अति आत्मविश्वास और अहंकार भाजपा को ले डूबी, यूपी की जनता से मिले पांच सबक

यूपी में सपा को 37, भाजपा को मिले 33 सीट

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लोकसभा चुनाव के नतीजों ने सभी को चौंका दिया है. 400 पार का नारा देने वाली भाजपा को भारी नुकसान पहुंचा है. एनडीए को 291 सीटें मिली है जबकि 370 सीटें खुद के दम पर जीतने का दांवा करने वाली भाजपा बहुमत का आंकड़ा भी न छू सकी. भाजपा ने 240 सीटों पर जीत हासिल की है. हालांकि भाजपा इस बार के चुनाव में फिर से सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है. चुनावों में महाराष्ट्र, बंगाल, राजस्थान, हरियाणा समेत कई राज्यों में भाजपा की सीटें कम हुई है लेकिन उत्तर प्रदेश के परिणामों से पार्टी को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा है. आइए जानते हैं यूपी में लोकसभा के चुनावों में भाजपा के लिये 5 सबसे बड़ी चुनौतियां जो उसे इस बार के चुनावों में मिली है.

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1. यूपी में सबसे बड़ी पार्टी भी न बन सकी भाजपा

भाजपा एवं उसके सहयोगी पार्टियों ने लोकसभा चुनाव 2014 में यूपी के 80 सीटों में से 73 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं लोकसभा 2019 में सपा-बसपा के गठबंधन के बावजूद एनडीए व भाजपा ने 64 सीटों पर जीत हासिल की थी. हालांकि चुनावों में बड़ा उलटफेर देखने को मिला है. भाजपा ने करीब 30 सीटों को गंवा दिया है. वहीं यूपी में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी भी नहीं बन सकी. समाजवादी पार्टी ने शानदार प्रदर्शन करते हुए 37 सीटों पर जीत हासिल की. भाजपा को 33 सीटों पर जीत नसीब हो सकी. जबकि पिछली बार के लोकसभा चुनावों में केवल रायबरेली की सीट बचाने वाली कांग्रेस ने 6 सीटों पर जीत हासिल की. लोकसभा की सबसे अधिक सीटों वाले राज्य में फिर से सबसे बड़ी पार्टी बनना भाजपा की सबसे बड़ी चुनौती होगी.

2. बनारस में जीत का अंतर कम होना

हर बार के चुनावों की तरह इस बार भी प्रधानमंत्री के संसदीय सीट को लेकर सभी की नजरें थीं. वाराणसी से तीसरी बार लोकसभा का चुनाव लड़ रहे पीएम मोदी को लेकर भाजपा की तरफ से 10 लाख वोट से अधिक अंतर से जीत का दावा किया जा रहा था. हालांकि पिछले 2 बार के चुनावों में रिकार्ड अंतर से जीत रहे पीएम मोदी को काशी में शुरुआती 4 राउंड में इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी अजय राय से कम वोट मिले. हालांकि अंतिम राउंड के बाद पीएम मोदी ने वाराणसी में लगातार तीसरी बार जीत हासिल की, लेकिन उनके जीत का अंतर केवल 1,52,513 वोट रह गया. काशी का कायापलट एवं तमाम विकास के कार्यों का दावा करने वाली भाजपा के दांवों पर यह सवाल खड़ा करता है.
भाजपा के शीर्ष नेताओं की तरफ से दावा किया जा रहा था कि राहुल गांधी अमेठी सीट से भागकर रायबरेली की सीट पर चुनाव लड़ने गये है लेकिन सभी राहुल गांधी के रायबरेली से भी चुनाव हारने की बात कर रहे थे. बता दें कि राहुल गांधी ने रायबरेली में भाजपा प्रत्याशी दिनेश प्रताप सिंह को 3,90,030 वोट के अंतर से पराजित किया. राहुल गांधी का जीत का अंतर पीएम मोदी के वाराणसी में जीत के अंतर से दोगुना से भी ज्यादा है. वाराणसी में इस बार के नतीजे के बाद अगले लोकसभा के चुनाव में पीएम मोदी का फिर काशी से बतौर सांसद चुनाव लड़ना एक और बड़ी चुनौती रहेगी.

3. अयोध्या की हार

‘जो राम को लाए हैं हम उनको लाएंगे‘ का नारा देने वाली भाजपा ने कभी सोचा भी नहीं होगा कि वह अयोध्या शहर की फैजाबाद सीट से भी चुनाव हार जाएगी. 22 जनवरी को प्राण-प्रतिष्ठा के बाद पूरे देश में राममय माहौल हो गया था. इसके बाद भाजपा का अति-आत्मविश्वास उसके हार का कारण बना. समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार अवधेश सिंह ने भाजपा प्रत्याशी लल्लू सिंह को 54,567 वोट से शिकस्त दी. अयोध्या में हार का नतीजा यह रहा कि पीएम मोदी ने जीत के बाद भाजपा मुख्यालय में अपने भाषण की शुरुआत अपने जय श्री राम जयघोष के बजाए जय जगन्नाथ उद्घोष से की. अयोध्या में हार के कई कारण हो सकते हैं. स्थानीय लोगों के मकानों का अधिग्रहण, पीएम मोदी का इकबाल अंसारी का प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने का बार- बार जिक्र करना, राममंदिर बनने के लिये कारसेवकों और अयोध्या के स्थानीय लोगों के बलिदान को तरजीह न देना यह ऐसे कुछ मुद्दे हैं जिसके कारण भाजपा को अयोध्या में हार का सामना करना पड़ा. पिछले 4 दशकों से अधिक समय से राम मंदिर के नाम पर राजनीति करने वाली भाजपा का इस सीट को जीतना, पार्टी के आत्मसम्मान के लिये बड़ी चुनौती होगी.

4. अमेठी में मिली शिकस्त

लोकसभा चुनाव 2019 में अमेठी सीट पर जीत हासिल करना भाजपा के लिये एक बड़ी जीत थी. स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को पराजित किया था. वहीं गांधी परिवार के गढ़ माने जाने वाली सीट पर भाजपा की जीत काफी महत्वपूर्ण थी. वहीं इस बार के चुनावों में राहुल गांधी का अमेठी की जगह रायबरेली सीट से चुनाव लड़ने के फैसले को भाजपा ने अमेठी में कांग्रेस का चुनाव से पहले ही हार स्वीकार करना बताया. हालांकि चुनाव के नतीजों में राहुल गांधी के करीबी माने जाने वाले किशोरी लाल ने स्मृति ईरानी को 1,67,196 वोट से हरा दिया. इस जीत के साथ ही कांग्रेस ने अपने गढ़ में वापस जीत हासिल की. वहीं कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाली अमेठी और रायबरेली की सीटों पर जीत हासिल करना भाजपा के लिये बहुत बड़ी चुनौती होगी.

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5. विधानसभा चुनाव में वापसी करना

यूपी में लोकसभा चुनावों में भाजपा का बेहद ही खराब प्रदर्शन रहा. बता दें कि प्रदेश में वर्ष 2027 में विधानसभा के चुनाव होने हैं. पिछले 2 विधानसभा चुनावों में भाजपा ने बड़ी जीत हासिल की थी. हालांकि सपा की बड़ी जीत के बाद से ही उसके कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह देखने को मिल रहा है. वहीं भाजपा के कार्यकर्ताओं में मायूसी साफ देखने को मिल रही है. वहीं इसको लेकर प्रदेश में पार्टी के शीर्ष नेताओं की तरफ से बड़े फैसले देखने को मिल सकते हैं. वहीं सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी प्रशासन एवं मंत्रियों के साथ बैठकों का दौर शुरु कर दिया है. आगामी विधानसभा चुनाव में एक बार फिर से जीत हासिल करना भाजपा के लिये एक और बड़ी चुनौती रहेगी.

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