल रहे थे। यही एटम Ozone लेयर को पतला कर रहे थे। जिसके उसका छेद बड़ा होता जा रहा था। इसमें प्रदूषण औऱ इजाफा करता लेकिन लॉकडाउन में वो हुआ नहीं।
नासा के वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसी स्थिति आमतौर पर दक्षिणी ध्रुव यानी साउथ पोल यानी अंटार्कटिका के ऊपर ओजोन लेयर में देखने को मिलती है। लेकिन इस बार उत्तरी ध्रुव के ऊपर ओजोन लेयर में ऐसा देखने को मिल रहा है।
ओजोन लेयर जीवन को अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है
आपको बता दें कि स्ट्रेटोस्फेयर की परत धरती के ऊपर 10 से लेकर 50 किलोमीटर तक होती है। इसी के बीच में रहती है ओजोन लेयर जो धरती पर मौजूद जीवन को सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणों से बचाती है।
बसंत ऋतु में दक्षिणी ध्रुव के ऊपर की ओजोन लेयर लगभग 70 फीसदी गायब हो जाती है। कुछ जगहों पर तो लेयर बचती ही नहीं। लेकिन उत्तरी ध्रुव पर ऐसा नहीं होता. यहां लेयर पतली होती आई है लेकिन ऐसा पहली बार हुआ था कि इतना बड़ा छेद देखने को मिला।
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ओजोन लेयर का छेद भर गया
ओजोन लेयर का अध्ययन करने वाले कॉपनिकस एटमॉस्फेयर मॉनिटरिंग सर्विस के निदेशक विनसेंट हेनरी पिउच ने कहा कि यह कम तापमान और सूर्य की किरणों के टकराव के बाद हुई रासायनिक प्रक्रिया का नतीजा है।
विनसेंट हेनरी ने कहा कि हमें कोशिश करनी चाहिए कि प्रदूषण कम करें। लेकिन इस बार ओजोन में जो छेद हुआ है वो पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों के लिए अध्ययन का विषय है। हमें स्ट्रैटोस्फेयर में बढ़ रहे क्लोरीन और ब्रोमीन के स्तर को कम करना होगा। आखिरकार क्लोरीन और ब्रोमीन का स्तर कम हुआ और ओजोन लेयर का छेद भर गया।
चीन के उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को रोकना होगा
विनसेंट ने उम्मीद जताई है कि ये ओजोन लेयर में बना यह बड़ा छेद जल्द ही भरने लगेगा। ये मौसम के बदलाव के साथ ही संभव होगा। इस समय हमें 1987 में हुए मॉन्ट्रियल समझौते को अमल में लाना चाहिए। सबसे पहले चीन के उद्योगों से होने वाले प्रदूषण को रोकना होगा।
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